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Friday, 28 June 2019

पहली बारिश की दस्तक

पहली बारिश की दस्तक

दस्तक दे रहा, दहलीज पर कोई
चलूं उठ के देखूं कौन है,
कोई नही दरवाजे पर
फिर ये धीरे धीरे मधुर थाप कैसी?
चहुँ ओर एक भीना सौरभ
दरख्त भी कुछ मदमाये से
पत्तों की सरसराहट
एक धीमा राग गुनगुना रही
कैसी स्वर लहरी फैली
फूल कुछ और खिले खिले
कलियों की रंगत बदली सी
माटी महकने लगी है
घटाऐं काली घनघोर,
मृग शावक सा कुलाँचे भरता मयंक
छुप जाता जा कर उन घटाओं के पीछे
फिर अपना कमनीय मुख दिखाता
फिर छुप जाता
कैसा मोहक खेल है
तारों ने अपना अस्तित्व
जाने कहां समेट रखा है
सारे मौसम पर मदहोशी कैसी
हवाओं में किसकी आहट
ये धरा का अनुराग है
आज उसका मनमीत
बादलों के अश्व पर सवार है
ये पहली बारिश की आहट है
जो दुआ बन दहलीज पर
बैठी दस्तक दे रही है
चलूं किवाडी खोल दूं
और बदलते मौसम के
अनुराग को समेट लूं
अपने अंतर स्थल तक।

         कुसुम कोठारी।

Thursday, 27 June 2019

रिमझिम का संगीत बारिश

रिमझिम का संगीत बारिश

बारिश की बूंदों में
        जो सरगम होती
वह तन चाहे ना भिगोती
      पर मन भिगो देती ।

प्यासी कई मास से
       विरहन जो धरा थी
आज मिला बूंदों सा मन मीत
   धरा के अंग जागा अनंग ।

ढोलक पर बादल की थाप थी
     रिमझिम का संगीत था
       आज  धरती के पास
उसका साजन मन मीत था ।

          कुसुम  कोठारी ।



Sunday, 23 June 2019

घन

पवन की पालकी
सवार होके घन,
निकले शान से।

काले कजरारे
नीर भार भरे घन,
नेह करे, दामिनी से।

उमड़ते घुमड़ते
घनघोर रोर करे घन,
समीर के प्रहार से।

सूरज को ढाँप के
आंचल में छुपाये घन,
श्यामल देखो श्याम से।

बरसे देखो छन्न
चोट करे घन,
नग खड़े अडिग से।

तप्त धरा की देह पर
भाप के मोती बन घन,
बरसे मेह, नेह से।

सरसे वृक्ष हर्षी लताएं
हिल्लोल से हरखा घन,
 उड़ा अब किलोल से।

कुसुम कोठारी।

Tuesday, 18 June 2019

रानी लक्ष्मी बाई

वीरांगणा रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर कोटिशः नमन। 🙏

देश का गौरव
वीर शिरोधार्य थी।

द्रुत गति हवा सी
चलती तेज धार थी।

काट कर शीश
दुश्मनों का संहार थी।

आजादी का जूनून
हर और हुंकार थी।

वीरांगणा गजब
पवन अश्व सवार थी।

दुश्मनों को धूल चटाती
हिम्मत की पतवार थी।

मुंड खच काटती
दुधारी तलवार थी।

रूकी नही झुकी नही
तेज चपल वार थी।

कुसुम कोठारी

Monday, 17 June 2019

नीम बाल कविता

बाल कविता- नीम

आंगन में नीम एक
देता छांव घनेरी नेक
हवा संग डोलता
मीठी वाणी बोलता
पंछियों का वास
नीड़ था एक खास
चीं चपर की आती
ध्वनि मन भाती
हवा सरसराती
निंबोलियां  बिखराती
मुनिया उठा लाती
बड़े चाव से खाती
कहती अम्मा सब अच्छे हैं
पर ये पंछी अक्ल के कच्चे हैं
देखो अनपढ़ लगते मोको
कहदो इधर उधर बिंट ना फेंको
सरपंच जी तक बात पहुंचा दें
इनके लिये शोचालय बनवा दें
अगर करे ये आना कानी
जहां तहां करे मन-मानी
साफ करो खुद लावो पानी
तब इन्हें भी याद आयेगी नानी।

(मुनिया एक देहाती लड़की जो आंगन में झाड़ू लगाती है हर दिन।)

कुसुम कोठारी

Saturday, 15 June 2019

पिता क्या होते हैं

आज पितृ दिवस पर

देकर मुझ को छांव घनेरी
कहां गये तुम हे तरूवर
अब छांव कहां से पाऊं

देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हे नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं

देकर मुझको चंद्र सूर्य
कहां गये हे नीलांबर
अब प्राण वात कहां से पाऊं

देकर मुझको आधार महल
कहां गये हे धराधर
अब मंजिल कहां से पाऊं

देकर मुझ को जीवन
कहां गये हे सुधा स्रोत
अब हरितिमा कहां से पाऊं।

          कुसुम कोठरी।

Friday, 14 June 2019

उजाले अंधेरे

कहीं कोरी उजली कहीं स्याह अधेंरों की दुनिया
कहीं आंचल पड़ता छोटा कहीं मुफ़लिसी में दुनिया।

कहीं है दामन में भरे चांद और सितारे
कहीं मय्यसर नही रातों को भी  उजाले ।

कहीं जिंदगी चमकती खिलखिलाती
कहीं टूटे ख्वाबों की चुभती किरचियां ।

कहीं हैं लगे हर ओर रौनक़ों के रंगीन मेले
कहीं ज़िंदगी बदरंग धुँआ-धुआँ ढ़ल रही ।

कहीं कोई चैन और सुकून से सो रहा
कहीं कोई नींद से बिछुड़ कर रो रहा ।

कहीं खनकते सिक्कों की है खनखन
कहीं कोई अपनी ही मय्यत ढो रहा ।

              कुसुम कोठारी।

Saturday, 8 June 2019

यादों का पपीहा


यादों का पपीहा

शजर ए हयात की शाख़ पर
कुछ स्याह कुछ संगमरमरी
यादों का पपीहा।

खट्टे मीठे फल चखता गीत सुनाता
उड़-उड़ इधर-उधर फूदकता
यादों का पपीहा।

आसमान के सात रंग पंखों में भरता
सुनहरी सूरज हाथों में थामता
यादों का पपीहा।

चाँद से करता गुफ़्तगू बैठ खिडकी पर
नींद के बहाने बैठता बंद पलकों पर
यादों का पपीहा।

टुटी किसी डोर को फिर से जोड़ता
समय की फिसलन पर रपटता
यादों का पपीहा।

जीवन राह पर छोड़ता कदमों के निशां
निड़र हो उड़ जाता थामने कहकशाँ
यादों का पपीहा।

                 कुसुम कोठारी।

Thursday, 6 June 2019

पुरवैया लाई संदेशा

पुरवैया लाई संदेशा

आज चली कुछ हल्की-हल्की सी पुरवाई
एक भीनी सौरभ से भर गई  सभी दिशाएँ
मिट्टी महकी सौंधी-सौंधी श्यामल बदरी छाई
कर लो सभी स्वागत देखो-देखो बरखा आई
कितना झुलसा तन धरती का आग सूरज ने बरसाई
अब देखो खेतीहरों के नयनों भी खुशियाँ छाई
आजा रे ओ पवन झकोरे थाप लगा दे नीरद पर
अब तूं बदरी बिन बरसे नही यहां से जाना
कब से बाट निहारे तेरी सूखा तपता सारा ज़माना
मिट्टी,खेत,खलिहान की मिट जाए अतृप्त प्यास
आज तूझे बरसना होगा मिलजुल करते जन अरदास ।

           कुसुम  कोठारी ।

Monday, 3 June 2019

क्षीर समंदर

क्षीर समंदर

बुनती है संध्या
ख्वाबों के ताने
परिंदों के भाग्य में
नेह के दाने।

आसमान के सीने पर
तारों का स्पंदन
निशा के ललाट पर
क्षीर समंदर।

हर्ष की सुमधुर बेला
प्रकृति की शोभा
चंद्रिका मुखरित
समाधिस्थ धरा।

आलोकिक विभा
शशधर का वैभव
मंदाकिनी आज
उतरी धरा पर ।

पवन की पालकी
नीरव हुवा घायल
छनकी होले होले
किरणों की पायल।

  कुसुम कोठारी ।

Saturday, 1 June 2019

प्रदूषण और हम

प्रदूषण और हम

मेरे द्वारा लिखे इस आलेख में कोई भी दुराग्रह या पूर्वाग्रह नही है ना किसी समुदाय जाति वर्ग पर  कोई आरोप है सभी नाम(लालाजी, कल्ला जी भल्ला जी या फिर मुल्ला जी और वर्मा जी सब काल्पनिक है) बस सांकेतिक सम्बोधन है मैं आप कोई भी हो सकता है।
हमारे देश में एक विचार ऐसा है जिस पर ज्यादा से ज्यादा समानता है और वह है प्रदूषण फैलाना, ये हम सभी का मिला जुला प्रयास है और वैचारिक संगठ की मिसाल है देखिए...

लालाजी ने केला खाया
केला खाकर मुख बिचकाया
मुख बिचका के फेंका छिलका
छिलका फेंक फिर कदम बढाया
पांव के नीचे छिलका आया
लालाजी जब गिरे धड़ाम मुख से निकला हाये राम"। ( संकलित जिसने ये कविता बनाई खूब बनाई है)

लोगों ने लालाजी को तो उठा लिया छिलका अभी तक वहीं पड़ा है कितनी हड्डियां तोड़ चुका
पर शाश्वत सा वहीं पड़ा है हर रोज नई फिसलन लेकर।

भल्ला जी ने मूंगफली खाई
"कचरा कहां ड़ालू भाई"
दोस्त
"अरे क्यों परेशान होते हो
डाल दो न जहां भी"
"पर ये तो स्वछता के विरुद्ध है"
"हे हे हे अकेला कर देगा पुरे भारत को स्वच्छ, डाल दे जहां पहले से पड़ा है उसी के ऊपर"

मुल्ला जी ने बांग लगाई
ध्वनि प्रदूषण खूब फैलाई
कुछ तो चिंतन कर मेरे भाई
" क्यूं? हर और तो जोर जोर से बजते लाउडस्पीकर है  कहीं भजन कहीं फिल्मी गीत और कहीं शादी संगीत संध्या उस पर भाषण बाजी यूं चिल्लाना जैसे... फिर मैं ही क्यूं टेर बंद करूं अपनी।"

" कल्ला  जी के घर नई गाड़ी आई है।"
"अरे उनके पास पहले से तो तीन है फिर लोन लेकर ले आयें होंगे चलो मैं भी एक लोन एप्लिकेशन कर देता हूं गाड़ी के लिए"।

" पापा वर्मा अंकल का पुरा घर सेंट्रली ए सी है हमारे तो बस तीन कमरों में ही है पापा अपने भी पुरे ए सी लगवा लो मेरी भी फ्रेंड'स में आखिर कुछ तो धाक हो आपकी और मेरी ।

पिकनिक मनाई बड़ी हंसी खुशी और आते वक्त सारा कूड़ा ड़ाल आये नदी में समुद्र में तालाब में ।

फैक्ट्रियों का कूड़ा नदी तालाबों और जल निकासी के नालों में डालना हमारा नैतिक कार्य हैं।
फैक्ट्रियां धुंवा उगल रही है तो  क्या फैक्ट्रियां अमृत निकालेगी...

आदि आदि और इन सब मे हम प्रायः सभी सम्मलित हैं।
हैं ना? हम सब में एक विचार धारा बिना किसी विरोध के।

         कुसुम कोठारी।