सावन का मृदु हास
शाख शाख बंधा हिण्डोला
ऋतु का तन भी खिला खिला
रंग बिरंगी लगे कामिनी
बनी ठनी सी चमक रही
परिहास हास में डोल रही
खुशियाँ आनन दमक रही
डोरी थामें चहक रही है
सारी सखियाँ हाथ मिला।।
रेशम रज्जू फूल बंधे हैं
मन पर छाई तरुणाई
आँखे चपला चपल बनी
गाल लाज की अरुणाई
मीठे स्वर में कजरी गाती
कण कण को ही गयी जिला।।
मेघ घुमड़ते नाच रहे हैं
प्रवात पायल झनक रही
सरस धार से पानी बरसा
रिमझिम बूँदें छनक रही
ऐसे मधुरिम क्षण जीवन को
सुधा घूंट ही गयी पिला ।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
शाख शाख बंधा हिण्डोला
ऋतु का तन भी खिला खिला
रंग बिरंगी लगे कामिनी
बनी ठनी सी चमक रही
परिहास हास में डोल रही
खुशियाँ आनन दमक रही
डोरी थामें चहक रही है
सारी सखियाँ हाथ मिला।।
रेशम रज्जू फूल बंधे हैं
मन पर छाई तरुणाई
आँखे चपला चपल बनी
गाल लाज की अरुणाई
मीठे स्वर में कजरी गाती
कण कण को ही गयी जिला।।
मेघ घुमड़ते नाच रहे हैं
प्रवात पायल झनक रही
सरस धार से पानी बरसा
रिमझिम बूँदें छनक रही
ऐसे मधुरिम क्षण जीवन को
सुधा घूंट ही गयी पिला ।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
बेहतरीन रचना । हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteआत्मीय आभार आपका ,प्रोत्साहन मिला।
Deleteसादर।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteआपने कजरी और रेशम रज्जु का जिसतरह प्रयोग किया वह अद्भुत है कुसुम जी, बहुत खूब
ReplyDeleteवाह अलकनंदा जी आपकी मोहक टिप्पणी रचना का मान बढ़ाती सी ,मन में हर्ष भर गई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत सा स्नेह आभार ज्योति बहन।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर और सामयिक नवगीत।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसादर।
वाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसावन के मौसम की चाल कुछ ऐसी होती है ...
ReplyDeleteहर मन झूमता है ... बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना है ...
वाह मोहक टिप्पणी आदरणीय नासवा जी उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसादर।
रेशम रज्जू फूल बंधे हैं
ReplyDeleteमन पर छाई तरुणाई
आँखे चपला चपल बनी
गाल लाज की अरुणाई
मीठे स्वर में कजरी गाती
कण कण को ही गयी जिला। बहुत सुंदर मनभावन रचना सखी 👌
वाह सखी मन खुश हुआ सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया से।
Deleteसस्नेह ।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 28 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार आपका , पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए। मैं उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteप्रोत्साहन देती सार्थक प्रतिक्रिया ।
सादर।
उम्दा ! यही वह समय है जब नभ से अमृत बरसता है
ReplyDeleteजी बहुत सही! रचना के समानांतर सुंदर भाव प्रेसित करती सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार।
Deleteसादर।
आदरणीया मैम,
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सावन के उत्सव का वर्णन करती आपकी कविता मन में आनंद और उत्सव का उल्लास भर देती है।
वर्षा ऋतु जब भी आती है तो धरती का कण कण हर्षित लगने लगता है। सुंदर रचना के लिए आभार।
एक अनुरोध और, कृपया मेरे भी ब्लॉग पर आएं जहाँ मैं अपनी कवितायें डालती हूँ। kavyatarang ini.blogspot.com
वाह अनंता जी सुंदर! व्याख्यात्मक टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ। आपका ब्लाग पर बहुत बहुत स्वागत है।
Deleteसस्नेह।
आपके ब्लॉग पर दो बार जा कर आ चुंकि हूं बहुत सुंदर सृजन है आपका और अब निरन्तर आना लगा रहेगा।
सस्नेह आभार।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (29-07-2020) को "कोरोना वार्तालाप" (चर्चा अंक-3777) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
जी आभार आपका आदरणीय, चर्चा मंच पर उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर।
सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteमेरे ब्लाग पर आपका सहर्ष स्वागत है।
सस्नेह।
जी आभार आदरणीय रचना को सार्थकता मिली।
ReplyDeleteसादर।
रेशम रज्जू फूल बंधे हैं
ReplyDeleteमन पर छाई तरुणाई
आँखे चपला चपल बनी
गाल लाज की अरुणाई
मीठे स्वर में कजरी गाती
कण कण को ही गयी जिला।
बहुत ही मनभावन लाजवाब नवगीत लिखा है आपने कुसुम जी! अद्भुत शब्दसंयोजन के साथ...
वाह!!!!
आ कुसुम कोठारी जी, बहुत अच्छी नवगीत की रचना! लाजवाब पांक्तियाँ:
ReplyDeleteरेशम रज्जू फूल बंधे हैं
मन पर छाई तरुणाई
आँखे चपला चपल बनी
गाल लाज की अरुणाई
मीठे स्वर में कजरी गाती
कण कण को ही गयी जिला।।
--ब्रजेन्द्रनाथ
बहुत ही सुंदर रचा है नवगीत आपने आदरणीय दी।
ReplyDeleteसादर