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Tuesday, 30 January 2018

इंद्रधनुषी स्वप्निल बचपन

ख्वाबों के दयार पर एक झुरमुट है यादों का
एक मासूम परिंदा फुदकता यहाँ वहाँ यादों का ।

सतरंगी धागों का रेशमी इंद्रधनुषी शामियाना
जिसके तले मस्ती मे झुमता एक भोला बचपन ।

सपने थे सुहाने उस परी लोक की सैर के
वो जादुई रंगीन परियां जो डोलती इधर उधर।

मन उडता था आसमानों के पार कहीं दूर
एक झूठा सच, धरती आसमान है मिलते दूर ।

संसार छोटा सा लगता ख्याली घोडे का था सफर
एक रात के बादशाह बनते रहे संवर संवर ।

दादी की कहानियों मे नानी थी चांद के अंदर
सच की नानी का चरखा ढूढते नाना के घर ।

वो झूठ भी था सब तो कितना सच्चा था बचपन
ख्वाबों के दयार पर एक मासूम सा बचपन।

एक इंद्रधनुषी स्वप्निल रंगीला  बचपन।

              कुसुम कोठारी।

Monday, 29 January 2018

हरि आओ ना

आया बसंत मनभावन
हरि आओ ना।

राधा हारी कर पुकार
हिय दहलीज पर बैठे हैं,
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना।

फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागिनीयां
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।

सतरंगी मौसम सुरभित
पात पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियां सुध बिसराय
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।

सृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमदनी सेज सजाय।
हरि आओ ना।

    कुसुम कोठारी।

हरि आओ ना

आया बसंत मनभावन
हरि आओ ना।

राधा हारी कर पुकार
हिय दहलीज पर बैठे हैं,
निर्मोही नंद कुमार
कालिनी कूल खरी गाये
हरि आओ ना।

फूल फूल डोलत तितलियां
कोयल गाये मधु रागिनीयां
मयूर पंखी भई उतावरी
सजना चाहे भाल तुम्हारी
हरि आओ ना।

सतरंगी मौसम सुरभित
पात पात बसंत रंग छाय
गोप गोपियां सुध बिसराय
सुनादो मुरली मधुर धुन आय
हरि आओ ना।

सृष्टि सजी कर श्रृंगार
कदंब डार पतंगम डोराय
धरणी भई मोहनी मन भाय
कुमदनी सेज सजाय।
हरि आओ ना।

    कुसुम कोठारी।

Tuesday, 23 January 2018

सदा बुनती हूँ तेरी

सदा सुनती हूं तेरी
जब भी अवलोकन करती हूं
अनुग्रह तेरा दिखता मुझे
जब अवलोकन करती हूं।

चिड़ियों की मधुर चहक
तेरी सदा लगती श
सुरभित फूलों की स्मित मे
सूरत तेरी दिखती
जब जब कालिमा होती गहरी,
 नव अरूणाभा से
प्रकाशित अम्बर मे
तेरा दिव्य स्वरूप आलोकित होता                         
जब भी संशय से
होती विकम्पित मै
मधुमय आशा से करते
अकम्पित मुझे
जीवन जब जब भी
हुवा विजड़ित मेरा
एक किरण करती उल्लासित
कर्म पुष्ट से तरंगित मुझे

सदा सुनती हूं, अनुग्रह दिखता मुझे तेरा
    जब भी अवलोकन  करती हूं मै तेरा ।
                कुसुम कोठारी।

Monday, 22 January 2018

नेताजी

"तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा"
गरजा था एक शेर बन नारायणी उद्घघोष,
नेताजी को कोटिशः वंदन।

विजय शंख का नाद है गूंजा
वीरों की हुंकार है  गरजी
सोते शेर जगाये कितने
आह्वान है आज सभी को
उठो चलो प्रमाद को त्यागो
मां जननी अब बुला रही
वीर सपूतों अब तो जागो
आंचल मां का तार हुवा
बाजुु है अब  लहुलुहान
कब मोह नींद छोड़ोगे ?
क्या मां की आहुती होगी
या फिर देना है निज प्राण
घात लगाये जो बैठे थे अब
वो खसोट रहे खुल्ले आम
धर्म युद्ध तो लड़ना होगा
पाप धरा का हरना होगा
आज हुवा नारायणी उदघोष
जाग तूं और जगा जन मन मे जोश ।
             कुसुम कोठारी ।

Sunday, 21 January 2018

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आज न आना मधुबन मे

आज न आना कोई मधुबन मे
आज लग्यो मधुमास सखी
आज नव मधुमास की
है सुरभित मधु वात सखी,
किसलय डोले कमल दल खिले
भ्रमर करे गुंजार
कच्ची कली कचनार की
झूमे मलय संग आज
ऐसी शोभा देखने आये
स्वर्ग से, देव देवी मन भाये
सारे सुर आज बरसावे
सुरभित पारिजात 
तारक दल शोभित अंबर
चंद्र भरे अनुराग गुलाल
कृष्ण नही पाहन सखी
वो राधा की श्वास
चिनमय चिदानंद माधव
बृषभानु सुता श्रृंगार
आज न आना कोई मधुबन सखी
आज राधा संग कृष्ण रचाऐ रास।।
                कुसुम कोठारी ।
   


Saturday, 13 January 2018

अलाव

अलाव
अच्छा लगता है ना, जाडे मे अलाव सेकना
खुले आसमान के नीचे बैठ सर्दियों से लडना
हां कुछ देर गर्माहट का एहसास
तन मन को अच्छा ही लगता है
पर उस अलाव का क्या
जो धधकता रहता हर मौसम
अंदर कहीं गहरे झुलसते रहते जज्बात
बेबसी,बेकसी और भुखे पेट की भट्टी का अलाव
गर्मीयों मे सूरज सा जलाता अलाव
धधक धधक खदबदाता
बरसात मे सिलन लिये धुंवा धुंवा अलाव
बाहर बरसता सावन, अंदर सुलगता
पतझर मे आशाओं के झरते पत्तों का अलाव
उडा ले जाता कहीं उजडती अमराइयों मे
सर्दी मे सुकून भरा गहरे तक छलता अलाव।
                 कुसुम कोठारी।

Friday, 12 January 2018

अलाव

अलाव
अच्छा लगता है ना, जाडे मे अलाव सेकना
खुले आसमान के नीचे बैठ सर्दियों से लडना
हां कुछ देर गर्माहट का एहसास
तन मन को अच्छा ही लगता है
पर उस अलाव का क्या
जो धधकता रहता हर मौसम
अंदर कहीं गहरे झुलसते रहते जज्बात
बेबसी,बेकसी और भुखे पेट की भट्टी का अलाव
गर्मीयों मे सूरज सा जलाता अलाव
धधक धधक खदबदाता
बरसात मे सिलन लिये धुंवा धुंवा अलाव
बाहर बरसता सावन, अंदर सुलगता
पतझर मे आशाओं के झरते पत्तों का अलाव
उडा ले जाता कहीं उजडती अमराइयों मे
सर्दी मे सुकून भरा गहरे तक छलता अलाव।
                 कुसुम कोठारी।

Thursday, 11 January 2018

बस चुप हो देखिये



अब सिर्फ देखिये, बस चुप हो देखिये
पांव की ठोकर मे,ज़मी है गोल कितनी देखिये।

क्या सच क्या झूठ है, क्या हक क्या लूट है
मौन हो सब देखिये राज यूं ना खोलिये
क्या जा रहा आपका बेगानी पीर क्यों झेलिये
कोई पूछ ले अगर तो भी कुछ ना बोलिये
अब सिर्फ देखिये बस चुप हो देखिये..

गैरत अपनी को दर किनार कर बैठिये
कुछ दिख जाय तो मुख अपना मोडिये
कुछ खास फर्क पडना नही यहां किसीको
कुछ पल मे सामान्य होता यंहा सभी को
अब सिर्फ देखिये, बस चुप हो देखिये..

ढोल मे है पोल कितनी बजा बजा के देखिये
मार कर ठोकर या फिर ढोल को ही तोडिये
लम्बी तान सोइये कान पर जूं ना तोलिये
खुद को ठोकर लगे तो आंख मसल कर बोलिये।
अब सिर्फ क्यों देखिये, लठ्ठ बजा के बोलिये।
                 कुसुम कोठारी

गंगा का दर्द