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Sunday, 29 September 2019

सर्वभाव क्षणिकाएं

तीन क्षणिकाएं

मन
मन क्या है? एक द्वंद का भंवर है,
मंथन अनंत बार एक से विचार है,
भंवर उसी पानी को अथक घुमाता है,
मन उन्हीं विचारों को अनवरत मथता है।

अंहकार
अंहकार क्या है? एक मादक नशा है,
बार बार सेवन को उकसाता रहता है,
 मादकता बार बार सर चढ बोलती है,
अंहकार सर पर ताल ठोकता रहता है।

क्रोध
क्रोध क्या है? एक सुलगती अगन है,
आग विनाश का प्रति रुप जब धरती है,
जलाती आसपास और स्व का अस्तित्व है,
क्रोध अपने से जुड़े सभी का दहन करता है।

                       कुसुम कोठारी।

Saturday, 28 September 2019

स्वागत मां दुर्गा

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि । एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि विनाशनम्।

नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं।

.     बरखा अब विदाई के
  अंतिम सोपान पर आ खडी है,
         विदा होती दुल्हन के
       सिसकियों के हिलोरों सी
      दबी-दबी सुगबुगाहट लिए।

            शरद ने अभी अपनी
            बंद अटरिया  के द्वार
         खोलने शुरू भी नही किए
              मौसम के मिजाज
     समझ के बाहर उलझे-उलझे।

        मां दुर्गा भी उत्सव का
   उपहार लिये आ गईं धरा पर
         चहुँ ओर नव निकेतन
          नव धाम सुसज्जित
  आवो करें स्वागत मुदित मन से।

                   कुसुम कोठारी।

Thursday, 26 September 2019

सुर और साज

सुर और साज

एक सुर निकला  उठ चला
जाके विधाता से तार  मिला।

संगीत में ताकत है इतनी
साज से उठा दिल में मचला
मस्तिष्क का हर तार झनका
गुनगुन स्वर मध्धम सा चला
दुखियों के दुख भी कम करता
सुख में जीवन सुरंग रंग भरता।
एक सुर..........

मधुर-मधुर वीणा बजती
ज्यों आत्मा तक रस भरती
सारंगी की पंचम  लहरी
आके हिया के पास ठहरी
सितार के सातों तार बजे
ज्यों स्वर लहरी अविराम चले।
एक सुर..........

ढोलक धुनक-धुनक डोली
चल कदम ताल मिलाले बोली
बांसुरी की मोहक धुन बाजी
ज्यों माधव ने  मुरली साजी
जल तरंग की मोहक तरंग
झरनो की कल कल अनंग।
एक सुर..........

तबले की है थाप सुहानी
देखो नाचे गुडिया रानी
मृदंग बोले मीठे स्वर में
मीश्री सी घोले तन उर में
एक तारा जब प्यार से बोले
भेद जीया के सारे खोले।
एक सुर......…..

पेटी बाजा बजे निराला
सप्त सुरों का सुर प्याला
और नगाड़ा करता शोर
ताक धिना-धिन नाचे मन-मोर
और बहुत से साज है खनके
सरगम का श्रृंगार बनके।
एक सुर.... .....
                 कुसुम कोठारी ।

Sunday, 22 September 2019

बेटियां पथरीले रास्तों की दुर्वा

बेटियाँ, पथरीले रास्तों की दुर्वा

रतनार क्षितिज का एक मनभावन छोर
उतर आया हो जैसे धीरे-धीरे क्षिति के कोर ।

जब चपल सी बेटियाँ उड़ती घर आँगन
अपने रंगीन परों से तितलियों समान ।

नाज़ुक,प्यारी मृग छौने सी शरारत में
गुलकंद सा मिठास घोलती बातों-बातों में ।

जब हवा होती पक्ष में बादल सा लहराती
भाँपती दुनिया के तेवर चुप हो बैठ जाती ।

बाबा की प्यारी माँ के हृदय की आस
भाई की सोन चिरैया आँगन का उजास ।

इंद्रधनुष सा लुभाती मन आकाश पर सजती
घर छोड़ जाती है तो मन ही मन लरजती ।

क्या है बेटियाँ लू के थपेड़ों में ठंडी पूर्वा
जीवन के पथरीले रास्तों में ऊग आई दुर्वा ।

           कुसुम कोठारी।

Friday, 20 September 2019

रूह से सजदा

रूह से सजदा

सोने दो चैन से मुझे न ख़्वाबों में ख़लल डालो,
न जगाओ मुझे यूं न वादों में  ख़लल डालो।

शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा
ए हवाओं ना रुक के यूं मौज़ों में ख़लल डालो।

रात भर रोई नरगिस सिसक कर बेनूरी पर अपने
निकल के ऐ आफ़ताब ना अश्कों में ख़लल डालो।

डूबती कश्तियां कैसे, साहिल पे आ ठहरी धीरे से
भूल भी जाओ ये सब ना तूफ़ानों में ख़लल डालो।

रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था दिल
रहमोकरम कैसा,अब न इबादतों में ख़लल डालो।

                  कुसुम कोठारी

Thursday, 19 September 2019

नश्वर जग

नश्वर जग
 
झरते पात जाते-जाते
बोले एक बात,
हे तरुवर ना होगा
मिलना किसी भांत ,
हम बिछुड़ तुम से अब,
कहीं दूर पड़ें या पास,
पातों का दुख देख कर
तरु भी हुआ उदास ,
बोला फिर भी वह एक
आशा वाली बात ,
हे पात सुनो ध्यान से
मेरी एक शाश्र्वत बात ,
जाने और आने का
कभी ना कर संताप ,
इस जग की रीत यही है
सत्य और संघात ,
नव पल्लव विहंस कर
कहते है एक बात,
कोई आवत जग में
और कोई है जात ।

              कुसुम कोठारी।

Tuesday, 17 September 2019

धुंआ-धुंआ ज़िंदगी

कहीं उजली,  कहीं स्याह अधेंरों की दुनिया ,
कहीं आंचल छोटा, कहीं मुफलिसी में दुनिया।

कहीं  दामन में चांद और  सितारे भरे हैं ,
कहीं ज़िन्दगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही है ।

कहीं हैं लगे हर ओर रौनक़ों के रंगीन मेले
कहीं  मय्यसर नही  दिन  को भी  उजाले ।

कहीं ज़िन्दगी महकती खिलखिलाती है
कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां है ।

कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा  है,
कहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा है।

कहीं खनकते सिक्कों की  खन-खन है,
कहीं कोई अपनी ही मैयत  को ढो रहा है ।

              कुसुम कोठारी।

Saturday, 14 September 2019

जगत और जीवात्मा

जगत और जीवात्मा

ओ गगन के चंद्रमा मैं शुभ्र ज्योत्सना तेरी हूं,
तूं आकाश भाल विराजित मैं धरा तक फैली हूं।

ओ अक्षूण भास्कर मैं तेरी उज्ज्वल  प्रभा हूं,
तूं विस्तृत नभ में आच्छादित मैं तेरी प्रतिछाया हूं‌।

ओ घटा के मेघ शयामल मैं तेरी जल धार हूं,
तूं धरा की प्यास हर, मैं तेरा तृप्त अनुराग हूं ।

ओ सागर अन्तर तल गहरे मैं तेरा विस्तार हूं,
तूं घोर रोर प्रभंजन है, मै तेरा अगाध उत्थान हूं।

ओ मधुबन के हर सिंगार, मै तेरा रंग गुलनार हूं,
तूं मोहनी माया सा है मैं निर्मल बासंती बयार हूं।

             कुसुम कोठारी।

Friday, 13 September 2019

हिंदी दिवस

आज हिंदी दिवस पर विशेष ।

हिंदी तो बस हिंदी, हिंदी सम बस हिंदी,
देवनागरी , देवताओं द्वारा रचित
सुंदर अक्षर माला,
सरल, सरस, शाश्वत
विश्व की किसी भाषा में नही
गुणवत्ता हिंदी  सम ,
अलंकार और उपमा,
सांगोपांग शब्दकोश
खोजने से भी ना मिले कहीं,
इतनी  विराट, अनंत, गहराई समेटे ,
किसी और भाषा के लिये
है कल्पनातीत।
हिंदी  तो बस  हिंदी ।

कुसुम कोठारी।

Wednesday, 11 September 2019

नंदन कानन

नंदन कानन

नंदन कानन महका आज मन में
श्वेत पारिजात महके तन मन में ।
फूल कुसमित,सुरभित चहुँ दिशाएं
द्रुम  दल  शोभित वन उर,  मन में ।
मलय सुगंधित  उडी पवन संग ,
देख घटा, पादप विहंसे निज मन में ।
कमल कुमुदिनी हर्षित हो सरसे ,
धरा हरित चुनर ओढ़, मुदित है मन में।
जल प्रागंण निज रूप संवारे लतिका,
निरखी निरखी लजावे मन में ।
कंचन जैसो नीर सर  सरसत
आज सखी नव राग है मन में ।

         कुसुम  कोठारी।

Saturday, 7 September 2019

हौसले की पतवार

हौसले की पतवार

जो फूलों सी ज़िंदगी जीते कांटे हज़ार लिये बैठे हैं,
दिल में फ़रेब और होंठों पर झूठी मुस्कान लिये बैठें हैं।

खुला आसमां ऊपर,ख्वाबों के महल लिये बैठें हैं
कुछ, टूटते अरमानों का ताजमहल लिये  बैठें  हैं।

सफेद  दामन वाले भी दिल दाग़दार  लिये बैठे हैं
क्या लें दर्द किसी का कोई अपने हज़ार लिये बैठें हैं।

हंसते  हुए चहरे वाले दिल लहुलुहान लिये बैठे हैं
एक भी ज़वाब नही, सवाल बेशुमार लिये बैठें हैं।

टुटी कश्ती वाले हौसलों  की पतवार  लिये बैठे हैं
डूबने से डरने वाले  साहिल पर नाव  लिये बैठे हैं।

                  कुसुम  कोठारी।

Friday, 6 September 2019

मन काला तो क्या....व्यंग

मन काला तो क्या....व्यंग।

मन काला तो क्या हुवा उजला है परिधान,
ऊपर से सब ठीक रख अंदर काली खान ।

बालों को खूब संवार दे अंदर जूं का ढेर,
ऊपर  से  रख  दोस्ती मन  में चाहे  बैर ।

बलवानों की कर खुशामद और जी हजूरी ,
कमज़ोरों पर रौब झाड़ रख थोड़ी सी दूरी।

बात बनती जहां दिखे बना गर्दभ जी को बाप,
जहां नहीं निज कारज सरे अपना रस्ता नाप।

मौके का जो  लाभ उठाते वो ही बुद्धिमान ,
अपना कह सब हथियाले न वस्तु पराई मान ।

कुसुम कोठारी।