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Sunday, 14 November 2021

दोला !!


 दोला !!


इक हिंडोला वृक्ष बँधा है

दूजा ओझल डोले।

थिरक किवाड़ी मन थर झूले

फिर भी नींद न खोले।।


बादल कैसे काले-काले

घोर घटाएं छाई

चमक-चमक विकराल दामिनी

क्षिति छूने को धाई

मन के नभ पर महा प्रभंजन

कितने बदले चोले।।


रेशम डोर गाँठ कच्ची है

डाली सूखी टूटे

पनघट जाकर भरते-भरते

मन की गागर फूटे

विषयों के घेरे में जीवन

दोला जैसे दोले।।


बहुत कमाया खर्चा ज्यादा

बजट बिगाड़ा पूरा

रहें बटोरे निशदिन हर पल

भग्न स्वप्न का चूरा

वाँछा में आलोड़ित अंतर

कच्ची माटी तोले।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

18 comments:

  1. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।
      सादर।

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  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. सादर आभार यशोदा जी मैं अनुग्रहित हूं।
      पांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
      मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
      सादर सस्नेह।

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  3. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।

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  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मधुलिका जी।
      सस्नेह।

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  5. बहुत ही सुंदर

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका।
      सस्नेह।

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  6. सुंदर, जीवन दर्शन । एक सार्थक रचना ।

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    1. बहुत सा स्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।
      उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
      सस्नेह।

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  7. वाह!कुसुम जी ,खूबसूरत भावों से सजी रचना ।

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    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
      सस्नेह

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