हरि बस चक्र थाम लो।
हरि बस चक्र थाम लो तुम
पाप चढ़े अब धरणी पर
अब न थामना काठ मुरलिया
जग बैठा है अरणी पर।
घूम रहे सब दिशा दुशासन
दृग मोड़ कर साधु बैठे
लाज धर्म को भूल घमंडी
मूढ से शिशुपाल ऐंठे
सकल ओर तम का अँधियारा
घोर लहर है तरणी पर।।
बहुत दिनों तक रास रचाए
ग्वाल बाल सँग चोरी
और घनेरा माखन खाया
फोडी गगरी बरजोरी
सब कुछ भोगा इसी धरा से
विश्व नाचता दरणी पर।।
तुम तो गौ धन के रखवाले
दीन दुखी तुमको प्यारे
कैसे कैसे रूप रचा कर
काम किये कितने न्यारे
अब सोये हो किस शैया पर
व्याघ्र चढ़े हैं उरणी पर।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२५-११-२०२१) को
'ज़िंदगी का सफ़र'(चर्चा अंक-४२५९ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
Deleteसादर सस्नेह।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 25 नवंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सादर आभार आपका पाँच लिंक पर आना मेरे लिए सदा ही
Deleteहर्ष का विषय है।
सादर ।
ReplyDeleteतुम तो गौ धन के रखवाले
दीन दुखी तुमको प्यारे
कैसे कैसे रूप रचा कर
काम किये कितने न्यारे
अब सोये हो किस शैया पर
व्याघ्र चढ़े हैं उरणी पर।।... सटीक निवेदन हरि से ।बहुत सार्थक और सामयिक चिंतन पर आपकी रचना बहुत प्रशंसनीय है ।
रचना पर विचारशील सार्थक प्रतिक्रिया से रचना गौरांवित हुई,
Deleteआपका हृदय से आभार जिज्ञासा जी ।
सस्नेह।
सार्थक व सुंदर प्रार्थना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर आह्वान ! वह भी तो देख ही रहा होगा अपनी कठपुतलियों की हरकतें !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका गगन जी, सटीक संकेत देते शब्द आपके।
Deleteसादर।
और अंत में ये कहना कि ----"अब सोये हो किस शैया पर
ReplyDeleteव्याघ्र चढ़े हैं उरणी पर।।" निश्चित ही कन्हैया को भी बाध्य कर रहा होगा कि अब बस बहुत हुआ...वाह क्या खूब ही लिखा कुसुम जी
अहा अलकनंदा जी आपकी टिप्पणियां मुझे सदा विभोर करती है ।
Deleteढेर सारा आभार आपका,सदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह
घूम रहे सब दिशा दुशासन
ReplyDeleteदृग मोड़ कर साधु बैठे
लाज धर्म को भूल घमंडी
मूढ से शिशुपाल ऐंठे
सकल ओर तम का अँधियारा
घोर लहर है तरणी पर।।
बहुत ही सार्थक एवं सारगर्भित आवाहन प्रभु का..उनके सिवा कौन धरा का दुख हर सकता है....अद्भुत शब्दसंयोजन लाजवाब सृजन।
वाह!!!
सुधा जी सुंदर सकारात्मक टिप्पणी के लिए हृदय से आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर प्रार्थना !
ReplyDeleteलेकिन अब राम-भरोसा छोड़ कर अपनी कठिनाइयों पर स्वयं विजय प्राप्त करने का संकल्प लिया जाए तो बेहतर होगा.
जी सही कहा सर आपने , यहां हरि तो प्रतीक भर है,सभी से आह्वान है,एक तरफा सद्भाव अहिंसा की आड़ में स्वयं को बचाते रहना, और भी आदर्शों के थोथे आडम्बर में दूसरों को दिग्भ्रमित करना छोड़ संकल्प रूपी चक्र उठाना होगा हर एक को ।
ReplyDeleteसादर आभार आपका।