मीत मिले
लहरों की मधुरिम सी हलचल
सरस किनारा सागर का ।
छलक रहा मधुरस भी ऐसा
भरी रसवंति गागर का।।
समय बांटता मुक्ता अविरल
चुनने वाला है चुनता ।
रेशम डांड हृदय पंकज की
सुंदर सी अवली बुनता।
मीत मिले निलाम्बर अतल पर
हर्षित मन जलआगर का।।
नम सैकत पांवों के नीचे
थिरक थिरक तन मन घूमे।
एक ताल पर लहरें मटकी
एक ताल दो दिल झूमे।
समय बीत का भान नही सुध
नभ डेरा कोजागर का ।।
नील सिंधु में रमती उर्मिल
मौसम भर भर मद प्याला।
वितान अम्बर पर खुशियों का
मद्यप दर्पित सुर बाला।
जीवन इसी घड़ी पर ठहरा
निश्चय निशांत जागर का।।
कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"
लहरों की मधुरिम सी हलचल
सरस किनारा सागर का ।
छलक रहा मधुरस भी ऐसा
भरी रसवंति गागर का।।
समय बांटता मुक्ता अविरल
चुनने वाला है चुनता ।
रेशम डांड हृदय पंकज की
सुंदर सी अवली बुनता।
मीत मिले निलाम्बर अतल पर
हर्षित मन जलआगर का।।
नम सैकत पांवों के नीचे
थिरक थिरक तन मन घूमे।
एक ताल पर लहरें मटकी
एक ताल दो दिल झूमे।
समय बीत का भान नही सुध
नभ डेरा कोजागर का ।।
नील सिंधु में रमती उर्मिल
मौसम भर भर मद प्याला।
वितान अम्बर पर खुशियों का
मद्यप दर्पित सुर बाला।
जीवन इसी घड़ी पर ठहरा
निश्चय निशांत जागर का।।
कुसुम कोठारी "प्रज्ञा"
ReplyDeleteसमय बांटता मुक्ता अविरल
चुनने वाला है चुनता ।
रेशम डांड हृदय पंकज की
सुंदर सी अवली बुनता।
मीत मिले निलाम्बर अतल पर
हर्षित मन जलआगर का।।
...हमेशा की तरह शालीन, जीवन्त व बेहतरीन लेखन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया कुसुम जी।
आपकी शानदार प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई,और उत्साह वर्धन हुआ ।सादर।
Deleteआपसे शब्द संचयन और प्रयोग सीखना चाहिए। बहुत ही शानदार पंक्तियाँ कुसुम जी। साधुवाद
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार आपका ।
Deleteआपके उत्साहवर्धक शब्दों से लेखन मुखरित हुवा ।
सादर।
बहुत सुन्दर गीत।
ReplyDeleteबहुत सा आभार आपका आदरणीय।
Deleteमैंने, कतिपय कारणों से, अपना फेसबुक एकांउट डिलीट कर दिया है। अतः अब मेरी रचनाओं की सूचना, सिर्फ मेरे ब्लॉग
ReplyDeletepurushottamjeevankalash.blogspot.com
या मेरे WhatsApp/ Contact No.9507846018 के STATUS पर ही मिलेगी।
आप मेरे ब्लॉग पर आएं, मुझे खुशी होगी। स्वागत है आपका ।
जी जरूर ।
Deleteबेहद खूबसूरत गीत 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteवाह
ReplyDeleteसमय बांटता मुक्ता अविरल
ReplyDeleteचुनने वाला है चुनता ।
रेशम डांड हृदय पंकज की
सुंदर सी अवली बुनता।
मन्त्रमुग्ध हूँ ...बहुत बहुत बधाई इतने सुन्दर सृजन के लिए ।
बहुत बहुत आभार आपका मीना जी आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदा लेखन में नयी उर्जा का संचार होता है।
Deleteसस्नेह।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (13-04-2020) को 'नभ डेरा कोजागर का' (चर्चा अंक 3670) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
*****
रवीन्द्र सिंह यादव
नम सैकत पांवों के नीचे
ReplyDeleteथिरक थिरक तन मन घूमे।
एक ताल पर लहरें मटकी
एक ताल दो दिल झूमे।
समय बीत का भान नही सुध
नभ डेरा कोजागर का ।।
वाह!!!
बहुत ही सुन्दर मनभावन नवगीत
बहुत बहुत बधाई कुसुम जी !