आज नया इक गीत लिखूँ
गूँथ-गूँथ शब्दों की माला
आज नया इक गीत लिखूँ मैं।।
वीणा का जो तार न झनके
सरगम की धुन पंचम गाएँ
मन का कोई साज न खनके
नया मधुर सा राग सजाएँ
कुछ खग के कलरव मीठे से
पीहू का संगीत लिखूँ मैं।।
हीर कणों से शोभित अम्बर
ज्यों सागर में दीपक जलते
टिम-टिम करती निहारिकाएं
क्षितिज रेख जा सपने पलते
चंद्रिका से ढकी वसुंधरा
चंद्र प्रभा की प्रीत लिखूं मैं।।
मिहिका से अब निकल गया मन
धूप सुहानी निकल रही है
चटकन लागी चंद्र मल्लिका
नव दुल्हन का रूप मही है
मुखरित हो संगीत भोर का
तम पर रवि की जीत लिखूं मैं।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।