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Sunday, 23 June 2019

घन

पवन की पालकी
सवार होके घन,
निकले शान से।

काले कजरारे
नीर भार भरे घन,
नेह करे, दामिनी से।

उमड़ते घुमड़ते
घनघोर रोर करे घन,
समीर के प्रहार से।

सूरज को ढाँप के
आंचल में छुपाये घन,
श्यामल देखो श्याम से।

बरसे देखो छन्न
चोट करे घन,
नग खड़े अडिग से।

तप्त धरा की देह पर
भाप के मोती बन घन,
बरसे मेह, नेह से।

सरसे वृक्ष हर्षी लताएं
हिल्लोल से हरखा घन,
 उड़ा अब किलोल से।

कुसुम कोठारी।

16 comments:

  1. वाह!!प्रिय सखी ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !

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    1. बहुत सा स्नेह सखी आपके स्नेह से रचना को सार्थकता मिली ।

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  2. वाह !! अत्यन्त मनोरम सृजन कुसुम जी 👌👌

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    1. बहुत बहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।

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  3. कल्पनाशक्ति सृजन को नये आयाम देती है.पवन की पालकी का ख़्याल प्रकृति के विराटतम स्वरुप में सकारात्मकता को स्थापित करना है.

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    1. इतनी मनभावन और व्याख्यात्मक टिप्पणी करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया रविंद्र जी।
      मार्ग दर्शन करते रहियेगा।
      सादर।

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  4. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार जून 25, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत सा आभार आपका मेरी रचना को पाँच लिंकों में ले जाने हेतु।
      सादर।

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  5. Replies
    1. दी आपके आशीर्वाद से मन खुश हुआ।
      ढेर सा स्नेह।

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  6. वाह बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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  7. बहुत सुन्दर ... घन घिर के आयेंगे तो बरसेंगे भी ...
    प्यास भी तो तभी बुझेगी धरती की ... अच्छी रचना है ...

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  8. बहुत ही सुन्दर रचना दी जी
    प्रणाम

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  9. काले कजरारे
    नीर भार भरे घन,
    नेह करे, दामिनी से
    बहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमस्कार कुसुम जी

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