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Wednesday, 15 April 2020

जनक जीवन की आधारशिला

जनक जीवन की आधारशिला

देकर मुझ को छांव घनेरी
कहां गये तुम हे तरूवर
अब छांव कहां से पाऊं।

देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हो नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं।

देकर मुझको चंद्र सूर्य
कहां गये हो नीलांबर
अब प्राण वात कहां से पाऊं।

देकर मुझको आधार महल
कहां गये हो धराधर
अब मंजिल कहां से पाऊं।

देकर मुझ को जीवन
कहां गये हो सुधा स्रोत
अब हरितिमा कहां से पाऊं।

          कुसुम कोठरी।

21 comments:

  1. Replies
    1. जी सादर आभार आपका आदरणीय।

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  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार ज्योति बहन।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  4. वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर !

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    1. सस्नेह आभार शुभा जी।

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  5. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ...

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

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  6. सुंदर 👌🏻👌🏻👌🏻

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  7. क्या कहने हैं ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ।

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      रचना को सार्थकता मिली।

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  8. देकर मुझको आधार महल
    कहां गये हो धराधर
    अब मंजिल कहां से पाऊं।
    वाह!!!!
    बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन

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    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी। आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।

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  9. देकर मुझ को छांव घनेरी
    कहां गये तुम हे तरूवर
    अब छांव कहां से पाऊं।

    बहुत ही मार्मिक सृजन ,सादर नमन आपको कुसुम जी

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    1. बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।

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  10. वाह
    बहुत सुंदर

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    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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