Followers

Saturday, 21 November 2020

सुधि वरण


सुधि वरण
 

ढलती रही रात 

चंद्रिका के हाथों

धरा पर एक काव्य का

सृजन होता रहा

ऐसा अलंकृत रस काव्य

जिसे पढने

सुनहरी भास्कर

पर्वतों की उतंग

शिखा से उतर कर

वसुंधरा पर ढूंढता रहा

दिन भर भटकता रहा

कहां है वो ऋचाएं

जो शीतल चांदनी

उतरती रात में 

रश्मियों की तूलिका से

रच गई

खोल कर अंतर

दृश्यमान करना होगा

अपने तेज से

कुछ झुकना होगा

उसी नीरव निशा के

आलोक में

शांत चित्त हो

अर्थ समझना होगा

सिर्फ़ सूरज बन

जलने से भी

क्या पाता इंसान

ढलना होगा

रात  का अंधकार

एक नई रोशनी का

अविष्कार करती है

वो रस काव्य सुधा

शीतलता का वरदान है

सुधी वरण करना होगा ।।


        कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

17 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 23 नवंबर 2020 को 'इन दिनों ज़रूरी है दूसरों के काम आना' (चर्चा अंक-3894) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका,मैं चर्चा पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सादर।

      Delete
  2. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

      Delete
  3. सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।

      Delete
  4. सुंदर सजृन। आपको बधाई।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      ब्लाग पर सदा स्वागत है आपका।

      Delete
  5. बहुत ही सुंदर सृजन दी सराहना से परे।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार ।
      सस्नेह।

      Delete
  6. सिर्फ़ सूरज बन
    जलने से भी
    क्या पाता इंसान
    ढलना होगा
    रात का अंधकार
    एक नई रोशनी का
    अविष्कार करती है
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर एवं सार्थक सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी उत्साह वर्धन करती आपकी प्रतिक्रिया सदा मोहक हैती है।
      सस्नेह।

      Delete
  7. उसी नीरव निशा के

    आलोक में

    शांत चित्त हो

    अर्थ समझना होगा

    सिर्फ़ सूरज बन

    जलने से भी

    क्या पाता इंसान

    ढलना होगा, सुन्दर रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका, सार्थक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।

      Delete