महा लक्ष्मी
अहो द्युलोक से कौन अद्भुत
हेमांगी वसुधा पर आई
दिग-दिगंत आभा आलोकित
मरुत बसंती सरगम गाई।।
महारजत के वसन अनोखे
दप-दप दमके कुंदन काया
आधे घूंघट चंद्र चमकता
अप्सरा सी ओ महा-माया
कणन-कणन पग बाजे घुंघरु
सलिला बन कल-कल लहराई।।
चारु कांतिमय रूप देखकर
चाँद लजाया व्योम ताल पर
मुकुर चंद्रिका आनन शोभा
झुके-झुके से नैना मद भर
पुहुप कली से अधर रसीले
ज्योत्सना पर लालिमा छाई।।
कौमुदी कंचन संग लिपटी
निर्झर जैसा झरता कलरव
सुमन की ये लगे सहोदरा
आँख उठे तो टूटे नीरव
चपल स्निग्ध निर्धूम शिखा सी
पारिजात बन कर लहराई।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
मंगलकामनाएं
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत सुन्दर।♥️
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
Deleteसादर।
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-११-२०२१) को
'शुभ दीपावली'(चर्चा अंक -४२३९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
जी बहुत बहुत आभार आपका मैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteहृदय से आभार आपका मनोज जी ।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
देवी का सुंदर वंदन व वर्णन
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका अनिता जी, आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह।
सच बहुत सुंदर भाव से सुशोभित मनमोहनी रचना ।
ReplyDeleteहृदय तल से आभार आपका जिज्ञासा जी मेरी रचना को मान देने के लिए ।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
ReplyDeleteसादर।
मनमोहक शब्द चित्र । दीपावली पर मानो साक्षात मनमोहिनी धरा पर उतर आई हो । अति सुन्दर ।
ReplyDeleteसस्नेह आभार मीना जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
कौमुदी कंचन संग लिपटी
ReplyDeleteनिर्झर जैसा झरता कलरव
सुमन की ये लगे सहोदरा
आँख उठे तो टूटे नीरव
चपल स्निग्ध निर्धूम शिखा सी
पारिजात बन कर लहराई
कमाल का नवगीत महा लक्ष्मी पर !
अद्भुत बिम्बों से सजा
वाह!!!
हृदय से आभार सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा लेखनी में उत्साह भरती है ।
Deleteसस्नेह।