ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की क्रांति
राजस्थान की जोधपुर रियासत जिसे मारवाड़ भी कहा जाता है, इसमें आठ ठिकाने थे जिनमें एक आउवा भी था. ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत पाली जिले के इसी आउवा के ठाकुर थे. इन्होने 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में जोधपुर रियासत और ब्रिटिश संयुक्त सेना को पराजित कर मारवाड़ में आजादी की अलख जगा दी थी.
उन्हीं वीर ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की अंग्रेज़ो के विरुद्ध
क्रांति के कुछ दृश्य आल्हा छंद में समेटने का प्रयास।
*ठाकुर कुशाल सिंह चम्पावत की क्रांति।*
आल्हा छंद में सृजन।
दोहा:-
जोधपुरी शासक रहे, तख्त सिंह था नाम।
हार मान अंग्रेज से, करे हजूरी काम।।१
एक ठिकाना आउवा, ठाकुर वीर कुशाल।
चम्पावत सरदार थे, कुशल प्रजा के पाल।।२
ठाकुर ने विद्रोह किया था,
जोधपुरी राजा के साथ।
राव बड़े छोटे कितने थे,
आकर पकड़ा ठाकुर हाथ।।
ठोस बनाकर सेना टोली,
विद्रोही दलबल के संग।
ऊँचा रखते अपना अभिजन,
मान्य नही राजा का ढ़ंग।।
जागीर अधिप आ संग जुड़े,
औ दहका गोरा कप्तान।
जोधपुरी राजा की सेना,
आप बना था वो अगवान।।
संग विरोधी राजा ठाकुर,
राव कुशाल बने सरदार।
सेना दल बल लेकर आगे,
हाथ सुसज्जित थे हथियार।।
जोधपुरी सेना थी भारी,
भारी अंग्रेजी हथियार।
झोंक उमंग भरे रजपूते,
मूंछें ताने थे मड़ियार।।
शीश किलंगी साफा छोड़ा,
वीर पहन केसरिया पाग।
भाला, ढाल, कृपाण,खड़ग लें,
निकले खेलन जैसे फाग।।
हीथ करे सेना अगवानी,
राव कुशाल इधर सरदार।
दलबल ले दोनों सम्मुख थे,
क्रोध चढ़ा था पारावार।।
रक्त उबाल लिए रजपूते
विजुगुप्सा थी वक्ष अपार।
मर्दन करना था गोरों का
हाथ कृपाण हृदय में खार।।
बात अठारह सो सत्तावन,
एक हुई थी क्रांति महान।
रजपूते सामंतों ने मिल,
तोड़ी थी गोरों की बान।।
पाली अजमेरी सीमा पर,
युद्ध छिड़ा गोरों के साथ।
सैनिक मारे तोपे छीनी,
पैट्रिक भागा सिर ले हाथ।।
होश फिरंगी सेना के अब,
उड़ते आँधी में ज्यों पात।
आज दिखाते रण में कौशल,
हर योद्धा करता था घात।।
प्राण लिए हाथों में ठाकुर,
काल स्वरूप बना साक्षात।
एक प्रहार कटे सिर लुढ़के,
दूर गिरे जाकर के गात।।
दोहे:-
दृश्य दिखाई दे रहा, नृत्य करे ज्यों काल।
नर मुंड़ो से भू भरी, गली नहीं रिपु दाल।।१
काट मोंक का शीश फिर, बाँध अश्व की पीठ।
ठाकुर चलते शान से, दृश्य विकट अनडीठ।।२
मुंड कटा टांगा गढ़ पोळी,
उमड़ा आया पाली गाँव।
देख बड़ा गोरा अधिकारी,
आज अधर में उसकी ठाँव।।
हँसता कोई थूक घृणा से,
बच्चे पीट रहे थे थाल।
भीरु बने थे आज महारथ,
पीट रहे थे अपना गाल।।
गोरे भागे पग शीश धरे,
मूंछ मरोड़े थे मड़ियार।
गाँव नगर में मेला सजता,
हर्ष मनाए सब नर नार।।
एक पराजय से धधके थे,
शत्रु बने ज्यूँ जलती ज्वाल।
बदला लेने की ठानी फिर,
सोच रहे थे दुर्जन चाल।।
दुर्गति का हाल गया जल्दी,
उच्च पदाधिकारियों पास।
लारेंस लिए सेना को निकला,
मोर्चा ले ब्यावर से खास।।
धावा बोला रजपूतों पर,
सिंह कुशाल सुनी ये बात।
टूट पड़े वो सेना लेकर,
दिखलानी गोरों को जात।।
युद्ध घमासानी विप्लव सा,
खेत रहे विद्रोही राव।
पर गोरों ने मुख की खाई,
हार करारी ताजा घाव।।
ये भी तो अंत नही होगा,
जान रहे थे योद्धा वीर ।
कूट ब्रितानी चलने वाले,
आगे कोई चाल अधीर ।।
दोहे:-
हार गये गोरे समर, राजा भी बल हीन।
पर ब्रितानिए लग रहे, जैसे कोई दीन।।१
एक वर्ष के बाद में, सैन्य लिए बहु ओर।
गोरों ने दलबल सहित, धावा बोला घोर।।२
ठाकुर राव सभी मिलकर के,
व्हूय रचेंगे एक अजेय ।
गोरों को पाठ पढ़ाना है,
सोच यही सबका था धेय।।
विधना को स्वीकार नहीं था,
रचना हो जब तक संपूर्ण।
उससे पहले घात लगा कर
अंग्रेजों ने फेंका तूर्ण।।
तीन महीने बीत रहे थे,
वर्ष नये की थी शुरुआत।
बहु छावनियों से ले सेना,
गोरों ने की मोटी घात।।
क्रांति महा के सामन्तों पर,
टूट किया आकस्मिक वार।
लूट खसोट मचाई भारी,
कर विस्फोट सुरंग अपार।।
सुगली देवी मूर्ति उठाई,
और मचाई भारी मार।
दो बारी की हार करारी,
बदला लेने की थी खार।।
वीर लड़े अंतिम सांसों तक,
एक भिडे थे बीस समान।
साधन थे परिमित लेकिन,
काँप रही गोरों की जान।।
रक्त पिपासु कृपानें बहती,
काट रही थी अरि के मुंड।
लेकिन शत्रु विशाल खड़ा था,
साथ दिखे फिर भारी झुंड़।।
गोला बारूद जटिल भारी,
और विशाल कटक के साथ।
अंग्रेजों ने फिर रण छेड़ा
मुठ्ठी भर रजपूत अकाथ।।
दोहे:-
कहते हैं दुर्भाग्य से, क्रांति हुई थी व्यर्थ।
पर ब्रितानियों के लिए, भारी ये प्रत्यर्थ।।१
रजपूताने में कभी, फिर न जमे थे पाँव।
गोरों का बस रह गया, एक अजमेर ठाँव।।२
वीर जुझारू थे कुशल, क्रांति कारी महान।
देश भलाई हित किया ,तन मन धन बलिदान।।३
रजपूते ये वीर थे, तीक्ष्ण तेज तलवार।
निज माटी सम्मान में,बही रक्त की धार।।४
*कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'*