त्रिवेणी गंगा यमुना सरस्वती ।
न मैं गंगा न ही यमुना
मैं बस लुप्त सुसुप्त
सरस्वती रहना चाहती हूंँ।
एक अदृश्य धार
बन बहना चाहती हूँ।
आँख की नमी
मिट्टी की सीलन
बनना चाहती हूँ
न मैं दृश्या
न ऊंचाई
न कल-कल बहना
चाहती हूँ।
मैं धरा पर हर समय
अहसास बन
रहना चाहती हूँ।
मैं लुप्त सुसुप्त सरस्वती
बनना चाहती हूँ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
न मैं गंगा न ही यमुना
मैं बस लुप्त सुसुप्त
सरस्वती रहना चाहती हूंँ।
एक अदृश्य धार
बन बहना चाहती हूँ।
आँख की नमी
मिट्टी की सीलन
बनना चाहती हूँ
न मैं दृश्या
न ऊंचाई
न कल-कल बहना
चाहती हूँ।
मैं धरा पर हर समय
अहसास बन
रहना चाहती हूँ।
मैं लुप्त सुसुप्त सरस्वती
बनना चाहती हूँ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'