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Wednesday, 1 July 2020

पावस का स्वागत

पावस का स्वागत

हवा मतँग मद में मतवाली
बजा रही है शहनाई।
मेघ घुमड़ते शोर मचाते
और बहे है पुरवाई।

मुकुल होंठ पर सरगम तानें
भृंग मधुर लय में गाते ।
महक रही है सभी दिशाएं
जलद डोलची भर लाते।
कोमल मादक मस्त महकती
कलियों ने ली अँगड़ाई।।

सूरज बैठा ओढ़ चदरिया
नीलाम्बर पर श्यामल पट।
बीच श्वेत सी उर्मिल रेखा
भरे भरे बादल के घट।
राह दिखाने डोल मोलकर
चमक दामिनी लहराई।।

मोर नाचते नयना नभ पर
हलधर हर्षित है मन में।
लता झूमती ललिता जैसे
अनँग जगा है भू तन में।
ढोल नगाड़े अदृश्य बजते
माटी कण कण महकाई।।

    कुसुम कोठारी'प्रज्ञा'

11 comments:

  1. वाह!लाजवाब नवगीत दी.
    मुकुल होंठ पर सरगम तानें
    भृंग मधुर लय में गाते ।
    महक रही है सभी दिशाएं
    जलद डोलची भर लाते।
    कोमल मादक मस्त महकती
    कलियों ने ली अँगड़ाई।।..वाह !

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  2. लाजवाब नवगीत वर्षा का स्वागत करता हुआ

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जुलाई २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. बहुत सुंदर रचना,कुसुम दी।

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  5. मुकुल होंठ पर सरगम तानें
    भृंग मधुर लय में गाते ।
    महक रही है सभी दिशाएं
    जलद डोलची भर लाते।
    कोमल मादक मस्त महकती
    कलियों ने ली अँगड़ाई।। वाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी

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  6. सूरज बैठा ओढ़ चदरिया
    नीलाम्बर पर श्यामल पट।
    बीच श्वेत सी उर्मिल रेखा
    भरे भरे बादल के घट।
    राह दिखाने डोल मोलकर
    चमक दामिनी लहराई।।
    बहुत ही सुंदर और मनभावन गीत कुसुम जी ,सादर नमन

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  7. लाजवाब शब्द

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  8. पावस ऋतु आती है बहार लेकर
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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