बरसात
बादल उमड़-घुमड़ कर आते
घटा घोर नीले नभ छाती
दामिनी दम-दम दमकती
मन मे सिहरन सी भरती ।
कभी सरस कभी तांडव सी
बरखा की रुत आती
कभी हरित धरा मुस्काती
जल में कभी मग्न हो जाती ।
कृषक मन ही मन मुस्काते
चेहरे उनके खिल-खिल जाते
हल की फलक चीर कर
धरा को दाना पानी देते ।
बागों मे बहारें आती
डालियाँ फूलों से लद जाती
पपीहा पी की राग सुनाता
कोयल मीठे स्वर में गाती ।
सावन की घटा घिर आती
झरनों में रवानी आती
नदिया कल-कल स्वर में गाती
ऋतु गोरी मृदुल मदमाती ।
चांद तारे कहीं छुप जाते
श्यामक शावक धूम मचाते
उड़-उड़ पर्वत से टकराते
झम-झम-झम पानी बरसाते ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बादल उमड़-घुमड़ कर आते
घटा घोर नीले नभ छाती
दामिनी दम-दम दमकती
मन मे सिहरन सी भरती ।
कभी सरस कभी तांडव सी
बरखा की रुत आती
कभी हरित धरा मुस्काती
जल में कभी मग्न हो जाती ।
कृषक मन ही मन मुस्काते
चेहरे उनके खिल-खिल जाते
हल की फलक चीर कर
धरा को दाना पानी देते ।
बागों मे बहारें आती
डालियाँ फूलों से लद जाती
पपीहा पी की राग सुनाता
कोयल मीठे स्वर में गाती ।
सावन की घटा घिर आती
झरनों में रवानी आती
नदिया कल-कल स्वर में गाती
ऋतु गोरी मृदुल मदमाती ।
चांद तारे कहीं छुप जाते
श्यामक शावक धूम मचाते
उड़-उड़ पर्वत से टकराते
झम-झम-झम पानी बरसाते ।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 27 जुलाई 2020 को साझा की गयी है.......http://halchalwith5links.blogspot.com/ पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteशानदार..।
ReplyDeleteवाह!बरसात पर शानदार सृजन ।
ReplyDeleteकृषक मन ही मन मुस्काते
चेहरे उनके खिल-खिल जाते
हल की फलक चीर कर
धरा को दाना पानी देते ..जीवन का साकार चित्रण आँखों के सामने उभर आया ।बेहतरीन 👌
बेहतरीन सृजन सखी।बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति
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