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Friday, 5 November 2021

महा लक्ष्मी


 महा लक्ष्मी


अहो द्युलोक से कौन अद्भुत

हेमांगी वसुधा पर आई

दिग-दिगंत आभा आलोकित

मरुत बसंती सरगम गाई।।


महारजत के वसन अनोखे 

दप-दप दमके कुंदन काया

आधे घूंघट चंद्र चमकता

अप्सरा सी ओ महा-माया

कणन-कणन पग बाजे घुंघरु

सलिला बन कल-कल लहराई।।


चारु कांतिमय रूप देखकर  

चाँद लजाया व्योम ताल पर

मुकुर चंद्रिका आनन शोभा

झुके-झुके से नैना मद भर

पुहुप कली से अधर रसीले

ज्योत्सना पर लालिमा छाई।‌।


कौमुदी  कंचन संग लिपटी 

निर्झर जैसा झरता कलरव

सुमन की ये लगे सहोदरा

आँख उठे तो टूटे नीरव

चपल स्निग्ध निर्धूम शिखा सी

पारिजात बन कर  लहराई।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

19 comments:

  1. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
      सादर।

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  2. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका शिवम् जी।
      सादर।

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  3. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(०६-११-२०२१) को
    'शुभ दीपावली'(चर्चा अंक -४२३९)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका मैं मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
      सस्नेह।

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  4. सुन्दर सृजन

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    1. हृदय से आभार आपका मनोज जी ।
      सादर।

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  5. बहुत सुंदर प्रस्तुति

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रिया।
      सादर।

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  6. देवी का सुंदर वंदन व वर्णन

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    1. सस्नेह आभार आपका अनिता जी, आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह।

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  7. सच बहुत सुंदर भाव से सुशोभित मनमोहनी रचना ।

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    1. हृदय तल से आभार आपका जिज्ञासा जी मेरी रचना को मान देने के लिए ।
      सस्नेह।

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  8. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
    सादर।

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  9. मनमोहक शब्द चित्र । दीपावली पर मानो साक्षात मनमोहिनी धरा पर उतर आई हो । अति सुन्दर ।

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    1. सस्नेह आभार मीना जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
      सस्नेह।

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  10. कौमुदी कंचन संग लिपटी

    निर्झर जैसा झरता कलरव

    सुमन की ये लगे सहोदरा

    आँख उठे तो टूटे नीरव

    चपल स्निग्ध निर्धूम शिखा सी

    पारिजात बन कर लहराई
    कमाल का नवगीत महा लक्ष्मी पर !
    अद्भुत बिम्बों से सजा
    वाह!!!

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    1. हृदय से आभार सुधा जी आपकी प्रतिक्रिया सदा लेखनी में उत्साह भरती है ।
      सस्नेह।

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