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Monday, 28 September 2020

 मेधा और मन


द्रोह उपजता प्रज्ञा में पर

कहलाता कोमल मन काला

छोटी छोटी बातों रचता

नया नया फिर फिर घोटाला।।


मनन पथिक विस्मृत भूला सा

होके अविवेकी फिर फँसता

चाहे सामने सभी प्रिय हो

पिछे जगत पर सारा हँसता

मति की पीछे क्या क्या भुगते

लगा बड़ा है गड़बड़ झाला ।।


कुछ अवधि तक रहे कृतज्ञता

मर कर फिर सदगति को पाती

उसे समझ कर्तव्य किसीका 

भावों की मति मारी जाती

करते हैं विद्रोह वहीं क्यों

उम्मीदों ने जिनको पाला।।


जीवन यात्रा कैसी अबूझ

कौन इसे समझा है अब तक

चक्र चले ये चले निरन्तर 

मेधा सृष्टि रहेगी जब तक

मतभेद अवसाद साथ रहे

चले सदा भावों का भाला।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'


Thursday, 24 September 2020

तिश्नगी

 


 


तिश्नगी में डूबे रहे राहत को बेक़रार हैं

उजड़े घरौंदें जिनके वे ही तो परेशान हैं ।


रात के क़ाफ़िले चले कौल करके कल का

आफ़ताब छुपा बादलों में क्यों पशेमान है ।


बसा लेना एक संसार नया, परिंदों जैसे

थम गया बेमुरव्वत अब कब से तूफ़ान है ।


आगोश में नींद के भी जागते रहें कब तक

क्या सोच सोच के आखिर अदीब हैरान है ।


शज़र पर चाँदनी पसरी थक हार कर 

आसमां पर माहताब क्यों गुमनाम है ।


             कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


पशेमान - लज्जित, शर्मिन्दा। 

बेमुरव्वत - सहानुभूतिहीन  या अवसरवादी।

अदीब - रचनाकार, कलाकार या साहित्य कार।

Tuesday, 22 September 2020

काव्य सिरोमणि

 रामधारी सिंह दिनकर जी के जन्मदिवस पर 


कवि शिरोमणि कवि श्रृंगार।


ओज क्रांति विद्रोह भरा था

कलम तेज तलवार सम 

सनाम धन्य वो दिनकर था

काव्य जगत में भरता दम

सिरमौर कविता का श्रृंगार।।


कवि शिरोमणि,कवि श्रृंगार


स्वतंत्रता की हूंकार भरी

राष्ट्र कवि सम्मान मिला

आम जन का वो सूर्य बना

हलधर को चाहा हक दिला

नीरस में भर के रस श्रृंगार।।


कवि शिरोमणि कवि श्रृंगार


कुरुक्षेत्र कालजयी रचना

प्रणभंग, रश्मिरथी खण्डकाव्य 

संग्रह कविता के धार दार

लेखक ,कवि,औ साहित्यकार

उर्वशी काव्य नाटक श्रृंगार।।


कवि शिरोमणि,कवि श्रृंगार


भावों की सुरसरि थे पावन

कलम के धनी अभिराम

वीर ,श्रृंगार रस चरम उत्कर्ष

लिखे अद्भुत से भाव अविराम

नमन तूझे है काव्य श्रृंगार।।


कवि शिरोमणि,कवि श्रृंगार


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।


Friday, 18 September 2020

भावों के चंदन

 भावों के चंदन


भावों के चंदन जब महके

पतझर हो जाते मधुबन

स्निग्ध होते पाषाण भी जब

चीर फूटते स्रोत सघन।।


दृग राघव के पंकज सदृश्य

कालिमा में श्याम दिखते

भौरें की गुंजन सरगम सी

पात शयन मुक्ता करते 

अनुराग झरता मोद अंतस

सुवासित होता मन चमन।।


तारे तोड़ धरा पर लाता  

दिग-दिगंतों में भटकता 

आडोलित हो सरि तंरग सा

हर चहक में फिर अटकता

कोरे पृष्ठों पर कोरी सी

नित्य पढ़े कविता ये मन।।


हवा हिण्ड़ोले मेघ रमते 

झिलमिलाती दीप मणियाँ 

मुकुर सलिल छवि चंदा निरखे

उर्मियों से हीर कणियाँ

बिन आखर शुभ्र श्वेत पन्ने 

अभिवृत्तियाँ करती रमन।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।


डमरू घनाक्षरी पनघट

 डमरू घनाक्षरी  

पनघट


पनघट घट भर, न टहल चल पड़।

चरण कमल धर, मटक कमर चल।।

ठहर कलश रख, दम भर कर पद।

भटक डगर मत, परख दरश खल।।

हलचल मत कर, मगर परण चख।

नयन वरण कर, भरकर रख जल।।

नशवर जन तन, भरम जगत सब

भजन अगर कर, सकल करम टल ।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'


Wednesday, 16 September 2020

सुन मनुज

 सुन मनुज


कदम जब रुकने लगे 

तो मन की बस आवाज सुन

गर तुझे बनाया विधाता ने

श्रेष्ठ कृति संसार में तो

कुछ सृजन करने होंगें 

तुझ को विश्व उत्थान में

बन अभियंता करने होंगें नव निर्माण

निज दायित्व को पहचान तू

कैद है गर भोर उजली

हरो तम बनो सूर्य

अपना तेज पहचानो

विघटन नही जोडना है तेरा काम

हीरे को तलाशना हो तो

कोयले से परहेज भला कैसे करोगे

आत्म ज्ञानी बनो आत्म केन्द्रित नही

पर अस्तित्व को जानो

अनेकांत का विशाल मार्ग पहचानो

जियो और जीने दो, 

मै ही सत्य हूं ये हठ है

हठ योग से मानवता का

विध्वंस निश्चित है

समता और संयम

दो सुंदर हथियार है

तेरे पास बस उपयोग कर

कदम रूकने से पहले

फिर चल पड़।।


 कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


Sunday, 13 September 2020

हिंदी हमारा अभिमान

 हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।


हिन्दी और भारत


मेरे भारत देश का, हिन्दी है श्रृंगार । 

भाषा शीश की बिंदी, देवनागरी  सार ।

देवनागरी सार, बनी है मोहक भाषा ‌।

बढ़े सदा यश कीर्ति, यही मन की अभिलाषा।

अंलकार का वास, शब्द के अभिनव डेरे,

हिन्दी मेरा मान , ह्रदय में रहती मेरे ।।


              कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


Wednesday, 9 September 2020

यादों का पपीहा

 यादों का पपीहा 


शज़र-ए-हयात की शाख़ पर 

कुछ स्याह कुछ संगमरमरी 

यादों का पपीहा। 


खट्टे मीठे फल चखता गीत सुनाता 

उड़-उड़ इधर-उधर फुदकता 

यादों का पपीहा। 


आसमान के सात रंग पंखों में भरता 

सुनहरी सूरज हाथों में थामता 

यादों का पपीहा


चाँद से करता गुफ़्तगू बैठ खिडकी पर 

नींद के बहाने बैठता बंद पलकों पर

यादों का पपीहा।


टुटी किसी डोर को फिर से जोड़ता 

समय की फिसलन पर रपटता 

यादों का पपीहा।


जीवन राह पर छोड़ता कदमों के निशां

निड़र हो उड़ जाता थामने कहकशाँ 

यादों का पपीहा।


              कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'




अंधेेेरी रात में झील का सौंदर्य


घुप अंधेरी रातों दिखता

काला सा सरसी पानी।

तट पर प्रकाशित कुमकुमें लो

बनी आज देखो दानी‌।


समीर के मद्धिम बहाव में

झिलमिलाता नीर चंचल।

जैसे लहरा बंजारन का 

तारों जड़ा नील अंचल।

अधीर अनंत उतरा क्षिति पर

छुप गया है इंद्र मानी।


हिरण्य झुमका हेमांगी का

मंजुल शुभ रत्न जड़ा है।

रात रूपसी रूप देखकर

जड़ होके समय खड़ा है।

है  निसर्ग सौंदर्य बांटता

ज्ञान बांटता ज्यों ज्ञानी।।


दिशा सुंदरी चुप चुप लगती 

मौन झरोखे बैठी है‌ ।

गहन तमशा है शरवरी भी

मुंह मरोड़े ऐंठी है। 

जीवन वापिका में मचलता 

तम अचेत सा अभिमानी।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

Saturday, 5 September 2020

वीर उद्यमी

 वीर उद्यमी


उद्यमी सदा निज प्रयत्न से

जय विजय पताका हाथ धरे

पर्वत का सीना चीर वीर

सुरतरंगिणी भू गोद झरे ।।


कौन रोक पाया मारुत को

अपने ही दम पर बहता है 

नही मेघ में क्षमता ऐसी 

सूरज कहाँ छुपा रहता है 

अलबेलों की शान आन का

डंका अंबर तक रोर भरे ।।


तुंग अंगुली धारण करले

शीला खंड वहन कर लाये

तोड़ा आसमान का सीना 

चाँद भूमि को छूकर आये

बाँध उर्मियाँ फिर सागर की 

नलनील सेतु निर्माण करे ।।


लोह पुरुष हुंकार लगाये 

वसुधा थर्रा उठती सारी

टंकार एक जो चाप लगी 

सदृश हुवे दो दो अवतारी

महिमा किसकी लिखे लेखनी

सहस्त्रों वीर क्षिति पर उतरे ।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'


Tuesday, 1 September 2020

पथ के दावेदार नहीं हम

 पथ के दावेदार नहीं हम 

राही हैं हम एक राह के 

रह गुजर का साथ सभी का

लक्ष्य सभी का एक कहाँ है 

चलना है जब साथ समय कुछ

क्यों ना हंसी खुशी से चल दें

कुछ सुन लें, कुछ कह दें, 

अपनी भूली बिसरी यादें 

इन राहों से कितने गुजरे

डगर वही पर राह नयी हैं।।


पथ के दावेदार नही हम..

      कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'