कैसा अभिशाप
कैसा अभिशाप था
अहिल्या भरभरा के गिर पड़ी
सुन वचन कठोर ऋषि के
दसो दिशाओं का हाहाकार
मन में बसा
सागर की उत्तंग लहरों सा ज्वार
उठ-उठ फिर विलीन होता गया
अश्रु चुकने को है पर
संतप्त हृदय का कोई आलम्बन नही।।
आह री वेदना बस अब जब
चोटी पर जा बैठी हो तो
ढलान की तरफ अधोमुक्त होना ही होगा
विश्रांति अब बस विश्रांति
यही वेदना का अंतिम पड़ाव
पाहन बन अडोल अविचल
बाट जोहती रही
श्री राम की पद धुलि पाने को
न जाने कितने लम्बे काल तक
अपना अभिशाप लिये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
कैसा अभिशाप था
अहिल्या भरभरा के गिर पड़ी
सुन वचन कठोर ऋषि के
दसो दिशाओं का हाहाकार
मन में बसा
सागर की उत्तंग लहरों सा ज्वार
उठ-उठ फिर विलीन होता गया
अश्रु चुकने को है पर
संतप्त हृदय का कोई आलम्बन नही।।
आह री वेदना बस अब जब
चोटी पर जा बैठी हो तो
ढलान की तरफ अधोमुक्त होना ही होगा
विश्रांति अब बस विश्रांति
यही वेदना का अंतिम पड़ाव
पाहन बन अडोल अविचल
बाट जोहती रही
श्री राम की पद धुलि पाने को
न जाने कितने लम्बे काल तक
अपना अभिशाप लिये।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।
Deleteअहिल्या के जीवन को इंगित करती मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीय दीदी.
ReplyDeleteसादर
बहुत सा सरनेम आभार प्रिय बहना ।
Deleteसागर की उत्तंग लहरों सा ज्वार
ReplyDeleteउठ-उठ फिर विलीन होता गया
अश्रु चुकने को है पर
संतप्त हृदय का कोई आलम्बन नही।।
सच में ऐसा घोर अभिशाप!!!
माता अहिल्या के मन की बेदना बेवशी का हृदयस्पर्शी चित्रण
वाह!!!
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी , उत्साह वर्धन हुआ आपकी टिप्पणी से।
Deleteसस्नेह।
जी आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
ReplyDeleteपाँच लिंक में रचना को शामिल करने के लिए ।
सादर।