सुख भरे सपने
रात निखरी झिलमिलाई
नेह सौ झलती रही
चाँदनी के वर्तुलों में
सोम रस भरती रही।
सुख भरे सपने सजे जब
दृग युगल की कोर पर
इंद्रनीला कान्ति शोभित
व्योम मन के छोर पर
पिघल-पिघल कर निलिमा से
सुर नदी झरती रही।।
गुनगुनाती है दिशाएँ
राग ले मौसम खड़ा
बाँह में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा
पपनियाँ आशा सँजोए
रात यूँ ढलती रही।।
विटप भरते रागिनी सी
मिल अनिल की थाप से
झिलमिलाता अंभ सरि का
दीप मणि की चाप से
उतर आई अप्सराएँ
भू सकल सजती रही ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
गुनगुनाती है दिशाएँ
ReplyDeleteराग ले मौसम खड़ा
बाँह में आकाश भरने
पाखियों सा मन उड़ा
पपनियाँ आशा सँजोए
रात यूँ ढलती रही.. वाह!बहुत बहुत ही सुंदर सृजन दी।
सादर
बहुत आभार आपका अनिता आपकी मनमोहक प्रतिक्रिया से रचना प्रवाहित हुई।
Deleteसस्नेह।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार
(9-11-21) को बहुत अनोखे ढंग"(चर्चा अंक 4242) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी , चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।मैं उपस्थित रहूंगी चर्चा पर ।
Deleteसादर सस्नेह।
रात निखरी झिलमिलाई
ReplyDeleteनेह सौ झलती रही
चाँदनी के वर्तुलों में
सोम रस भरती रही।
आगाज़ इतना खूबसूरत तो गीत के समापन की तो बात ही क्या कहिए । अत्यंत सुंदर सृजन ।
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से लेखन और लेखनी दोनों में उत्साह प्रवाहित होता है ।
Deleteसस्नेह आभार मीना जी।
ReplyDeleteविटप भरते रागिनी सी
मिल अनिल की थाप से
झिलमिलाता अंभ सरि का
दीप मणि की चाप से
उतर आई अप्सराएँ
भू सकल सजती रही ।।..बहुत सुंदर सृजन ।
हृदय से आभार आपका जिज्ञासा जी, आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, आपकी प्रतिक्रिया से लेखनी उर्जावान हुई।
Deleteसादर।
यामिनी का सुंदर ललित वर्णन
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अनिता जी मोहक प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
गुनगुनाती है दिशाएँ
ReplyDeleteराग ले मौसम खड़ा
बहुत सुन्दर
बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
जीवन में सुख कितना भी मिले, लेकिन सुख-सपन देखने की कोई थाह नहीं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
सार्थक उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार कविता जी ब्लॉग पर सदा स्वागत है आपका।
Deleteसस्नेह।
सुख भरे सपने सजे जब
ReplyDeleteदृग युगल की कोर पर
इंद्रनीला कान्ति शोभित
व्योम मन के छोर पर
पिघल-पिघल कर निलिमा से
सुर नदी झरती रही।।
वाह!!!
सराहना से परे...अद्भुत एवं लाजवाब नवगीत।
स्निग्ध सरस प्रतिक्रिया से रचना गतिमान हुई सुधा जी स्नेह आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
ReplyDeleteउत्साह वर्धन हुआ।
सादर।