भाव लेखनी
गूंज उठी जब जब अंतस से
लेखन ने अनुबंध किये।
कितने कोरे पन्नों ने फिर
चित्र लिखित से गीत दिये।
भाव तभी तक भाव कहाते
जब शब्दों में ढ़ल जाते ।
मन में कितने ही घुमड़े पर
कभी नही कुछ कह पाते
उतर लेखनी से जब बहते
कतरन कतरन चेल सियें।
बहुरंगी से दृश्य उकेरे
कई रूप धारण करती।
सुख में सुंदर एक हवेली
इंद्रधनुषी रंग भरती ।
हृदय पीर से शब्द पिघलते
वर्ण वर्ण आकार लिये।।
कवियों के मन मंथन से
बन नवनीत सार सुंदर।
नित नित भरती कलश सुधा के
विष बूझे कभी समुंदर ।
उफनती कभी शांत लहर सी
जाने कितने घूंट पिये।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
गूंज उठी जब जब अंतस से
लेखन ने अनुबंध किये।
कितने कोरे पन्नों ने फिर
चित्र लिखित से गीत दिये।
भाव तभी तक भाव कहाते
जब शब्दों में ढ़ल जाते ।
मन में कितने ही घुमड़े पर
कभी नही कुछ कह पाते
उतर लेखनी से जब बहते
कतरन कतरन चेल सियें।
बहुरंगी से दृश्य उकेरे
कई रूप धारण करती।
सुख में सुंदर एक हवेली
इंद्रधनुषी रंग भरती ।
हृदय पीर से शब्द पिघलते
वर्ण वर्ण आकार लिये।।
कवियों के मन मंथन से
बन नवनीत सार सुंदर।
नित नित भरती कलश सुधा के
विष बूझे कभी समुंदर ।
उफनती कभी शांत लहर सी
जाने कितने घूंट पिये।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
वाह
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 21 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
......
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 22 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार पम्मी जी पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteमैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सस्नेह
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteवाह!कुसुम जी ,बहुत सुंदर 👌
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार शुभा जी।
Deleteभाव तभी तक भाव कहाते
ReplyDeleteजब शब्दों में ढ़ल जाते ।
मन में कितने ही घुमड़े पर
कभी नही कुछ कह पाते
वाह !!! अत्यंत सुन्दर सृजन कुसुम जी .
आपकी टिप्पणी सदा मेरा मनोबल बढ़ाती है मीना जी ढेर सा स्नेह आभार।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteचर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय तल से आभार।
बहुत बहुत आभार ज्योति बहन।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवाह!लाजवाब सृजन आदरणीय दी।
ReplyDeleteसराहना से परे।
सादर
कविता जन्में भावों की अभिव्यक्ति है जो शब्दों का रूप ले के उतरती है और एक से दूसरे हृदय तक जाती है ...
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