अज्ञात कविताओं का दर्द।
इंतजार में पड़ी रही वो कविताएँ दबी सी किन्हीं पन्नों में,
कि कभी तो हाँ कभी तो तुम उन्हें मगन हो गुनगुनाओगी।
जब लिखा था तो व्यंजनाएँ हृदय से फूटी थी अंदर गहरे से,
कहो ये तो सच है न कितने स्नेह से सहेजा था उन्हें।
और भूल गई उनको सफर में मिले यात्रियों की तरह,
वो कसमसाती रही तुम्हारे बस तुम्हारे होठों तक आने को।
उन में भी नेह,सौंदर्य,प्रेम,स्नेह स्पर्श था पीड़ा थी दर्द था,
आत्म वंचना, मनोहर दृश्य और प्रकृति भी सजी खड़ी थी।
तुम्हारी ही तो कृति थी वात्सल्य से सजाया था उन्हेें,
आज पुरानी गुड़िया सी उपेक्षित किसी कोने में पड़ी है।
अलंकार पहनाए थे सभी कुछ पहना दिया,
पर एक पाँव में पाजेब आज तक नही पहनाई।
वो पहनने से छूटी पाजेब आज भी बजना चाहती है,
उन्हीं पुरानी कविताओं के एक सूने पाँव में बंध कर।
हाँ आज भी इंतजार में है ढेर से बाहर आने को,
तुम्हारे होठों पर चढ़ कर इतराने को गुनगुनाने को।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
बिलकुल अपने मन की बात कहती सुंदर, सार्थक रचना । कभी कभी तो वो रचनाएं हैरान कर देती हैं कि ये हमारी लिखी हैं,पर वही अनदेखी । अति सुंदर भाव एक साहित्यकार के💐💐👌👌
ReplyDeleteरचना के भावों को समर्थन देती सुंदर प्रतिक्रिया से रचना ने और सभी सुदृढ़ता पाई जिज्ञासा जी आपका हृदय इस आभार ।
Deleteसस्नेह।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (29 -11-2021 ) को 'वचनबद्ध रहना सदा, कहलाना प्रणवीर' (चर्चा अंक 4263) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
सादर आभार आपका में मंच पर अवश्य उपस्थित रहूंगी।
Deleteरचना को चर्चा में शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteवाह ! पुरानी कविताएँ फिर सजना चाहती हैं, नए कलेवर में आकर कुछ कहना चाहती हैं, बेहद भावपूर्ण रचना !!
ReplyDeleteबहुत बहुत सा आभार आपका, सुंदर उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
आत्म वंचना, मनोहर दृश्य और प्रकृति भी सजी खड़ी थी
ReplyDeleteवो कसमसाती रही तुम्हारे बस तुम्हारे होठों तक आने को।
निशब्द हूँ दी भावों की अथाह गहराई... लाज़वाब सृजन।
शब्द शब्द मन को छूता।
हार्दिक बधाई।
सस्नेह आभार आपका प्रिय अनिता आपकी मनमोहक उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
क्या बात है ! बहुत खूब
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका, उत्साह वर्धन हुआ।
Deleteसादर।
सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteउत्साह वर्धन हुआ आपकी प्रतिक्रिया से।
सादर।
वाह अद्भुत
ReplyDeleteजी उत्साह वर्धन के लिए आत्मीय आभार।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteरचना सार्थक हुई।
सादर।
कुछ यादें, कुछ बातें कुछ कागज़ों में लिखी कवितायें ...
ReplyDeleteपुरानी नहीं बस पीछे हो जाती हैं पर जब आती हैं यादों का कारवाँ साथ ले आती हैं ...
सुन्दर रचना ...
विस्तृत व्याख्यात्मक प्रतिपंक्तियाँ रचना में नव जीवन का संचार कर देती है ।
Deleteहृदय से आभार आपका उत्साहवर्धन के लिए ।
सादर।
सुन्दर अति सुन्दर, हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।, एक राय मेरी रचना पर भी
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
ReplyDeleteआपका ब्लॉग नहीं खुल रहा कृपया देखें 🙏🏼
और भूल गई उनको सफर में मिले यात्रियों की तरह,
ReplyDeleteवो कसमसाती रही तुम्हारे बस तुम्हारे होठों तक आने को।
सच में यही तो करते हैं हम ...जरा पीछे तो देखें ...तब और अब के भावों में तुलना कर नया ही अनुभव भी मिलेगा...
सटीक सार्थक एवं सारगर्भित सृजन।