जनक जीवन की आधारशिला
देकर मुझ को छांव घनेरी
कहां गये तुम हे तरूवर
अब छांव कहां से पाऊं।
देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हो नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं।
देकर मुझको चंद्र सूर्य
कहां गये हो नीलांबर
अब प्राण वात कहां से पाऊं।
देकर मुझको आधार महल
कहां गये हो धराधर
अब मंजिल कहां से पाऊं।
देकर मुझ को जीवन
कहां गये हो सुधा स्रोत
अब हरितिमा कहां से पाऊं।
कुसुम कोठरी।
देकर मुझ को छांव घनेरी
कहां गये तुम हे तरूवर
अब छांव कहां से पाऊं।
देकर मुझको शीतल नीर
कहां गये हो नीर सरोवर
अब अमृत कहां से पाऊं।
देकर मुझको चंद्र सूर्य
कहां गये हो नीलांबर
अब प्राण वात कहां से पाऊं।
देकर मुझको आधार महल
कहां गये हो धराधर
अब मंजिल कहां से पाऊं।
देकर मुझ को जीवन
कहां गये हो सुधा स्रोत
अब हरितिमा कहां से पाऊं।
कुसुम कोठरी।
वाह
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर !
ReplyDeleteसस्नेह आभार शुभा जी।
Deleteबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसुंदर 👌🏻👌🏻👌🏻
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी।
Deleteक्या कहने हैं ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुंदर आदरणीया ।
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteरचना को सार्थकता मिली।
देकर मुझको आधार महल
ReplyDeleteकहां गये हो धराधर
अब मंजिल कहां से पाऊं।
वाह!!!!
बहुत ही सुन्दर सार्थक लाजवाब सृजन
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी। आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteदेकर मुझ को छांव घनेरी
ReplyDeleteकहां गये तुम हे तरूवर
अब छांव कहां से पाऊं।
बहुत ही मार्मिक सृजन ,सादर नमन आपको कुसुम जी
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर
बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत सुन्दर
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