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Saturday, 30 January 2021

प्राची पर स्वर्णिम आभा


 लो प्राची के नीले पट पर 

सूर्य निशा को कोर लिया ।


जल उठा एक दीपक स्वर्णिम

उषा के लहरे आंचल में

गूंज रही है सरगम जैसे

सरि के निर्मल कल-कल में

अभी पपीहा जाकर सोया

रटा रात भर रोर पिया।।


चलती होले होले अनमन

याद पुरानी का था घेरा

मन के सूने मधुबन पर है

सूखी लतिका का डेरा

शुष्क पात की झांझरिया ने

शांत चित्त झकझोर दिया।।


अरविंद महके मधुप डोलते

किरणें खेल रही जल में

चारों ओर उजाला पसरा

यौवन चढ़ा चलाचल में

उड़ते चपल पाखियों ने फिर

तन मन सभी विभोर किया।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 28 January 2021

एक बूँद का आत्म बोध


 एक बूंद का आत्म बोध


पयोधर से निलंबित हुई

अच्युता का भान एक क्षण

फिर वो बूंद मगन अपने में चली

सागर में गिरी

पर भटकती रही अकेली

उसे सागर नही

अपने अस्तित्व की चाह थी

महावीर और बुद्ध की तरह

वो चली निरन्तर

वीतरागी सी

राह में रोका एक सीप ने 

उस के अंदर झिलमिलाता

एक मोती बोला

एकाकी हो कितनी म्लान हो

कुछ देर और

बादलों के आलंबन में रहती

मेरी तरह स्वाती नक्षत्र में

बरसती तो देखो

मोती बन जाती

बूंद ठिठकी

फिर लूँ आलंबन सीप का !!

नही मुझे अपना अस्तित्व चाहिये

सिद्ध हो विलय हो जाऊँ एक तेज में ।


कहा उसने.... 

बूँद हूँ तो क्या

खुद अपनी पहचान हूँ 

मिल गई गर समुद्र में क्या रह जाऊँगी

कभी मिल मिल बूँद ही बना सागर 

अब सागर ही सागर है बूंद खो गई

सीप का मोती बन कैद ही पाऊंगी 

निकल भी आई बाहर तो   

किसी गहने मे गुंथ जाऊंगी

मैं बूँद हूँ स्वयं अपना अस्तित्व

अपनी पहचान बनाऊँगी ।।


       कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Monday, 25 January 2021

हमारे वीर


 गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं ।

कुछ मुक्तक वीरों को समर्पित।🙏


1 हुतात्मा

हुतात्मा वे अमर होंगी  दिये है प्राण सीमा पर ।

करें वंदन मचा क्रंदन भरा हर ओर जय का स्वर ।

बहाकर रक्त निज तन का बचाते देश का गौरव।

निछावर कर चले सब कुछ वतन पर वार कर निज सर।।


2 हमारे वीर

उठा कर हाथ में मिट्टी,सदा सर पर लगाते हैं।

हमारे वीर सीमा पर विजय की लौ जगाते हैं।

रखे सर हाथ में चलते, निछावर जान करते जो।

कदर करते सदा उनकी सदा सर भी नवाते हैं।।


3 हमारे प्रहरी

लिखेंगें लेख उनके हम कहानी शोर्य की कहते।

करें क्या बात उनकी हम गहन वो वार भी सहते।

सुरक्षा देश की करने समर्पण भाव अर्पित कर।

हमारे वीर सीमा पर डटे तत्पर

सदा रहते।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

Sunday, 24 January 2021

बेटियाँ


 राष्ट्रीय बालिका दिवस पर सभी खिलती कलियों को समर्पित 


बेटियाँ


और फिर वो उड़ चली लो 

तोड़ कर सब आज बेड़ी 

थाम टुकड़ा आसमानी 

जो बची खुशियाँ समेटी।।


थी हृदय में एक ज्वाला 

कामना पर सात पहरे 

मार कर जीती रही वो 

मन दबाये भाव गहरे 

मान औ सम्मान पर फिर 

शीघ्र सब की आँख टेढ़ी।।


कौन सी घड़ियों बनी थी 

विधि अमानित सी कठिनतम 

आश्रिता होगी सदा ही 

घोर जीवन में घिरा तम 

बंद बाड़े खूंट बाँधी 

मौन रंभाती बछेड़ी।।


कम नही बेटी किसी से 

ये प्रमा‌णित हो चुका है 

योग्यता के सामने अब 

हर किसी का सर झुका है 

कल्पना ही नाचती हैं 

धार दुर्गा रूप बेटी ।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 21 January 2021

रात का सौंदर्य


 विज्ञात योग छंद आधारित गीत।

10/8

रात का सौंदर्य


चांदी हैं फैली 

नदिया के तट 

साथ चलें सजनी 

चल वंशीवट।


झांझर है झनकी 

मन भी बहका 

बागों में कैसा 

सौरभ महका 

चहुं दिशा पसरे 

उर्मि भरे घट।।


हवा चली मधुरिम 

झिंगुर बोले 

कानों में जैसे 

मधु रस घोले

संभालो गोरी 

बहक उड़ी लट।


आते जब कान्हा 

बंसी बजती

नाचे ललनाएं 

राधे सजती

बोले जग सारा 

श्री हरि नटखट।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 19 January 2021

निराशा से आशा की ओर


 निराशा से आशा की ओर


भरा हुआ है विष का प्याला 

कैसे उस को पीना हो।

कठिन परीक्षा की घड़ियाँ हैं

फिर भी जोर लगाना हो।


उन्मुक्त गगन में उड़ते थे

आंखों में भी सपने थे

धूप छांव आती जाती

पर वो दिन भी अच्छे थे 

बेमौसम की गिरी बिजुरिया

कैसे पंख बचाना हो।।


तप्त धरा है राहें मुश्किल

और पांव में छाले हैं

ठोकर में पत्थर है भारी

छाये बादल काले हैं

टूटे पंखों को लेकर के

कैसे जीवन जीना हो।।


सब कुछ दाव लगा कर देखो

तरिणि सिंधु में डाली है

नजर नहीं आता प्रतीर भी

और रात भी काली है

स्वयं बाजुओं के दम पर ही

कुछ खोना कुछ पाना हो।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday, 16 January 2021

विपन्नता


 विपन्नता


नारों से कब पेट भरेगा

छोड़ो अब तो दुर्जनता

जनता भोग रही दुख कितने

कारण है बस विपन्नता।


हाहाकार मचा है भारी

नैतिकता की डोर सड़ी

उठा पटक में बापूजी की

ले भागा है  चोर छड़ी

ऐसे भारत के सपने कब

बनी विवशता अभिन्नता ।।


साधन नही पर्याप्त मात्रा

रस्सा कस्सी मची हुई

अपनी अपनी रोटी सेके

सिद्धांतों पर चढ़ी जुई

मरे भूख से जीव तड़पते

एक शाप है निर्धनता।।


दशानंन सी लिप्सा जागी

मानवता का भाव दहा 

प्रचण्ड विषाणु ऐसा आया

दानवता बस दिखा रहा 

शापित सी हर राह हुई है

गली गली में निर्जनता ।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

Tuesday, 12 January 2021

सुनहरा लड़कपन


 सुनहरा लड़कपन


बचपन का वो समय सुहाना

पैठ रहा गहरे गहरे।


गीली मिट्टी पाल बांध कर

मोहक नव रचना करते

महल सिपाही इक खाई  

शेर चिते भालू भरते

बोल घरोंदा नित कुछ कहता

स्वप्न रात ठहरे ठहरे।।


परी लोक तक दौड़ लगाते

कितने जाले बुनते थे

माँ पिता और गुरूजनों को

बड़े ध्यान से सुनते थे

और अभी तक वो पावन पल

आंखों में लहरे लहरे।।


लेकर हाथों में पुस्तक को

करते ढोंग पढ़ाई का 

शत्रु दल को कैसे पछाड़ें

बनता ढ़ांच चढाई का

सब वर्जना हवा में उड़ती

तोड़ सभी पहरे पहरे।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

रू-ब-रू


 फुरसत-ए-ज़िंदगी 


फुरसत-ए-ज़िंदगी कभी तो हो रू-ब-रू।

ढल चला आँचल अब्र का भी हो  सुर्ख़रू । 


पहरे बिठाये थे आसमाँ पर आफ़ताब ने

वो ले  गया इश्राक़ आलम हुवा बे-आबरू ।


चलो चाँद पर कुछ क़समे उठा देखा जाए।

रौशन रहा माहताब-ए-अल शब-ए-आबरू।


इश्राक़=चमक

अल =कला


               कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Saturday, 9 January 2021

साँझ ढ़ले


 विज्ञात छंद आधारित नव गीत 


साँझ ढ़ली


साँझ ढ़ली विभा छाई 

चँद्र रचे नयी क्रीड़ा ।

मादक सा उजाला है

अंतर चातकी पीड़ा।।


आँचल में खिला तारा

स्वप्न झड़े कड़ी टूटी।

आस रिती रही सारी 

प्रीत उसी घड़ी फूटी।

काल बिता फिरे खाली

हाथ उठा लिया बीड़ा।।


जीवन नीर का तोड़ा

बूंद रसा गिरी सारी

रिक्त हुआ झुठी माया

बीत गयी रही खारी

अंतर भीगती काया 

राग वृतांत का छेडा।।


रात नमी सिली भीगी

दारुण भाव सी बीती।

वांछित था अभी आना

अद्भुत काल की रीती।

आज न घाव दे जाना

लाख अभी रखी व्रीड़ा।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 7 January 2021

मेरी भावना


 चार क्षणिकाएं ~ मेरी भावना 


भोर की लाली लाई 

आदित्य आगमन की बधाई ।


रवि लाया एक नई किरण 

संजोये जो सपने हो पूरण

पा जायें सच में नवजीवन 


उत्साह की सुनहरी धूप का उजास 

भर दे सबके जीवन मे उल्लास ।




साँझ ढले श्यामल चादर 

जब लगे ओढ़ने विश्व!


नन्हें नन्हें दीप जला कर

प्रकाश बिखेरो चहुँ ओर

दे आलोक हरे हर तिमिर


त्याग अज्ञान मलीन आवरण

पहन ज्ञान का पावन परिधान ।




मानवता भाव रख अचल

मन में रह सचेत प्रतिपल


सह अस्तित्व समन्वय समता 

क्षमा सजगता और परहितता

हो रोम रोम में संचालन 


हर प्राणी पाये सुख आनंद

बोद्धित्व का हो घनानंद।




लोभ मोह जैसे अरि को हरा 

दे जीवन को समतल धरा


बाह्य दीप मालाओं के संग 

प्रदीप्त हो दीप मन अंतरंग

जीवन में जगमग ज्योत जले


धर्म ध्वजा सुरभित अंतर मन

जीव दया का पहन के वसन


          कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Tuesday, 5 January 2021

निसर्ग मनोहर


 चौपाई छंद आधारित गीत।


निसर्ग मनोहर

चंदन वन महके महके से

पाखी सौरभ में बहके से

लिपट व्याल बैठे हैं घातक

चाँद आस में व्याकुल चातक।।


रजनी आई धीरे धीरे

इंदु निशा का दामन चीरे

नभ पर सुंदर तारक दल है

निहारिका झरती पल पल है।।


निशि गंधा से हवा महकती 

झिंगुर वाणी लगे चहकती

नाच रही उर्मिल उजियारी

खिली हुई है चंपा क्यारी।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

आँसू क्षणिकाएं


 आँसू क्षणिकाएं


बह-बह नैन परनाल भये

दर्द ना बह पाय

हिय को दर्द रयो हिय में

कोऊ समझ न पाय।

~~

अश्क  बहते  गये

हम दर्द  लिखते  गये

समझ न  पाया  कोई

बंद किताबों में दबते गये ।

~~

रोने वाले सुन आँखों में

आँसू ना लाया कर

बस चुपचाप रोया कर

नयन पानी देख अपने भी

कतरा कर निकल जाते हैं।

~~

दिल के खजानों को

आँखों से न लुटाया कर

ये वो दौलत है जो रूह में

महफूज़ रहती है।

~~

दर्द को यूँ सरेआम न कर

कि दर्द अपना नूर ही खो बैठे।

~~

आँखों  से मोती गिरा

हिय को हाल बताय।

लब कितने खामोश रहे

आँखें हाल सुनाय।

~~

   कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Sunday, 3 January 2021

दूध मुंहा दौड़ चला


 दूध मुंहा दौड़ चला ।


जन्म लेते ही साल  दौड़ने लगा !!

हाँ वो गोड़ालिया नहीं चलता, नन्हें बच्चों की तरह,

बस सीधा समय की कोख से अवतरित होकर समय के पहियों पर चढ़ कर भागने लगता है।

उसे भागना ही पड़ता है वर्ना इतने ढेर काम सिर्फ ३६५ दिन में कैसे पूरा करें पायेगा।


वह स्वस्थ हो या अस्वस्थ उसे बस इतना ही जीवन काल मिलता है।


वो जाते जाते अपनी प्रतिछाया छोड़ जाता है फिर उतने ही काल के लिए।


वह रोगी हो, असाध्य रोगों से ग्रसित हो तो भी स्वयं मृत्यु को वरण करने का उसे हक नहीं।

उसे सारा ज़माना कोसता है,

चाहता है कि ये कलमुंहा चला जाए जल्दी , पर उसे दुआ बददुआ दोनों नहीं लगती। 


चिर शाप या वरदान से ग्रसित है, ये जन्मा अजन्मा न जाने किस देव या ऋषि से।


बस समय से इसका नाता हर पल रहता है, ये समय की पुस्तक में इतिहास बन कर रहता है। या फिर लोगों के दिल में खुशी की सौगात या ग़मो  का अंधकार बनकर।।


अलविदा!

सुस्वागतम !!


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा '

Friday, 1 January 2021

नारी काम पड़े तलवार


 आल्हा छंद आधारित गीत


नारी काम पड़े तलवार


नारी को मत समझो कोमल

काम पड़े बनती तलवार

संबल बनती दीन दुखी की

खल दुर्जन पर करती वार।


चंदन बन महकाती है तो

ज्वाला सी दहकाती फाग 

चंदा की शीतलता उसमें

सूरज जैसी जलती आग

प्रेम रखो तो सबसे न्यारी 

दुष्ट जनो से रखती खार।।


आंख उठे जो ले बेशर्मी

उन आँखों से नोचे ज्योत

बन कर दुर्गा सी संहारक

पापी जन की बनती मौत

शंभू सा ताण्ड़व कर सकती

काली जैसे काल सवार।। 


शोणित नाश करें कंसों का

धारण कर वो अम्बा रूप

जाग उठी है जो थी निर्बल 

तोड़ चुकी वो गहरे कूप

बोझ उठाती धरती जैसे

और किसी पर कब वो भार।।


कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'।