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Saturday, 25 February 2023

भिन्नता


 भिन्नता 


अपनी अपनी सोच अनूठी

अपनी खुशियांँ अपना डर।


एक पात लो टूट चला है

तरु की उन्नत शाखा से

एक पात इतराता ऊपर

झाँक रहा है धाका से

छप्पन भोगों पर इठलाती 

पत्तल भाग्य प्रशंसा कर।।


व्यंजन बस रस की है बातें

स्वाद भूख में होता है

एक थाल को दूर हटाता

इक रोटी को रोता है

पेट भरा तो कभी पखेरू 

दृष्टि न डाले दाने पर।।


समय समय पर मूल्य सभी का

कहीं अस्त्र लघु सुई बड़ी

प्राण रहे तन तब धन प्यारा

सिर्फ देह की किसे पड़ी

सदा कहाँ होता है सावन

घूम-घूम आता पतझर।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 20 February 2023

सार बातें


 गीतिका

मापनी: 212 1212 1212 1212.


सार बातें 


क्रोध का उठाव बुद्धि का बने पतन सदा।

हो हृदय क्षमा विचार प्रेम का कथन सदा।।


बार-बार भूल का सुधार भी न जो करें।

भूल क्यों इसे कहो मृषा कहो जतन सदा।।


चोर जो चुरा सके न लूट ही सके  जिसे।

ज्ञान सार धन यही अमूल्य ये रतन सदा।।


जीत जग वही सके उदार जो हृदय रखें।

प्रीत कुम्भ हो विशाल द्वेष फिर गमन सदा।।


अर्थ के बली उन्हें न छेड़ते कभी कहीं ‌। 

ये जगत स्वभाव है गरीब का दमन सदा।।


वे 'कुसुम' महान काज परहिताय जो करें ।

स्वार्थ राग तज करो उन्हें  सभी नमन सदा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 2 February 2023

परोपजीवी


 परोपजीवी


अनुरंजन से जिनको पोसा

मैला निकला उनका मन 

अंदर अंतस कितना काला

उजला बस दिखता था तन।


बना दूसरों को फिर सीढ़ी

लोग सफल हैं कुछ ऐसे

जोड़-तोड़ के योग लगा

नीव खोदते दीमक जैसे

हरियल तरुवर को नागिन सा

अमर बेल का आलिंगन।।


आत्म हनन कर निज भावों का

शोषण के कारज सारे

ऐसे-ऐसे करतब करते

लज्जा भी उनसे हारे

लिप्सा चढ़ती शीश स्वार्थ की 

सिक्कों की सुनते खन-खन।।


आश्रित जिन पर उनको ठगते

सत्व सार उनका खींचे

कर्तव्यों की करें अपेक्षा 

बने कबूतर दृग मीचे

पूरे जग में भरे हुए हैं 

ऐसे लोलुप अधमी जन।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'