Followers

Friday, 29 October 2021

मन: स्थिति


 ग़ज़ल (गीतिका)

२१२२×४

मन: स्थिति


आज जीने के लिये लो चेल कितने ही सिए हैं।

मान कर सुरभोग विष के घूँट कितनों ने पिए हैं।।


दाग अपने सब छुपाते धूल दूजों पर  उड़ाते ।

दिख रहा जो स्वर्ण जैसा पात खोटा ही लिए है।।


रह रहे मन मार कर भी कुछ यहाँ संसार में तो।

धीर कितनें जो यहाँ विष पान करके भी जिए है।।


दुश्मनों की नींद लूटे चैन भी रख दाँव पर वो।

रात दिन रक्षा करे जो प्राण निज के भी दिए हैं।।


जी रहा कोई यहाँ बस स्वार्थ अपने साधने को‌।

वीरता से देश हित में काम कितनों ने किए है।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

14 comments:

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(३०-१०-२०२१) को
    'मन: स्थिति'(चर्चा अंक-४२३२)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए।
      सादर सस्नेह।

      Delete
  2. रह रहे मन मार कर भी कुछ यहाँ संसार में तो।

    धीर कितनें जो यहाँ विष पान करके भी जिए है।।
    बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
      आपकी टिप्पणी से लेखन सार्थक हुआ।
      सस्नेह।

      Delete
  3. बेहतरीन गीतिका सखि

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सखी आपको पसंद आई गीतिका सार्थक हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  4. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आलोक जी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।

      Delete
  5. वाह!गज़ब का सृजन 👌
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सस्नेह आभार प्रिय अनिता आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से
      रचना गतिमान हुई।
      सस्नेह।

      Delete
  6. बहुत सुन्दर कुसुम जी !
    आज का दौर लोक-कल्याण के लिए विषपान करने वाले का नहीं है !
    आज तो आस्तीन के साँपों का और पीठ में छुरा भोंकने वाले दोस्तों का, ज़माना है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने सर पर सकारात्मक सोच हो तो बहुत कुछ अच्छा हो सकता है ये मेरा मानना है , भावों की उत्तमता सदा सकारात्मक उर्जा का संचार करती है ।
      कुछ अच्छाइयां सदा बुराईयों से लड़ती रहती है।
      वैसे आपने दुरुस्त फ़रमाया ।
      हृदय से आभार आपका ब्लॉग पोस्ट पर आपकी उपस्थिति के लिए।
      सादर।

      Delete
  7. रह रहे मन मार कर भी कुछ यहाँ संसार में तो।

    धीर कितनें जो यहाँ विष पान करके भी जिए है।।
    एकदम सटीक ...
    कष्टपूर्ण समय में धैर्य धारण यदि करें तो जीने और कष्टों से निकलने के नये मार्ग स्वतः मिलें...
    लाजवाब सृजन।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सुंदर! भावों पर गहन विस्तृत चिंतन करती सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार सुधा जी ।
      सस्नेह।

      Delete