दोला !!
इक हिंडोला वृक्ष बँधा है
दूजा ओझल डोले।
थिरक किवाड़ी मन थर झूले
फिर भी नींद न खोले।।
बादल कैसे काले-काले
घोर घटाएं छाई
चमक-चमक विकराल दामिनी
क्षिति छूने को धाई
मन के नभ पर महा प्रभंजन
कितने बदले चोले।।
रेशम डोर गाँठ कच्ची है
डाली सूखी टूटे
पनघट जाकर भरते-भरते
मन की गागर फूटे
विषयों के घेरे में जीवन
दोला जैसे दोले।।
बहुत कमाया खर्चा ज्यादा
बजट बिगाड़ा पूरा
रहें बटोरे निशदिन हर पल
भग्न स्वप्न का चूरा
वाँछा में आलोड़ित अंतर
कच्ची माटी तोले।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
वाह
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
DeleteVery good
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार यशोदा जी मैं अनुग्रहित हूं।
Deleteपांच लिंक पर रचना को शामिल करने के लिए।
मैं मंच पर उपस्थित रहूंगी।
सादर सस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी।
Deleteबहुत सुंदर,
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मधुलिका जी।
Deleteसस्नेह।
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसस्नेह।
सुंदर सृजन,
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका।
Deleteसुंदर, जीवन दर्शन । एक सार्थक रचना ।
ReplyDeleteबहुत सा स्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
वाह!कुसुम जी ,खूबसूरत भावों से सजी रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसस्नेह