निराशा से आशा की ओर
भरा हुआ है विष का प्याला
कैसे उस को पीना हो।
कठिन परीक्षा की घड़ियाँ हैं
फिर भी जोर लगाना हो।
उन्मुक्त गगन में उड़ते थे
आंखों में भी सपने थे
धूप छांव आती जाती
पर वो दिन भी अच्छे थे
बेमौसम की गिरी बिजुरिया
कैसे पंख बचाना हो।।
तप्त धरा है राहें मुश्किल
और पांव में छाले हैं
ठोकर में पत्थर है भारी
छाये बादल काले हैं
टूटे पंखों को लेकर के
कैसे जीवन जीना हो।।
सब कुछ दाव लगा कर देखो
तरिणि सिंधु में डाली है
नजर नहीं आता प्रतीर भी
और रात भी काली है
स्वयं बाजुओं के दम पर ही
कुछ खोना कुछ पाना हो।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
अति सुंदर कविता है
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
सादर।
लाजवाब भावाभिव्यक्ति ..विषम परिस्थितियों में स्वयं पर विश्वास रखने का प्रेरक भाव लिए अत्यंत सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteव्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना के भाव मुखरित हुए मीना जी ।
Deleteस्नेहसिक्त प्रतिक्रिया के लिए ढेर सा स्नेह आभार।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
सुन्दर नवगीत।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 20 जनवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी,रचना को मान देने के लिए।
Deleteमुखरित मौन पर मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
सादर।
बहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteरचना को मान देने के लिए।
चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी मैं।
सादर।
सुंदर सृजन....
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर प्रेरक नवगीत दी।
ReplyDeleteबेहतरीन भाव एवं शब्द संयोजन।
सादर।
बहुत बहुत सा स्नेह आभार श्वेता।
Deleteआपके आने भर से रचना सार्थक हो जाती है मेरी ।
सस्नेह।
मुझे सदा से यही लगता रहा है कि गद्य लिखना आसान है जो मैं कर सकता हूँ ! कविता एक जटिल प्रक्रिया है ! मुश्किल है इसे रचना ! पर पढ़ना बहुत सुखद लगता रहा है ! ऐसा सुखद एहसास कराने के लिए हार्दिक आभार !
ReplyDeleteगद्य लिखना आसान हो सकता है गगन जी लेकिन गद्य में विषय चयन, धाराप्रवाहता, रोचकता, भाषा , विषय पर पूर्ण शोध ,तथ्य और कहने का तरीका जो आप का है वो काबिले तारीफ है।
Deleteआपका हर आलेख शानदार होता है।
काव्य आपको सुखद अहसास देता है ये हम सभी कवि कवियत्रियों के लिए सचमुच सुखद अहसास है।
बहुत बहुत आभार।
सादर।
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
सब कुछ दाव लगा कर देखो
ReplyDeleteतरिणि सिंधु में डाली है
नजर नहीं आता प्रतीर भी
और रात भी काली है
सुंंदर शब्द चयन
सुंदर भाव
सुंदर कविता...
मन मुग्ध हो गया।
अनंत शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत बहुत आभार आपका,रचना के भाव स्पष्ट करती सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी ।
Deleteसस्नेह वर्षा जी।
बहुत सुंदर नवगीत सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत स्नेह आभार सखी।
Deleteवाह!बेहतरीन सृजन आदरणीय दी।
ReplyDeleteसादर
ढेर सा स्नेह आभार अनिता आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteहर परिस्थिति का सामना करने की प्रेरणा देती अनुपम कृति..
ReplyDeleteरचना के भाव पक्ष को आत्मसात करने के लिए हृदय तल से आभार।
Deleteसार्थक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।