कह बतियाँ
चल सखी ले घट पनघट चलें
राह कठिन बातों में निकले।
अपने मन की कह दूँ कुछ तो
कुछ सुनलूँ तुमसे भी घर की
साजन जब से परदेश गये
परछाई सी रहती डर की
कुछ न सुहाता है उन के बिन
विरह प्रेम की बस हूक जले।।
अब कुछ भी रस नहीं लुभाते
बिन कंत पकवान भी फीके
कजरा गजरा मन से उतरे
न श्रृंगार लगे मुझे नीके
रैन दिवस नैना ये बरसते
श्याम हुवे कपोल भी उजले।।
कहो सखी अब अपनी कह दो
अपने व्याकुल मन की बोलो
क्या मेरी सुन दृग हैं छलके
अंतर रहस्य तुम भी खोलो
खाई चोट हृदय पर गहरी
या फिर कोई विष वाण चले।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२२-१०-२०२१) को
'शून्य का अर्थ'(चर्चा अंक-४२२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत बहुत आभार आपका, चर्चा मंच पर रचना को शामिल करने के लिए हृदय से आभार।
Deleteसादर सस्नेह।
वाह
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय।
Deleteसादर।
बहुत सुंदर रचना, कुसुम दी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति बहन, उत्साह वर्धन करती प्रतिक्रिया।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteसादर आभार आपका, उत्साह वर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteमार्मिक चित्रण
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteसादर।
विरह रस में डूबी सुंदर रचना
ReplyDeleteसस्नेह आभार आपका अनिता जी।
Deleteउत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
सस्नेह।
आपकी सृजनात्मक शक्ति प्रेरित करती है । आपके सृजन कौशल थी जितनी प्रशंसा करूं कम होगी । अति उत्तम भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteटंकण त्रुटि के कारण थी* के स्थान पर "की" पढ़े 🙏
Deleteआपकी सृजनात्मक शक्ति प्रेरित करती है । आपके सृजन कौशल की जितनी प्रशंसा करूं कम होगी । अति उत्तम भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी, आपका स्नेह मेरे लेखन के लिए उर्जा काम करता है।
Deleteसदा स्नेह बनाए रखें।
सस्नेह।
अतिसुंदर चित्रण व मार्मिक रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से रचना मुखरित हुई।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आलोक जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
Deleteसादर।
कहो सखी अब अपनी कह दो
ReplyDeleteअपने व्याकुल मन की बोलो
क्या मेरी सुन दृग हैं छलके
अंतर रहस्य तुम भी खोलो
खाई चोट हृदय पर गहरी
या फिर कोई विष वाण चले।।
. मीत से विरहन की पीड़ा को शब्दों पे पिरो आपने जीवंत कर दिया, बहुत ही हृदयस्परशी काव्याभिव्यक्ति ।सुंदर रचना ।
बहुत बहुत सा आभार आपका जिज्ञासा जी आपकी मोहक प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई।
Deleteरचना में निहित भावों को आपने सुंदरता से देखा रचना मुखरित हुई।
सस्नेह।
बहुत बहुत आभार आपका सखी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया।
ReplyDeleteसस्नेह।
अप्रतिम सृजन ।
ReplyDeleteयह कविता मैंने तनिक विलंब से पढ़ी किन्तु इसका भाव तो शाश्वत है - युगों से विद्यमान है व अनिश्चित काल तक विद्यमान रहने वाला है। यह एक अनूठी कविता है जिसके भाव को उसके शब्दों से भी आत्मसात् किया जा सकता है तथा उन शब्दों के पार जाकर भी।
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