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Monday, 28 September 2020

 मेधा और मन


द्रोह उपजता प्रज्ञा में पर

कहलाता कोमल मन काला

छोटी छोटी बातों रचता

नया नया फिर फिर घोटाला।।


मनन पथिक विस्मृत भूला सा

होके अविवेकी फिर फँसता

चाहे सामने सभी प्रिय हो

पिछे जगत पर सारा हँसता

मति की पीछे क्या क्या भुगते

लगा बड़ा है गड़बड़ झाला ।।


कुछ अवधि तक रहे कृतज्ञता

मर कर फिर सदगति को पाती

उसे समझ कर्तव्य किसीका 

भावों की मति मारी जाती

करते हैं विद्रोह वहीं क्यों

उम्मीदों ने जिनको पाला।।


जीवन यात्रा कैसी अबूझ

कौन इसे समझा है अब तक

चक्र चले ये चले निरन्तर 

मेधा सृष्टि रहेगी जब तक

मतभेद अवसाद साथ रहे

चले सदा भावों का भाला।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'


9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 29सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

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  3. चक्र चले ये चले निरन्तर
    मेधा सृष्टि रहेगी जब तक
    मतभेद अवसाद साथ रहे
    चले सदा भावों का भाला।।

    –सत्य कथन, सुन्दर भावाभिव्यक्ति

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  4. द्रोह उपजता प्रज्ञा में पर
    कहलाता कोमल मन काला

    बहुत गहरी बात।
    जीवनदर्शन से परिपूर्ण इस अत्यंत सुंदर रचना के लिए साधुवाद !!!

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