न शोहरत में ख़लल डालो
सोने दो चैन से मुझे न ख्वाबों में ख़लल डालो।
न जगाओ मुझे यूं न वादों में ख़लल डालो ।
जानने वाले जानते हो कितना अर्ज़मन्द उसको ।
पर्दा-ए-राज़ रहने दो यूं न शोहरत में ख़लल डालो।।
शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा ।
ऐ हवाओं ना रुक के यूं मौज़ौ में ख़लल डालो।
रात भर रोई नर्गिस सिसक कर बेनूरी पर अपने।
निकल के ए आफताब ना अश्कों में ख़लल डालो।
डूबती कश्तियां कैसे साहिल पे आ ठहरी धीरे से ।
भूल भी जाओ ये सब ना तूफ़ानों मे ख़लल डालो।
रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था मन।
रहमो करम कैसा,अब न इबादत में ख़लल डालो।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सोने दो चैन से मुझे न ख्वाबों में ख़लल डालो।
न जगाओ मुझे यूं न वादों में ख़लल डालो ।
जानने वाले जानते हो कितना अर्ज़मन्द उसको ।
पर्दा-ए-राज़ रहने दो यूं न शोहरत में ख़लल डालो।।
शाख से टूट पत्ते दूर चले उड के अंजान दिशा ।
ऐ हवाओं ना रुक के यूं मौज़ौ में ख़लल डालो।
रात भर रोई नर्गिस सिसक कर बेनूरी पर अपने।
निकल के ए आफताब ना अश्कों में ख़लल डालो।
डूबती कश्तियां कैसे साहिल पे आ ठहरी धीरे से ।
भूल भी जाओ ये सब ना तूफ़ानों मे ख़लल डालो।
रुह से करता रहा सजदा पशेमान सा था मन।
रहमो करम कैसा,अब न इबादत में ख़लल डालो।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'