मीरा सी प्रीत
मांगी नेह निशानी निष्ठुर
पाहन प्रतिमा कब चाही ।
उड़ते पाखी नील गगन के
बिन जल तड़पे हिय माही ।।
आंखों का ये तेज चीरता
छूवन कठिन शैल प्रस्तर ।
बांध न पाये सांसें सीली
भावों का रिक्त कनस्तर ।
युगों युगों तक पंथ निहारा
रिक्त गागर समय दाही।।
मीरा जैसी प्रीत निभाए
एक मृदा की मूरत से ।
जड़ जंगम में घूमी ललना
बँधी मोहनी सूरत से ।
काँच हृदय पर पत्थर मारा
देश छोड़ छूटा राही ।।
कैसे प्रतिमा प्राण फूंक कर
धुक धुक सी धड़कन भर दे ।
आँखों की भाषा जो समझें
ऐसा कुछ जादू कर दे ।
या निज को पाषण कर डाले
बन शिला खंड अवगाही ।।
कुसुम कोठारी।
मांगी नेह निशानी निष्ठुर
पाहन प्रतिमा कब चाही ।
उड़ते पाखी नील गगन के
बिन जल तड़पे हिय माही ।।
आंखों का ये तेज चीरता
छूवन कठिन शैल प्रस्तर ।
बांध न पाये सांसें सीली
भावों का रिक्त कनस्तर ।
युगों युगों तक पंथ निहारा
रिक्त गागर समय दाही।।
मीरा जैसी प्रीत निभाए
एक मृदा की मूरत से ।
जड़ जंगम में घूमी ललना
बँधी मोहनी सूरत से ।
काँच हृदय पर पत्थर मारा
देश छोड़ छूटा राही ।।
कैसे प्रतिमा प्राण फूंक कर
धुक धुक सी धड़कन भर दे ।
आँखों की भाषा जो समझें
ऐसा कुछ जादू कर दे ।
या निज को पाषण कर डाले
बन शिला खंड अवगाही ।।
कुसुम कोठारी।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (17-04-2020) को "कैसे उपवन को चहकाऊँ मैं?" (चर्चा अंक-3674) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteचर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सस्नेह।
मीरा जैसी प्रीत निभाए
ReplyDeleteएक मृदा की मूरत से ।
जड़ जंगम में घूमी ललना
बँधी मोहनी सूरत से ।
काँच हृदय पर पत्थर मारा
देश छोड़ छूटा राही ।
वाह!!!
अद्भुत ....लाजवाब सृजन।
बहुत बहुत आभार आपका सखी सुंदर प्रतिक्रिया रचना को सार्थकता देती है ।
Deleteवाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर !👌
ReplyDeleteबहुत सा सरनेम आभार शुभा जी।
Deleteभावों का कनस्तर- क्या बात है !
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteफर्लांग पर स्वागत है आपका ।
सदा स्नेह बनाए रखें।
अदभुत सृजन कुसुम जी ,आपकी रचनाएँ एक अलग सी दुनिया में ले जाती हैं ,सादर नमन आपको
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार कामिनी जी ।
Deleteसार्थक प्रतिक्रिया से रचना को गति मिली।
भावपूर्ण और सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteरचना सार्थक हुई।
मांगी नेह निशानी निष्ठुर
ReplyDeleteपाहन प्रतिमा कब चाही ।
उड़ते पाखी नील गगन के
बिन जल तड़पे हिय माही ।।
अप्रतिम भावाभिव्यक्ति कुसुम जी !