दर्पण दर्शन
आकांक्षाओं के शोणित
बीजों का नाश
संतोष रूपी भवानी के
हाथों सम्भव है
वही तृप्त जीवन का सार है।
"आकांक्षाओं का अंत "।
ध्यान में लीन हो
मन में एकाग्रता हो
मौन का सुस्वादन
पियूष बूंद सम
अजर अविनाशी।
शून्य सा, "मौन"।
मन की गति है
क्या सुख क्या दुख
आत्मा में लीन हो
भव बंधनो की
गति पर पूर्ण विराम ही।
परम सुख,.. "दुख का अंत" ।
पुनः पुनः संसार
में बांधता
अनंतानंत भ्रमण
में फसाता
भौतिक संसाधन।
यही है " बंधन"।
स्वयं के मन सा
दर्पण
भली बुरी सब
दर्शाता
हां खुद को छलता
मानव।
" दर्पण दर्शन "।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
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ReplyDeleteबहुत खूब प्रिय कुसुम बहन। स्वयं से बढ़ कर स्वयं को कोई नहीं जानता। पर इंसान खुद से ही नज़रें चुरा कर अपनी त्रुटियों को अनदेखा करता हुआ मन रूपी दर्पण को झुठलाता रहता है।विद्वता पूर्ण रचना जो संदेश परक भी है। हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🌹🌹
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बहुत-बहुत आभार आपका रेणु बहन ।
Deleteआपकी विशिष्ट टिप्पणी सदा नव उर्जा देती है लेखन को और उत्साह वर्धन करती है।
सस्नेह आभार।
जीवनदर्शन से परिपूर्ण बहुत सुंदर रचना 🙏💐🙏
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ।
जीवन का सुंदर सार कितनी सुंदरता से कहा है । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
ध्यान में लीन हो
ReplyDeleteमन में एकाग्रता हो
मौन का सुस्वादन
पियूष बूंद सम
अजर अविनाशी- बहुत ही खूबसूरत कृति, अध्यात्मिक और दार्शनिक दोनों का दिव्य दर्शन । सादर नमन ।
सुंदर व्याख्यात्मक टिप्पणी से रचना को नव प्रवाह मिला।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका सस्नेह
आपने जीवन के दर्शन करा दिए,कुसुम दी।
ReplyDeleteमोहक शब्द ज्योति बहन रचना सार्थक हुई सस्नेह।
Deleteबेहतरीन आध्यात्मिक रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteउत्साह वर्धन हेतु।
सादर।
स्वयं के मन सा
ReplyDeleteदर्पण
भली बुरी सब
दर्शाता
हां खुद को छलता
मानव।
" दर्पण दर्शन "।
सही कहा मन दर्पण सा है सब बोध होते हुए भी मानव खुद को छलता है....जीवन दर्शन कराती सून्दर संदेशपरक बहुत ही लाजवाब सृजन ।
वाह!!!
मोहक सुधाजी! आपकी सुंदर प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
मन की गति है
ReplyDeleteक्या सुख क्या दुख
आत्मा में लीन हो
भव बंधनो की
गति पर पूर्ण विराम ही
बहुत बहुत सुन्दर , सराहनीय |
बहुत बहुत आभार आपका रचना के भावों को स्नेह देने के लिए।
Deleteसादर।
बहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteमैं चर्चा मैं उपस्थित रहूंगी।
सादर।
ध्यान दुखों का अंत करता है ... मन को शांत करता है ...
ReplyDeleteसुन्दर रचना है ...