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Tuesday, 6 June 2023

पर्यावरण और गर्मी


 गीतिका :

221 2122 221 2122.


पर्यावरण और गर्मी


सविता धधक रहा है जीवन व्यथित हुआ अब।

हैं नीर रिक्त सरवर सूखे कुएँ  सरित सब।।


अंगार से लगे है हर पेड़ पात जलता।

लू के बहे थपेड़े ज्यों धूल संग करतब।।


तन संकुचित धरित्री लो गोद आज उजड़ी।

धर मेह दे नहीं तो होगी हरित धरा कब।।

धर=बादल


है भूमि रत्नगर्भा पर अंबु चाहती नित।

सिंचन बिना कुँवारी कर स्नान सरसती जब।।


झूठी कथा नहीं सच कारण मनुज तुम्हीं हो।

पर्यावरण बचाओ भू पर खनक बचे तब।।


हो इंद्र देव खुश तो फिर वृष्टि गीत गाती।

गिर तापमान जाता वन मोर नाचता अब।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

Thursday, 1 June 2023

हिल्लोल


 हिल्लोल


चाँदनी का बाँध टूटा

भू उमंगित हो नहाए

पेड़ डूबे पात निखरे

चाँद फुनगी पर सुहाए।


खिलखिलाती है हवाएँ

झूमती हिल्लोल लेने

पात पादप में उलझती

नव मुकुल को नेह देने

लोल लतिका सुप्त जागे

डोलती सी गोद भाए।।


दौड़ती नाचे खुशी में 

कंठ गिरि के झूमती हैं

नादिनी लहरी मचल कर

चोटियों को चूमती है

धुन नदी देती चली जब

उर्मियों ने गीत गाए।।


श्रृष्टि रचती रूप कितने

चेल अपने नित बदलती

मानसी मन मोहिनी सी

सांध्य दीपक बन मचलती

गोद में सुख सेज भी है

मोद का सोता बहाए।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'