Tuesday, 19 January 2021

निराशा से आशा की ओर


 निराशा से आशा की ओर


भरा हुआ है विष का प्याला 

कैसे उस को पीना हो।

कठिन परीक्षा की घड़ियाँ हैं

फिर भी जोर लगाना हो।


उन्मुक्त गगन में उड़ते थे

आंखों में भी सपने थे

धूप छांव आती जाती

पर वो दिन भी अच्छे थे 

बेमौसम की गिरी बिजुरिया

कैसे पंख बचाना हो।।


तप्त धरा है राहें मुश्किल

और पांव में छाले हैं

ठोकर में पत्थर है भारी

छाये बादल काले हैं

टूटे पंखों को लेकर के

कैसे जीवन जीना हो।।


सब कुछ दाव लगा कर देखो

तरिणि सिंधु में डाली है

नजर नहीं आता प्रतीर भी

और रात भी काली है

स्वयं बाजुओं के दम पर ही

कुछ खोना कुछ पाना हो।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

29 comments:

  1. अति सुंदर कविता है

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
      सादर।

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  2. लाजवाब भावाभिव्यक्ति ..विषम परिस्थितियों में स्वयं पर विश्वास रखने का प्रेरक भाव लिए अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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    1. व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना के भाव मुखरित हुए मीना जी ।
      स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया के लिए ढेर सा स्नेह आभार।

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज बुधवार 20 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आपका यशोदा जी,रचना को मान देने के लिए।
      मुखरित मौन पर मैं अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  5. बहुत बहुत सुन्दर रचना

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  6. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21.01.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
    धन्यवाद

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      रचना को मान देने के लिए।
      चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी मैं।
      सादर।

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  7. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  8. बहुत सुंदर प्रेरक नवगीत दी।
    बेहतरीन भाव एवं शब्द संयोजन।

    सादर।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार श्वेता।
      आपके आने भर से रचना सार्थक हो जाती है मेरी ।
      सस्नेह।

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  9. मुझे सदा से यही लगता रहा है कि गद्य लिखना आसान है जो मैं कर सकता हूँ ! कविता एक जटिल प्रक्रिया है ! मुश्किल है इसे रचना ! पर पढ़ना बहुत सुखद लगता रहा है ! ऐसा सुखद एहसास कराने के लिए हार्दिक आभार !

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    1. गद्य लिखना आसान हो सकता है गगन जी लेकिन गद्य में विषय चयन, धाराप्रवाहता, रोचकता, भाषा , विषय पर पूर्ण शोध ,तथ्य और कहने का तरीका जो आप का है वो काबिले तारीफ है।
      आपका हर आलेख शानदार होता है।
      काव्य आपको सुखद अहसास देता है ये हम सभी कवि कवियत्रियों के लिए सचमुच सुखद अहसास है।
      बहुत बहुत आभार।
      सादर।

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  10. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  11. सब कुछ दाव लगा कर देखो
    तरिणि सिंधु में डाली है
    नजर नहीं आता प्रतीर भी
    और रात भी काली है

    सुंंदर शब्द चयन
    सुंदर भाव
    सुंदर कविता...

    मन मुग्ध हो गया।
    अनंत शुभकामनाओं सहित,
    डॉ. वर्षा सिंह

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    1. बहुत बहुत आभार आपका,रचना के भाव स्पष्ट करती सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी ।
      सस्नेह वर्षा जी।

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  12. बहुत सुंदर नवगीत सखी

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    1. बहुत बहुत स्नेह आभार सखी।

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  13. वाह!बेहतरीन सृजन आदरणीय दी।
    सादर

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    1. ढेर सा स्नेह आभार अनिता आपकी प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।

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  14. हर परिस्थिति का सामना करने की प्रेरणा देती अनुपम कृति..

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    1. रचना के भाव पक्ष को आत्मसात करने के लिए हृदय तल से आभार।
      सार्थक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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