धरा फिर मुस्कुराई
सिंधु से आँसू उठाकर
बादलों ने घर दिए
ताप से जलती धरा पर
लेप शीतल कर दिए।
नेह सिंचित भूमि सरसी
पोर मुखरित खिल गया
ज्यों वियोगी काव्य को
छंद कोई मिल गया
गूंथ अलके श्यामली सी
फूल सुंदर धर दिए।।
ठूंठ होते पादपों पर
कोंपले खिलने लगी
प्राण में नव वायु दौड़ी
आस फिर फलने लगी
ज्योति हर कण में प्रकाशित
भोर ने ये वर दिए।।
शाख पर खिलते मुकुल पर
तितलियों ने गीत गाये
भूरि राँगा यूँ बिखरकर
पर्व होली का मनाये
ये कलाकृति पूछती है
रंग किसने भर दिए।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 18 मई 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार 18 मई 2023 को 'तितलियों ने गीत गाये' (चर्चा अंक 4664) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
बहुत सुन्दर, मनभावन रचना है 👌🙏
ReplyDeleteअत्यंत मनमोहक रचना ।सादर।
ReplyDeleteकुदरत के सौंदर्य का अतुलित वर्णन !
ReplyDeleteप्रकृति का अलौकिक सौंदर्य निखर कर आ रहा।
ReplyDeleteसुंदर रचना के लिए बधाई।
बहुत ही प्यारी रचना कुसुम महोदया
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत रचना
ReplyDeleteसुंदर भावाभिव्यक्ति
ReplyDeleteवाह!!!
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब...
मंत्रमुग्ध करती रचना
👌👌👏👏🙏🙏