मन हिरणी
हृदय मरुस्थल मृगतृष्णा सी
भटके मन की हिरणी
सूखी नदिया तीर पड़ी ज्यों
ठूँठ काठ की तरणी।।
कब तक राह निहारे किसकी
सूरज डूबा जाता
काया झँझर मन झंझावात,
हाथ कभी क्या आता
अंतर दहकन दिखा न पाए
कृशानु तन की अरणी।।
रेशम धागा उलझ रखा है,
गाँठ पड़ी है पक्की
भँवर याद के चक्कर काटे
जैसे चलती चक्की
जाने वाले जब लौटेंगे
तभी रुकेगी दरणी।।
सुधि वन की मृदु कोंपल कच्ची
पोध सँभाल रखी है
सूनी गीली साँझ में पीर
एक घनिष्ठ सखी है
दिन प्रात और रातें बीती
वहीं रुकी अवतरणी ।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मनोज जी रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई सादर।
Deleteवाह
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय, आपकी उपस्थिति सदा उत्साहवर्धन करती है।
Deleteसादर।
वाह!बहुत बहुत ही सुंदर नवगीत आदरणीय कुसुम दी जी।
ReplyDeleteशब्द शब्द हृदय को स्पर्श करता।
सराहनीय भाव।
सादर प्रणाम
बहुत बहुत आभार आपका प्रिय अनिता आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से लेखन सदा उर्जावान होता है।
Deleteसस्नेह।
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (2-11-21) को "रहे साथ में शारदे, गौरी और गणेश" (चर्चा अंक 4235) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
बहुत बहुत आभार आपका कामिनी जी , चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
Deleteचर्चा मंच पर आना मेरे लिए सदा गौरव का विषय है।
सादर सस्नेह।
कोमल भावनाओं से ओतप्रोत सुंदर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका अनिता जी ।
Deleteआपकी टिप्पणी से उत्साह वर्धन हुआ।
सस्नेह।
भाव विभोर करती उत्कृष्ट रचना बहुत बहुत बधाई कुसुम जी 💐💐।
ReplyDeleteरचना आपको पसंद आई मेरा सौभाग्य है जिज्ञासा जी आप जैसे प्रबुद्ध पाठकों से ही लेखन निरंतर जारी रहता है।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए।
Deleteसादर।
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना प्रिय कुसुम बहन। आपकी लेखनी से निसृत भावों से भरा सृजन अनमोल है। भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों मज़बूत हैं। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई सुन्दर रचना के लिए।
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका रेणु बहन आपकी विस्तृत स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteऔर कलम में नये जोश का संचार हुआ।
सुंदर सार्थक सकारात्मक ऊर्जा के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
दीप पर्व पर आप को सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई। ज्योति पर्व आपके लिए शुभता और खुशियां लेकर आए यही कामना करती हूं ❤️❤️🌷🌷
ReplyDeleteआपको भी सभी पर्वों पर सह परिवार हार्दिक शुभकामनाएं।
Deleteबहुत ही सुंदर😍💓
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मनीषा जी आपकी प्रतिक्रिया से रचना प्रवाहित हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत बहुत बहुत सुंदर पंक्तियां कुसुम जी, आप इतना गहरा लिख देती हैं कि निशब्द हो जाते हैं हम "कब तक राह निहारे किसकी
ReplyDeleteसूरज डूबा जाता
काया झँझर मन झंझावात,
हाथ कभी क्या आता
अंतर दहकन दिखा न पाए
कृशानु तन की अरणी।।" बहुत ही सुंदर
मैं आपकी टिप्पणी से सदा अभिभूत होती हूं अलकनंदा जी आप रचनाकार को एक उत्कृष्ट सा एहसास करवाती हैं।
Deleteआपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
मर्मभेदी अभिव्यक्ति
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका जितेन्द्र जी, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया ।
Deleteसादर।
कमाल का सृजन कुसुम जी!
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक रचनाएं आपके ब्लॉग से बाहर निकलने का मन नहीं करता...
काश रोज का रोज आपकी पोस्ट पाती।
माँ सरस्वती यूँ ही आप पर हमेशा अपना आशीर्वाद बनाए रखे।
मोहक मन को आनंदित करती प्रतिक्रिया सुधा जी।
Deleteआपकी टिप्पणी सदा लेखनी को उर्जा प्रदान करती है।
सस्नेह।