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Saturday, 30 January 2021

प्राची पर स्वर्णिम आभा


 लो प्राची के नीले पट पर 

सूर्य निशा को कोर लिया ।


जल उठा एक दीपक स्वर्णिम

उषा के लहरे आंचल में

गूंज रही है सरगम जैसे

सरि के निर्मल कल-कल में

अभी पपीहा जाकर सोया

रटा रात भर रोर पिया।।


चलती होले होले अनमन

याद पुरानी का था घेरा

मन के सूने मधुबन पर है

सूखी लतिका का डेरा

शुष्क पात की झांझरिया ने

शांत चित्त झकझोर दिया।।


अरविंद महके मधुप डोलते

किरणें खेल रही जल में

चारों ओर उजाला पसरा

यौवन चढ़ा चलाचल में

उड़ते चपल पाखियों ने फिर

तन मन सभी विभोर किया।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

25 comments:

  1. सुन्दर बिम्बों के साथ
    बेहतरीन नवगीत।

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    1. जी आदरणीय आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सादर ‌

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  2. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन हुआ।
      सादर।

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय ‌
      सादर।

      Delete
  4. बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचना |

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    Replies
    1. सुंदर उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सार्थक हुआ।
      सादर।

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  5. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका गगन जी।
      सादर।

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  6. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 01 फ़रवरी 2021 को 'अब बसन्त आएगा' (चर्चा अंक 3964) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव


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    1. बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
      मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

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  7. चारों ओर उजाला पसरा

    यौवन चढ़ा चलाचल में

    उड़ते चपल पाखियों ने फिर

    तन मन सभी विभोर किया।

    वाह! वाह! वाह! सुंदर सृजन।
    बधाई।
    आपने मन रसमय कर दिया। आभार।

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    1. संधु जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से लेखन में नव उर्जा का संचार हुआ।
      सस्नेह आभार आपका।

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  8. अच्छी रचना, बधाई आपको।

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    1. ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।
      बहुत बहुत आभार आपका।

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  9. वाह!सराहना से परे दी समझ नहीं आता कौन से बंद को बेहतर कहूँ।
    सादर

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    1. सस्नेह आभार प्रिय बहना।
      आपकी मनभावन टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

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  10. तन मन अति विभोर हुआ । अति सुन्दर भाव एवं कथ्य ।

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    1. बहुत बहुत आभार अमृता जी सुंदर सराहना से रचना गतिमान हुई।
      सस्नेह।

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  11. अति मनमोहक सृजन दी।
    हर बंध सरस और मनभावन है।
    प्रकृति पर आपकी लेखनी का सहज प्रवाह निःशब्द कर जाता है सदा।
    सादर।

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार श्वेता, आपकी सुंदर प्रतिक्रिया सच मन विभोर कर देती है।
      लेखन को प्रवाह देती मोहक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  12. Replies
    1. जी लेखन को समर्थन देती प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई ।
      सादर आभार आपका।

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  13. अरविंद महके मधुप डोलते
    किरणें खेल रही जल में
    चारों ओर उजाला पसरा
    यौवन चढ़ा चलाचल में
    उड़ते चपल पाखियों ने फिर
    तन मन सभी विभोर किया।।

    वाह !!!
    बहुत सुंदर चित्रण कुसुम जी 🌹🙏🌹

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