पवन की पालकी
सवार होके घन,
निकले शान से।
काले कजरारे
नीर भार भरे घन,
नेह करे, दामिनी से।
उमड़ते घुमड़ते
घनघोर रोर करे घन,
समीर के प्रहार से।
सूरज को ढाँप के
आंचल में छुपाये घन,
श्यामल देखो श्याम से।
बरसे देखो छन्न
चोट करे घन,
नग खड़े अडिग से।
तप्त धरा की देह पर
भाप के मोती बन घन,
बरसे मेह, नेह से।
सरसे वृक्ष हर्षी लताएं
हिल्लोल से हरखा घन,
उड़ा अब किलोल से।
कुसुम कोठारी।
सवार होके घन,
निकले शान से।
काले कजरारे
नीर भार भरे घन,
नेह करे, दामिनी से।
उमड़ते घुमड़ते
घनघोर रोर करे घन,
समीर के प्रहार से।
सूरज को ढाँप के
आंचल में छुपाये घन,
श्यामल देखो श्याम से।
बरसे देखो छन्न
चोट करे घन,
नग खड़े अडिग से।
तप्त धरा की देह पर
भाप के मोती बन घन,
बरसे मेह, नेह से।
सरसे वृक्ष हर्षी लताएं
हिल्लोल से हरखा घन,
उड़ा अब किलोल से।
कुसुम कोठारी।
वाह!!प्रिय सखी ,बहुत सुंदर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह सखी आपके स्नेह से रचना को सार्थकता मिली ।
Deleteवाह !! अत्यन्त मनोरम सृजन कुसुम जी 👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार मीना जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला ।
Deleteकल्पनाशक्ति सृजन को नये आयाम देती है.पवन की पालकी का ख़्याल प्रकृति के विराटतम स्वरुप में सकारात्मकता को स्थापित करना है.
ReplyDeleteइतनी मनभावन और व्याख्यात्मक टिप्पणी करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया रविंद्र जी।
Deleteमार्ग दर्शन करते रहियेगा।
सादर।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार जून 25, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार आपका मेरी रचना को पाँच लिंकों में ले जाने हेतु।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर 👌👌
ReplyDeleteदी आपके आशीर्वाद से मन खुश हुआ।
Deleteढेर सा स्नेह।
बहुत बढ़िया..
ReplyDeleteवाह बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ... घन घिर के आयेंगे तो बरसेंगे भी ...
ReplyDeleteप्यास भी तो तभी बुझेगी धरती की ... अच्छी रचना है ...
बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना दी जी
ReplyDeleteप्रणाम
काले कजरारे
ReplyDeleteनीर भार भरे घन,
नेह करे, दामिनी से
बहुत ही सुंदर रचना ,सादर नमस्कार कुसुम जी