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Thursday, 1 October 2020

रव में नीरव

 रव में नीरव


नाव गर बँधी हो तो भी 

नदिया का बहना 

नाव तले रहता है 

जाना हो गर पार तो 

डालनी होती है

कश्ती मझधार में 

साहिलों पर रहने वालों को 

किनारों का कोई 

आगाज नही होता 

लड़ते भंवर से वो ही जाने 

किनारे क्या होते हैं

जो ढूंढ़ते एकांत 

स्वयं को खोजने

भटकते हैं बियावान में

कुछ नही पाते

स्वयं की तलाश में 

उतरते निज के जो अंदर

वो रव में भी नीरव पा जाते ।


    कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'


15 comments:

  1. Replies
    1. सादर आभार आदरणीय आपका।

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  2. वाह!कुसुम जी ,बहुत खूब!

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार ब्लाग पर आपकी उपस्थिति सदा खुशी से भर देती है।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०३-१०-२०२०) को ''गाँधी-जयंती' चर्चा - ३८३९ पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी,ये मेरे लिए सदा हर्ष का विषय है।

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  4. स्वयं की तलाश में
    उतरते निज के जो अंदर
    वो रव में भी नीरव पा जाते

    बहुत सुन्दर संदेश !! बहुत खूब !!अप्रतिम सृजन ।

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    1. बहुत बहुत आभार मीना जी आपका स्नेह मेरे लेखन में उर्जा भर देता है।
      सस्नेह।

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  5. नाव-नदी-किनारे-माझी-मझधार-धार... पूरा का पूरा दृश्य एक रचना में समाहित हो गया... अत्यंत सरल पर अत्यंत भावपूर्ण भाषा शैली में... रचना की सफलता हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें...!!!

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    1. सादर नमन आदरणीय अभिनव प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर।

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  6. बहुत सुंदर रचना सखी।

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    1. बहुत बहुत आभार सखी।
      उत्साहवर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  7. बहुत बहुत सा आभार दिव्यता जी मैं मुखरित मौन पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।

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  8. बहुत सुन्दर रचना कुसुम जी... बधाई!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      सादर।

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