पावस का स्वागत
हवा मतँग मद में मतवाली
बजा रही है शहनाई।
मेघ घुमड़ते शोर मचाते
और बहे है पुरवाई।
मुकुल होंठ पर सरगम तानें
भृंग मधुर लय में गाते ।
महक रही है सभी दिशाएं
जलद डोलची भर लाते।
कोमल मादक मस्त महकती
कलियों ने ली अँगड़ाई।।
सूरज बैठा ओढ़ चदरिया
नीलाम्बर पर श्यामल पट।
बीच श्वेत सी उर्मिल रेखा
भरे भरे बादल के घट।
राह दिखाने डोल मोलकर
चमक दामिनी लहराई।।
मोर नाचते नयना नभ पर
हलधर हर्षित है मन में।
लता झूमती ललिता जैसे
अनँग जगा है भू तन में।
ढोल नगाड़े अदृश्य बजते
माटी कण कण महकाई।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
हवा मतँग मद में मतवाली
बजा रही है शहनाई।
मेघ घुमड़ते शोर मचाते
और बहे है पुरवाई।
मुकुल होंठ पर सरगम तानें
भृंग मधुर लय में गाते ।
महक रही है सभी दिशाएं
जलद डोलची भर लाते।
कोमल मादक मस्त महकती
कलियों ने ली अँगड़ाई।।
सूरज बैठा ओढ़ चदरिया
नीलाम्बर पर श्यामल पट।
बीच श्वेत सी उर्मिल रेखा
भरे भरे बादल के घट।
राह दिखाने डोल मोलकर
चमक दामिनी लहराई।।
मोर नाचते नयना नभ पर
हलधर हर्षित है मन में।
लता झूमती ललिता जैसे
अनँग जगा है भू तन में।
ढोल नगाड़े अदृश्य बजते
माटी कण कण महकाई।।
कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'
वाह!लाजवाब नवगीत दी.
ReplyDeleteमुकुल होंठ पर सरगम तानें
भृंग मधुर लय में गाते ।
महक रही है सभी दिशाएं
जलद डोलची भर लाते।
कोमल मादक मस्त महकती
कलियों ने ली अँगड़ाई।।..वाह !
बहुत सुन्दर और सार्थक गीत।
ReplyDeleteलाजवाब नवगीत वर्षा का स्वागत करता हुआ
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।
ReplyDeleteसुन्दर चित्रण
ReplyDeleteमुकुल होंठ पर सरगम तानें
ReplyDeleteभृंग मधुर लय में गाते ।
महक रही है सभी दिशाएं
जलद डोलची भर लाते।
कोमल मादक मस्त महकती
कलियों ने ली अँगड़ाई।। वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
सूरज बैठा ओढ़ चदरिया
ReplyDeleteनीलाम्बर पर श्यामल पट।
बीच श्वेत सी उर्मिल रेखा
भरे भरे बादल के घट।
राह दिखाने डोल मोलकर
चमक दामिनी लहराई।।
बहुत ही सुंदर और मनभावन गीत कुसुम जी ,सादर नमन
लाजवाब शब्द
ReplyDeleteपावस ऋतु आती है बहार लेकर
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति