लाल
देह छोटी बान ऊंची
वस्त्र खद्दर डाल के
हल सदा देते रहे वो
शत्रुओं की चाल के।
भाव थे उज्ज्वल सदा ही
देश का सम्मान भी
सादगी की मूर्त थे जो
और ऊंची आन भी
आज गौरव गान गूँजे
भारती के लाल के।
थे कृषक सैना हितैषी
दीन जन के मीत थे
कर्म की पोथी पढ़ाई
प्रीत उनके गीत थे
पाक को दे पाठ छोड़ा
मान भारत भाल के।।
वो धरा के वीर बेटे
त्याग ही सर्वस्व था
बोल थे संकल्प जैसे
देश हित वर्चस्व था
फिर अचानक वो बने थे
ग्रास निष्ठुर काल के।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
देह छोटी बान ऊंची
ReplyDeleteवस्त्र खद्दर डाल के
हल सदा देते रहे वो
शत्रुओं की चाल के।
वाह!!!
क्या बात !!!...
शुरुआत ही अपनेआप में सम्पूर्ण एवं लाजवाब
कमाल का नवगीत...
भारती के लाल को शत शत नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि।
बहुत बहुत आभार आपका सुधाजी हमेशा की तरह सुंदर प्रतिक्रिया रचना को नव उर्जा प्रदान करती ।
Deleteसस्नेह।
नमन
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteसादर।
लाल बहादुर शास्त्री जी का अनुकरणीय व्यक्तित्त्व हमें हमेशा शालीनता सादगी और मूल्यवान जीवन जीने की प्रेरणा देता रहेगा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सराहनीय लिखा है आपने आदरणीया कुसुम दी।
सादर नमन।
जी सही कहा आपने महान आत्मा थे शास्त्री जी ।
Deleteआपकी रचना को समर्थन देती सुंदर प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार।
सस्नेह।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
वाह,बहुत सुंदर।
ReplyDeleteनमन है भारत माता के महान सपूत को।
जी सचमुच नमन है भारत माँ के महान सपूत को।
Deleteसादर आभार।
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (04-10-2021 ) को 'जहाँ एक पथ बन्द हो, मिले दूसरी राह' (चर्चा अंक-4207) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। रात्रि 12:01 AM के बाद प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जी बहुत बहुत आभार आपका, रचना को चर्चा में शामिल करने के लिए ।
Deleteमैं चर्चा पर उपस्थित रहूंगी।
सादर।
सर्व प्रथम सह सम्मान धन्यवाद ! मेरे blog पर आने और प्रतिक्रिया देने के लिए ।
ReplyDeleteआपकी प्रतिक्रिया मेरे लिये ऊर्जा तुल्य है।
देह छोटी बान ऊंची
वस्त्र खद्दर डाल के
हल सदा देते रहे वो
शत्रुओं की चाल के।
थे कृषक सैना हितैषी
दीन जन के मीत थे
कर्म की पोथी पढ़ाई
प्रीत उनके गीत थे
पाक को दे पाठ छोड़ा
मान भारत भाल के।।
बहुत ही कम शब्दों में एक महान आत्मा का चरित्र चित्रण।
उत्तम अति उत्तम !
जी सुंदर विस्तृत प्रतिक्रिया से रचना को नव उर्जा मिली ।
Deleteसादर आभार आपका।
बहुत ही शानदार रचना आपकी कलम को प्रणाम करता हूँ
ReplyDeleteजी आत्मीय आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
देह छोटी बान ऊंची
ReplyDeleteवस्त्र खद्दर डाल के
हल सदा देते रहे वो
शत्रुओं की चाल के। बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, कुसुम दी। भारत के सच्चे सपूत को विनम्र श्रध्दांजलि।
बहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
ReplyDeleteवो धरा के वीर बेटे
त्याग ही सर्वस्व था
बोल थे संकल्प जैसे
देश हित वर्चस्व था
फिर अचानक वो बने थे
ग्रास निष्ठुर काल के।।
मां भारती के सुयोग्य और सुसंस्कारी सुत को समर्पित भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय कुसुम बहन। अपने सदाचारी, निर्मल आचरण से उन्होंने देश की गरिमा और महिमा दोनों बढ़ाई। उनकाअसमय जाना राष्ट्र की अपूरणीय क्षति है। उनकी पुण्य स्मृति को सदैव ही सादर नमन है 🙏🙏🌷🙏🙏
बहुत बहुत आभार आपका रेणु बहन सुंदर भाव प्रणव टिप्पणी से रचना प्रवाहित हुई , आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से मन खुश हुआ ।
ReplyDeleteसस्नेह।