पीड़ा कैसे लिखूँ
पीड़ा कैसे लिखूँ
दृग से बह जाती है,
समझे कोई न मगर
कुछ तो ये कह जाती है,
तो फिर हास लिखूँ,
परिहास लिखूँ,
नहीं कैसे जलते
उपवन पर रोटी सेकूँ।
मानवता रो रही,
मैं हास का दम कैसे भरूँ,
करूणा ही लिख दूँ,
बिलखते भाग्य पर
अपनी संवेदना,
पर कैसे कोई मरहम
होगा मेरी कविता से,
कैसे पेट भरेगा भूख का,
कैसे तन को स्वच्छ
वसन पहनाएगी
मेरी लेखनी।
क्या लू से जलते
की छाँव बनेगी
मेरी कविता।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय आपका।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteजी आत्मीय आभार आपका।
Deleteसादर।
उम्दा प्रस्तुति...
ReplyDeleteजी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२८-१०-२०२१) को
'एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ'(चर्चा अंक-४२३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
सादर आभार आपका, चर्चा में रचना को स्थान देने के लिए
Deleteहृदय से आभार।
सादर सस्नेह।
सार्थक प्रश्न का जवाब देती सुंदर सारगर्भित रचना ।
ReplyDeleteहृदय से आभार जिज्ञासा जी,रचना का मर्म समझने के लिए।
Deleteसस्नेह।
सुन्दर सृजन
ReplyDeleteजी आत्मीय आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया के लिए ।
Deleteसादर।
मेरी कविता से,
ReplyDeleteकैसे पेट भरेगा भूख का,
कैसे तन को स्वच्छ
वसन पहनाएगी
मेरी लेखनी।
क्या लू से जलते
की छाँव बनेगी
मेरी कविता।।
बहुत ही सार्थक एवं हृदयस्पर्शी सृजन
समय साक्ष्य है कि लेखन के बल का...परिवर्तन का...आपकी कविता आपके मन की संवेदना को प्रस्फुटित कर पाठक के मन में संवेदना जगायेगी और प्रत्येक संवेदनशील मन अपने इर्दगिर्द किसी को भूखा न रहने देगा।
लाजवाब सृजन।
सुधा जी हृदय से आभार आपकी सुंदर मोहक प्रतिक्रिया से रचना अपना आकार पा जाती है।
Deleteस्नेहिल आभार ।
मानवता रो रही,
ReplyDeleteमैं हास का दम कैसे भरूँ,
करूणा ही लिख दूँ,
बिलखते भाग्य पर
अपनी संवेदना, ... वाह! बहुत सुंदर व्यंजना।
मैं अभिभूत हूं विश्व मोहन जी आप की प्रबुद्ध प्रतिक्रिया से रचना ने अपना अर्थ पा लिया ।
ReplyDeleteसादर आभार आपका।