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Tuesday, 19 December 2023

स्वार्थी मतियाँ

स्वार्थी मतियाँ


पौढ़ शिखर के तुंग 

खरी थी पावन निर्मला

सिंधु से मिली गंग

बनी खारी सकल अमला


गोद भरा अब गाद

हमारी मूढ़ मतियों ने

सदा किया था गर्व

अनोखी वीर सतियों ने

बन बहती वरदान

कभी था रूप भी उजला।।


मनुज बड़ा ही ठूंठ 

पहनकर स्वार्थ की पट्टी

खेले भारी खेल

उथलकर काल की घट्टी

दलदल बनाता और

निशाना भी बने पहला।।


गहरे हैं अवगाह

भयानक आपदा होगी

होंगे सकल अनिष्ट 

निरपराधी भुगत भोगी

पिघल रहे मुख ज्वाल

पत्थर हृदय नहीं दहला।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

 

Thursday, 30 November 2023

सूरज के बदलते रूप


 सूरज के बदलते रूप (सवैया छंद)


यामा जब आँचल नील धरे, सविता जलधाम समाकर सोता।

आँखे फिर खोल विहान हुई, हर मौसम रूप पृथक्कृत होता।

गर्मी तपता दृग खोल बड़े, पर ठंड लगे तन दे सब न्योता। 

वर्षा ऋतु में नभ मेघ घने, तब देह जली अपनी फिर धोता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 16 November 2023

कुछ जो शाश्वत है

कुछ जो शाश्वत है 

खार ही खार हो अनंत सागर के अपरिमित अंबू में।
मोती हृदय में धारण करके शीपियाँ तो मुस्कुराएँगी।

तुषार पिघले कितना भी धीरे मौनी साधक सा चाहे।
अचल की कंकरियाँ तो सोत संग सुरीले गीत गाएँगी।

चाहे साँझ सुरमई सी चादर बिछा दे विश्व आँगन पर।
तम की यही राहें उषा के सिंदूरी आँचल तक जाएँगी।

भग्न हृदय की भग्न भीती पर उग आई जो कोंपलें।
जूनी खुशियों के चिर परिचित गीत तो गुनगुनाएँगी।

नाव टूटी ही सही किनारे बंधी हो चाहे निष्प्राण सी।
फिर भी सरि की चंचल लहरें तो आकर टकराएँगी।

दीप है तेल और बाती भी पर प्रकाश नहीं दिखता।
जलती अंगारी ढूंढ लो जो बातियों में जीवन लाएँगी।

स्वरचित
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
 

Wednesday, 8 November 2023

दुर्दिन

दुर्दिन


काले बादल निशि दिन छाये

चाबुक बरसाता काल खड़ा।

सूखी बगिया तृण तृण बिखरी

आशाओं का फूल झड़ा।।


चूल्हा सिसका कितनी रातें

उदर जले दावानल धूरा

राख ठँडी हो कंबल माँगे

सूखी लकड़ी तन तम्बूरा

अंबक चिर निद्रा को ढूंढ़े

धूसर वसना कंकाल जड़ा।।


पोषण पर दुर्भिक्ष घिरा है

खंखर काया खुडखुड़ ड़ोले

बंद होती एकतारा श्वांसे 

भूखी दितिजा मुंँह है खोले

निर्धन से आँसू चीत्कारे

फिर देखा हर्ष अकाल पड़ा।।


आर्द्र विहिन सूखा तन पिंजर

घोर निराशा आँखे खाली

लाचारी की बगिया लहके

भग्न भाग्य की फूटी थाली

अहो विधाता कैसा खेला

पके बिना ही फल शाख सड़ा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

 

Monday, 30 October 2023

कार्तिक मास का स्वागत


 कार्तिक मास का स्वागत


आया कार्तिक मास है, ऋतु ने बदला वेश।

त्योंहारों की आन ये, पुल्कित सारा देश।।


हवा चले मनभावनी, मुदित हुआ मन आज।

कार्तिक महीना आ गया, सुखद लगे सब काज।।


दीपमालिका आ रही, सजे हाट बाजार।

कार्तिक तेरी शान में, दीप जले दिशि चार।।


झिलमिल झालर सज रहे, हर्षित है नर नार।

कार्तिक लेकर आ गया, खुशियों के त्यौहार।।


गर्मी भागी जोर से, पहन ठंड के चीर।

बादल भी अब स्वच्छ हैं, नहीं बरसता नीर।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 18 October 2023

नेता ऐसे ऐसे


 नेता ऐसे ऐसे 


मौका आया रंग दिखा कर

बिना बात ही अंगद बनिए

टाँग जमा दें अपनी ऐसे

बिदकी घोड़ी बन कर अड़िए।


चोरी डाका भी डालें तो

अपना चोला रखें बचाकर

साम दाम की अधम कटारी

बात -बात में चले नचाकर

अपना कपटी मन कब हारा

छल बल से सौ-सौ कपट किए।।


अपनी सोचें जग को गोली

तेली के घर जाए निष्ठा

गाँठ टका हो मोटा भइया

माला आती लिए प्रतिष्ठा

मन दिगम्बरी खोट छिपे तो

जाली को ही वस्त्र समझिए।।


ऐसे गुणी प्रतापी बाँधव

अगर देश की शान सँवारे

ढोल पीटते मानवता का

राह भ्रमित से करते नारे

भरपाई करने को नित ही

सौ आश्वासन उपहार दिए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 12 October 2023

श्याम का प्रस्थान


 श्याम का प्रस्थान


मन पर मेघ घिरे कुछ ऐसे

चुप है पायल की छनछन

गोकुल छोड़ चले गिरधारी 

आज विमोहित सा तनमन।।


पशुधन चुप-चुप राह निहारे

माँ का खाली उर तरसे

लता विलग सी राधा रानी

नयन गोपियों के बरसे

खेद खड़ा प्रस्फुटित राग का

बाँसुरिया से कुछ अनबन।।


रवि का जैसे तेज मंद हो

ठंडी निश्वासें छोड़े

निज प्रकृति भूलकर मधुकर

कलियों से ही मुख मोड़े

सूने पथ है सूनी गलियाँ

नही हवाओं में सनसन।।


पर्वत जैसी पीड़ा पसरी

बहे वेदना का सोता

सुगबग सुगबुग करता मानों 

यमुना का पानी रोता

सभी दिशाए़ मौन खड़ी ज्यों 

लूट चुका निर्धन का धन।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday, 7 October 2023

जीवन जैसे युद्ध


 जीवन जैसे युद्ध 


जीवन जैसे युद्ध बना है

सुख बैठा पर्वत चोटी।

क्या धोए अब किसे निचोड़े

तन बस एक लँगोटी।।


कल्पक तेरी कविता से कब

दीन जनों का पेट भरा।

आँखे उनकी पीत वरण सी

स्वप्न अभी तक नहीं मरा।

रोटी ने फिर चाँद दिखाया

चाँद कभी दिखता रोटी।।


दग्ध हृदय में श्वांस धोकनी

खदबद खदबद करती है

बुझती लौ सा दीपक जलता

बाती तेल तरसती है

दृश्य देख अनदेखे करके

मानवता होती छोटी।।


झूठा करें दिखावा कुछ तो

हितचिंतक होते कितने

आश्वासन की डोरी थामे 

दिवस बीतते हैं इतने

भाषण करने वालों की

बातें बस मोटी मोटी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 21 September 2023

अद्भुत प्रकृति


 गीतिका:

अद्भुत प्रकृति 

आसमान अब झुका धरा भरी उमंग से।

लो उठी अहा लहर मचल रही  तरंग से।।


शुचि रजत बिछा हुआ यहाँ वहाँ सभी दिशा।

चाँदनी लगे टहल-टहल रही  समंग से।।


वो किरण लुभा रही चढ़ी गुबंद पर वहाँ।

दौड़ती समीर है सवार हो पमंग से।।


रूप है अनूप चारु रम्य है निसर्ग भी ।

दृश्य ज्यों अतुल दिखा रही नटी तमंग से।।


जब त्रिविधि हवा चले इलय मचल-मचल उठे।

और कुछ विशाल वृक्ष झूमते मतंग से।


वो तुषार यूँ 'कुसुम' पिघल-पिघल चले वहाँ।

स्रोत बन सुरम्य अब उतर रहे उतंग से।।


इलय/गतिहीन


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 13 September 2023

हिन्दी कुशल सखी


 विश्व हिन्दी दिवस पर हार्दिक बधाई 💐💐


हिन्दी कुशल सखी


काव्य मंजूषा छलक रही है

नित-नित मान नवल पाये।

हिन्दी अपने भाष्य धर्म से

डगर लेखनी दिखलाये।।


भाव सरल या भाव गूढ़ हो

रस मेघों से आच्छादित

कविता मन को मोह रही है 

शब्द शक्तियाँ आल्हादित

प्रीत उर्वरक गुण से हिन्दी

संधि विश्व को सिखलाये।।


हिन्दी कवियों को अति रुचिकर 

कितने ग्रंथ रचे भारी

राम कृष्ण आदर्श बने थे

जन मन की हर दुश्वारी 

मंदिर का दीपक यह हिन्दी

विरुदावली भाट गाये ।।


जन आंदोलन का अस्त्र महा

नाट्य मंच का स्तंभ बनी

चित्रपटल संगीत जगत का

हिन्दी ही उत्तंभ बनी

अब नहीं अभिख्यान अपेक्षित 

यश भूमंडल तक छाये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

Wednesday, 19 July 2023

अनुशीलन माँ शारदे


 अनुशीलन माँ शारदे


हाथ में कूची उठाई

आ गये माँ तव शरण

है कला माध्यम उत्तम

कोटि करते हैं भरण।


बान अनुशीलन रहे तो

शब्द बनते शक्ति है 

नित निखरते व्यंजना से

फिर सृजन ही भक्ति है

मर्म लेखन बिम्ब बोले 

नित सिखाये व्याकरण।।


लेख प्रांजल हो प्रभावी

मोद आत्मा में जगे

पढ़ प्रमादी जाग जाए

और सब आलस भगे

लेखनी नव शक्ति भर दो

नित पखारें हैं चरण।


वेद हो या शास्त्र पावन

अक्षरों में हैं सजे

थात है इतिहास भी जो

प्रज्ञ पण्डित भी भजे

लेख बिन सब भाव सूने

कर रहा है युग वरण।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 6 June 2023

पर्यावरण और गर्मी


 गीतिका :

221 2122 221 2122.


पर्यावरण और गर्मी


सविता धधक रहा है जीवन व्यथित हुआ अब।

हैं नीर रिक्त सरवर सूखे कुएँ  सरित सब।।


अंगार से लगे है हर पेड़ पात जलता।

लू के बहे थपेड़े ज्यों धूल संग करतब।।


तन संकुचित धरित्री लो गोद आज उजड़ी।

धर मेह दे नहीं तो होगी हरित धरा कब।।

धर=बादल


है भूमि रत्नगर्भा पर अंबु चाहती नित।

सिंचन बिना कुँवारी कर स्नान सरसती जब।।


झूठी कथा नहीं सच कारण मनुज तुम्हीं हो।

पर्यावरण बचाओ भू पर खनक बचे तब।।


हो इंद्र देव खुश तो फिर वृष्टि गीत गाती।

गिर तापमान जाता वन मोर नाचता अब।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 1 June 2023

हिल्लोल


 हिल्लोल


चाँदनी का बाँध टूटा

भू उमंगित हो नहाए

पेड़ डूबे पात निखरे

चाँद फुनगी पर सुहाए।


खिलखिलाती है हवाएँ

झूमती हिल्लोल लेने

पात पादप में उलझती

नव मुकुल को नेह देने

लोल लतिका सुप्त जागे

डोलती सी गोद भाए।।


दौड़ती नाचे खुशी में 

कंठ गिरि के झूमती हैं

नादिनी लहरी मचल कर

चोटियों को चूमती है

धुन नदी देती चली जब

उर्मियों ने गीत गाए।।


श्रृष्टि रचती रूप कितने

चेल अपने नित बदलती

मानसी मन मोहिनी सी

सांध्य दीपक बन मचलती

गोद में सुख सेज भी है

मोद का सोता बहाए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 17 May 2023

धरा फिर मुस्कुराई


 धरा फिर मुस्कुराई


सिंधु से आँसू उठाकर 

बादलों ने घर दिए

ताप से जलती धरा पर

लेप शीतल कर दिए।


नेह सिंचित भूमि सरसी

पोर मुखरित खिल गया

ज्यों वियोगी काव्य को

छंद कोई मिल गया

गूंथ अलके श्यामली सी

फूल सुंदर धर दिए।।


ठूंठ होते पादपों पर

कोंपले खिलने लगी

प्राण में नव वायु दौड़ी

आस फिर फलने लगी

ज्योति हर कण में प्रकाशित

भोर ने ये वर दिए।।


शाख पर खिलते मुकुल पर

तितलियों ने गीत गाये

भूरि राँगा यूँ बिखरकर

पर्व होली का मनाये

ये कलाकृति पूछती है

रंग किसने भर दिए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 11 May 2023

हम तुम


 तुम हम


हृदय खिला है उपवन जैसा

हरा हुआ मन पीत

सरगम बजती पंचम सुर में

गूंज रहे हैं गीत।


सरिता के तट बैठे तुम-हम

पाँव नीर में डाल

झिंगुर गुनगुन गीत सुनाते

हवा बजाती ताल

जीवन पथ के पल-क्षण सुंदर 

याद रखो सब मीत।।


सुख की सब सौगातें प्यारी

सदा रहेंगी साथ

हर पथ पर हम चले उमंगित

लिए हाथ में हाथ

कभी जीत के हार गले में

कभी हार में जीत।।


झंझावात सभी झेले थे

इक दूजे के संग

पर चेहरे की मुस्कानों का

दिखे न फीका रंग

भला लगे हर बंधन साथी 

भली लगे हर रीत।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Wednesday, 26 April 2023

औषधियाँ दोहो में


 चलें प्रकृति की ओर,दादी नानी की सुझाई रामबाण औषधियाँ दोहो में।


अश्वगंधा (असगंध) 

चूर्ण ग्राम असगंध दो करें शहद सह योग।

जो पीपल के साथ लें, दूर हटे क्षय रोग।।


मुलहठी (यष्टिमधु) 

प्रतिरोधक क्षमता बढ़े, श्वांसकास हितकार।

जेष्टमधी सेवन करें, वैद्यक नियम विचार।‌


ब्राह्मी 

ब्राह्मी औषध गुण भरी, काटे कई विकार।

बुद्धि वृद्धिकर योग है, बहुल व्याधि प्रतिकार।।


अशोक 

पथरी सूजन दर्द को, करता दूर अशोक।

महिला रोगों के लिए,नाम बड़ा इस लोक।।


नीम (निम्ब) 

नीम गुणों की खान है, सहज करो सब प्राप्त।

अमृत तुल्य ये पेड़ है, भारत भू पर व्याप्त।।


सहजन 

सहजन का हर भाग ही, पौष्टिकता का नाम।

स्वाद सदा उत्तम लगे, और न्यून है दाम।।


तुलसी

पूजनीय यह पौध है, तुलसी गुण की खान।

वात पित्त कफ में सदा, रामबाण ही मान।।


भृंगराज 

भृंगराज सेवन करो, रोग त्वचा के दूर।

बालों को अमृत मिले, उदर रोग चकचूर ।।


गिलोय (गुडूचि, अमृता)

तापमान तन का घटा, ज्वर में दे आराम।

जीर्ण शीर्ण हो देह भी, करती अमृता काम।।


शतावरी (शतावर)

गर्भवती सेवन करे, यदि शतावरी चूर्ण।

संग सोंठ अजगंध हो, स्वस्थ रहेगा भूर्ण।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 20 April 2023

दोहे नीति के

दोहे नीति के 


१)करो प्यार निज देश से, इससे बढ़ता मान।

यही हमारा गर्व हो, यही हमारी आन।।


२)जल को जीवन जानिये, और मानिए प्राण।

जल बिना इस सृष्टि में, रहे न कोई त्राण।


३)भूगर्भा है भूमिजा, रखे क्षमा का रूप।।

पूजे हलधर प्रेम से, मान देवी स्वरूप।।


४)नारी बस कोमल नही, काम पड़े तलवार।

चंदा सी शीतल सही, नेत्र बाण की धार।।


५)कर्म निरंतर जो करे, वो पाते हैं लक्ष्य।

थककर कभी न बैठना, कर्म ही सुदृढ़ पक्ष्य।।


६)कठिन काम को साधते, श्वेद बहे दिन रात।

कर्मकार की साधना, भूले मोह स्व गात।।


७)भाव बिना तो शब्द भी, होते कोरा जाल।

चंदन संग सुगंध ही, चढे ईश के भाल।। 


८)अपना घर प्यारा लगे, जैसे हो निज पूत।

चादर मन भावन बने, जोड़ जोड़कर सूत।।


९)निर्बाधित गति काल की, कौन लगाए रोक।

कभी गहन अंधेर है ,कभी शुभ्र आलोक।।


१०)सबका साथ रहे सदा, हो जीवन में प्यार।

हार विजय का हो गले,आए कभी न हार।।


 कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

 

Friday, 14 April 2023

शरद गमन


 शरद गमन


भानु झाँके बादलों से

शीत क्यों अब भीत देती

वो चहकती सुबह जागी

नव प्रभा को प्रीत देती।।


लो कुहासा भग गया अब

धूप ने आसन बिछाया

ऐंद्रजालिक ओस ओझल

कौन रचता रम्य माया

पर्वतों ने गीत गाए

ये पवन संगीत देती।।


मोह निद्रा त्याग के तू

छोड़ दे आलस्य मानव

कर्म निष्ठा दत्तचित बन

श्रेष्ठ तू हैं विश्व आनव

उद्यमी अनुभूतियाँ ही

हार में भी जीत देती।।


बीज माटी में छिपे से

अंकुरण को हैं मचलते

नेह सिंचित इस धरा पर

मानवों के भाग्य पलते

और तम से जो डरा हो

सूर्य किरणें मीत देती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 27 March 2023

प्रकृति और लेखनी


 प्रकृति और लेखनी


श्रृंग श्रेणी चढ़ दिवाकर

दृश्य कोरे है अछेरे

पाखियों की पाँत उड़ती

छोड़कर के नीड़ डेरे।।


कोकिला कूजित मधुर स्वर

मधुकरी मकरंद मोले 

प्रीत पुलकित है पपीहा

शंखपुष्पी शीश डोले

शीत के शीतल करों में

सूर्य के स्वर्णिम उजेरे।।


मोद मधुरिम हर दिशा में

भूषिता भू भगवती है

श्यामला शतरूप धरती

पद्म पर पद्मावती है

आज लिख दे लेखनी फिर

नव मुकुल से नव सवेरे।।


मन खुशी में झूम झूमें

और मसि से नेह झाँके

कागज़ों पर भाव पसरे

चारु चंचल चित्र चाँके

पंक्तियों से छंद झरते

मुस्कुराते गीत मेरे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 20 March 2023

नव रसों का मेह कविता


 विश्व कविता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷

नव रसों का मेह कविता


थाह गहरे सिंधु जैसी

उर्मिया मन में मचलती

शब्द के भंडार खोले

लेखनी मोती उगलती।।


लिख रहे कवि लेख अनुपम

भाव की रस धार मीठी

गुड़ बने गन्ना अनूठा

चाशनी चढ़ती अँगीठी

चाल ग़ज़लों की भुलाकर

आज नव कविता खनकती।


स्रोत की फूहार इसमें

स्वर्ग का आनंद भरते

सूर्य किरणों से मिले तो

इंद्रधनुषी स्वप्न झरते

सोम रस सी शांत स्निगधा

तामरस सी है बहकती।।


वीर या श्रृंगार करुणा

नव रसो का मेह छलका

रूप कितने ही हैं इसके

ताल में ज्यों चाँद झलका

कंटकों सी ले चुभन तो

रात रानी बन लहकती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 16 March 2023

भोर से दोपहर तक

भोर से दोपहर तक

उर्मियों से कंठ लग कर
ओस झट से झिलमिलाई
देख कलिका एक सुंदर 
तितलियाँ भी किलकिलाई।।

भोर की लाली उतर कर
मेदिनी के गात डोली
हर दिशा से आ रही है
पाखियों की धीर बोली
सौम्य सुरभित वात बहकर
पत्तियों से गिलबिलाई।।

गोपियों ने गीत गाए
अर्कजा का कूल प्यारा
श्याम वर्णी श्याम सुंदर  
राधिका का रूप न्यारा
प्रीत बैठी फूँक मुरली
रागिनी भी खिलखिलाई।।

भानु का रथ दौड़ता सा
नील नभ पर डोलता है
बादलों के पार बैठा
हेम कोई तोलता है
अब चली सखियाँ सभी मिल
धूप खुलकर चिलचिलाई।।

कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
 


Saturday, 11 March 2023

ऋतु मदमाती


 ऋतु मदमाती 


सखी देखलो ऋतु मदमाती

डाल-डाल पाखी चहके।

काल ठहर कर रुकता दिखता

फूलों के उपवन लहके।


मुकुल ओढ़ नव लतिका डोली

मंद गंध ले पवन बहे

सरसिज से सरसी सरसाई 

मधुप मगन मदमस्त रहे

लो कानन में कोयल कूकी

द्रुम दल पात-पात बहके।।


मंजरियाँ मदमाती है ज्यों

मद पी कर बौराई है

केसर उड़ता वात झोंक में

विलस रही अमराई है

कण-कण सुरभित गंध भरी है

वसुधा का आँचल महके।।


झरने मंथर कल-कल बहते

मंद चाल सरिता भरती

निर्मल वो आकाश नील सा

धानी चूनर सी धरती

बासंती का नेह झलकता

टेसू से बन-बन दहके।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 7 March 2023

कहो समय


 कहो समय तुम कितने अपने

छली बली निर्मोही हो

छुपा रखा है किसे पता क्या

मन के पक्के गोही हो।।


अहिल्या का श्राप हो तुम

दसरथ के अवसान 

श्री राम का वनवास भी 

माँ सीता की अग्नि परीक्षा

उर्मिला का वियोग

माण्ड़वी का वैराग्य 

अरे कितने अमोही हो।।


कहो समय तुम कितने अपने

छली बली निर्मोही हो।


पितामह की निर्बलता तुम

धृतराष्ट्र का मोह

देवकी के प्रारब्ध

कर्ण के अज्ञातशत्रु 

द्रौपदी का अपमान 

द्वारिका की जल समाधि

मानवता के द्रोही हो।।


कहो समय तुम कितने अपने

छली बली निर्मोही हो।


संस्कारों का अंत हो तुम

लालच की पराकाष्ठा

अनैतिकता का बाना

भ्रष्टाचार के जनक

स्वार्थ के सहोदर

धर्म के धुंधले होते रंग

विषज्वर के आरोही हो।।


कहो समय तुम कितने अपने

छली बली निर्मोही हो।।


विषज्वर=भैंसा

Saturday, 25 February 2023

भिन्नता


 भिन्नता 


अपनी अपनी सोच अनूठी

अपनी खुशियांँ अपना डर।


एक पात लो टूट चला है

तरु की उन्नत शाखा से

एक पात इतराता ऊपर

झाँक रहा है धाका से

छप्पन भोगों पर इठलाती 

पत्तल भाग्य प्रशंसा कर।।


व्यंजन बस रस की है बातें

स्वाद भूख में होता है

एक थाल को दूर हटाता

इक रोटी को रोता है

पेट भरा तो कभी पखेरू 

दृष्टि न डाले दाने पर।।


समय समय पर मूल्य सभी का

कहीं अस्त्र लघु सुई बड़ी

प्राण रहे तन तब धन प्यारा

सिर्फ देह की किसे पड़ी

सदा कहाँ होता है सावन

घूम-घूम आता पतझर।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 20 February 2023

सार बातें


 गीतिका

मापनी: 212 1212 1212 1212.


सार बातें 


क्रोध का उठाव बुद्धि का बने पतन सदा।

हो हृदय क्षमा विचार प्रेम का कथन सदा।।


बार-बार भूल का सुधार भी न जो करें।

भूल क्यों इसे कहो मृषा कहो जतन सदा।।


चोर जो चुरा सके न लूट ही सके  जिसे।

ज्ञान सार धन यही अमूल्य ये रतन सदा।।


जीत जग वही सके उदार जो हृदय रखें।

प्रीत कुम्भ हो विशाल द्वेष फिर गमन सदा।।


अर्थ के बली उन्हें न छेड़ते कभी कहीं ‌। 

ये जगत स्वभाव है गरीब का दमन सदा।।


वे 'कुसुम' महान काज परहिताय जो करें ।

स्वार्थ राग तज करो उन्हें  सभी नमन सदा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 2 February 2023

परोपजीवी


 परोपजीवी


अनुरंजन से जिनको पोसा

मैला निकला उनका मन 

अंदर अंतस कितना काला

उजला बस दिखता था तन।


बना दूसरों को फिर सीढ़ी

लोग सफल हैं कुछ ऐसे

जोड़-तोड़ के योग लगा

नीव खोदते दीमक जैसे

हरियल तरुवर को नागिन सा

अमर बेल का आलिंगन।।


आत्म हनन कर निज भावों का

शोषण के कारज सारे

ऐसे-ऐसे करतब करते

लज्जा भी उनसे हारे

लिप्सा चढ़ती शीश स्वार्थ की 

सिक्कों की सुनते खन-खन।।


आश्रित जिन पर उनको ठगते

सत्व सार उनका खींचे

कर्तव्यों की करें अपेक्षा 

बने कबूतर दृग मीचे

पूरे जग में भरे हुए हैं 

ऐसे लोलुप अधमी जन।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 26 January 2023

माँ भारती


 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌷


माँ भारती


अब ले तिरंगा हाथ में चल मान से।

भू सज रही अब केसरी परिधान से।


जयकार की गूंजे सुहानी आ रही।

ऊँचा रखेगें भाल भी सम्मान से।।


गाथा कहें माँ भारती की हम सदा।

हर ओर गौरव गान हो अभिमान से।।


रख स्वावलंबी आज अपना ध्येय भी।

पूरा न हो कोई प्रयोजन दान से।।


करते रहे हम शोध हर दिन ही नवल।

ये विश्व सारा मुग्ध हो पहचान से।


हों विश्व गुरु हम ये प्रतिष्ठित भाव हो ।

होगा सफल विज्ञान अपने ज्ञान से।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 19 January 2023

भावों के मोती


 भावों के मोती जब बिखरे

मन की वसुधा हुई सुहागिन


आज मचलती मसी बिखेरे

माणिक मुक्ता नीलम हीरे

नवल दुल्हनिया लक्षणा की

ठुमक रही है धीरे-धीरे

लहरों के आलोडन जैसे

हुई लेखनी भी उन्मागिन।।


जड़ में चेतन भरने वाली

कविता हो ज्यों सुंदर बाला

अलंकार से मण्डित सजनी

स्वर्ण मेखला पहने माला

शब्दों से श्रृंगार सजा कर

निखर उठी है कोई भागिन।


झरने की धारा में बहती

मधुर रागिनी अति मन भावन

सुभगा के तन लिपटी साड़ी

किरणें चमक रही है दावन

वीण स्वरों को सुनकर कोई

नाच रही लहरा कर नागिन।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday, 14 January 2023

उषा से निशा तक


 गीतिका : आधार छंद पंचचामर

मापनी:- 1212 1212 1212 1212.


मचल-मचल लहर कगार पद पखारती रही।

करे नहान कूल रूप को निखारती रही।। 


नवीन रंग दिख रहा गगन प्रभात काल में।

किरण चली उचक उचक कनक पसारती रही।।


प्रदोषकाल अर्चियाँ सँभाल स्वर्ण  संचरण।

यहांँ रुको घड़ी पलक धरा पुकारती रही।।


निशा खड़ी उदास इंदु का तभी उदय हुआ।

नखत सजा परात आरती उतारती रही।।


लहक करे प्रसून स्वागतम् मयंक राज का।

समीर डालियाँ हिला चँवर डुलारती रही।


'कुसुम' प्रभा बिखर गई प्रकाश झिलमिला रहा।

निशा उड़ा रजत लटें क्षितिज सँवारती रही।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 10 January 2023

हिन्दी कुशल सखी



हिन्दी कुशल सखी


काव्य मंजूषा छलक रही है

नित-नित मान नवल पाये।

हिन्दी अपने भाष्य धर्म से

डगर लेखनी दिखलाये।।


भाव सरल या भाव गूढ़ हो

रस मेघों से आच्छादित

 कविता मन को मोह रही है 

शब्द शक्तियाँ आल्हादित

प्रीत उर्वरक गुण से हिन्दी

संधि विश्व को सिखलाये।।


हिन्दी कवियों को अति रुचिकर 

कितने ग्रंथ रचे भारी

राम कृष्ण आदर्श बने थे

जन मन की हर दुश्वारी 

मंदिर का दीपक यह हिन्दी

विरुदावली भाट गाये ।।


जन आंदोलन का अस्त्र महा

नाट्य मंच का स्तंभ बनी

चित्रपटल संगीत जगत का

हिन्दी ही उत्तंभ बनी

अब नहीं अभिख्यान अपेक्षित 

यश भूमंडल तक छाये।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'।

 

Sunday, 8 January 2023

गीतिका:शुभ भाव


 गीतिका: आधार छंद:- माधवमालती, 2122×4


शुभ भाव


जो दहकती है घृणा वो शीघ्र थमनी चाहिए अब।

आग को शीतल करे वो ओस झरनी चाहिए अब।।


ले कहीं से आज आओ रागिनी कोई मधुर सी  ।

हर हृदय की गोह से बस खार  छटनी चाहिए अब।


बाहरी सज्जा चमन में फूल कृत्रिम कूट दिखते।।

बाग सुंदर हो कली हर इक महकनी चाहिए अब।


आन पर अपने चलो गौरव सदा अपना बचाओ ।

देश हित को ध्यान में रख नीति  रचनी चाहिए अब ।


साहसी होंगे वही जो राह कांटों की चुनेंगे।

पार करनी अब्धि हो दृढ़ एक तरनी चाहिए अब।


 जो कुसुम दुर्बल जनों को, स्वत्व अपना है बचाना।

आसमानों को झुका दें, चाह जगनी चाहिए अब।।


कुसुम कोठारी' प्रज्ञा'

Thursday, 5 January 2023

दिल्ली का दर्द


 दिल्ली का दर्द


गेहिनी बन घर सँवारा

धार भूषण झिलमिलाई 

सैंकड़ों व्याघात झेले

चोट करती हर बिलाई।


राजरानी ये सिया सी

स्वामिनी भी तपस्विनी भी

सिर मुकुट धारा कभी तो

बन रही वो अधस्विनी भी

मौन बहते नेत्र जल को

पोंछ कर भी खिलखिलाई।।


आक्रमण के दंश तन पर

झेल कर आघात भारी

रोम से बहता लहू था

नाचती शायक दुधारी

नित फटे पोशाक बदले

और उधड़े की सिलाई।।


साथ लेकर दीर्घ गाथा

एक नगरी लाख पहरी

धैर्य के जब बाँध टूटे

बह चली तब पीर गहरी

चीखता प्राचीर क्रंदन

आज दिल्ली तिलमिलाई।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 3 January 2023

स्वभाव


 स्वभाव


तुंग श्रृंग से लहर-लहर कर 

सोत पुनित कल-कल बहता।

सदियों की अविरल पौराणिक 

ओजस्वी गाथा कहता।


सूर्य चन्द्र निर्विघ्न विचरते

कर्म पंथ निर्बाधित सा

भागीरथ संकल्प कठिन पर 

पूर्ण हुआ श्रम साधित सा

समय बिराना कब रुकता है

मोह नींद टूटे ढहता।।


हर बादल से चपला चमके

श्याम मेघ जल भार भरे

सरस रही है धरा नवेली

बूंदों का सत्कार करे 

काल चक्र बस चले अहर्निस

मौसम की घातें सहता।। 


ओम नाद की शाश्वत आभा

तन मन आलोकित करती

वेदों की वो गेय ऋचाएं 

ज्ञान ध्यान अंतस भरती 

लौ आलौकिक दिव्य प्रकाशक

प्रेम हृदय उज्ज्वल रहता।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'