अप्सरा सी कौन
अहो द्युलोक से कौन अद्भुत
हेमांगी वसुधा पर आई।
दिग-दिगंत आभा आलोकित
मरुत बसंती सरगम गाई।।
महारजत के वसन अनोखे
दप दप दमके कुंदन काया
आधे घूंघट चन्द्र चमकता
अप्सरा सी ओ महा माया
कणन कणन पग बाजे घुंघरु
सलिला बन कल कल लहराई।।
चारु कांतिमय रूप देखकर
चाँद लजाया व्योम ताल पर
मुकुर चंद्रिका आनन शोभा
झुके झुके से नैना मद भर
पुहुप कली से अधर रसीले
ज्योत्सना पर लालिमा छाई।।
कौमुदी कंचन संग लिपटी
निर्झर जैसा झरता कलरव
सुमन की ये लगे सहोदरा
आँख उठे तो टूटे नीरव
चपल स्निग्ध निर्धूम शिखा सी
पारिजात बन कर लहराई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'