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Tuesday, 31 December 2019

नव वर्ष मंगलमय हो

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं


नवल ज्योति की धवल ज्योत्सना
स्वर्णिम रश्मियों  से सज आई ,
विगत वर्ष को जाते जाते दे दें
देखो आज भाव भरी विदाई,
भूलें वो सब  जो था दुखदायी ,
नव प्रभात का स्वागत  करलें ,
अंजुली भर  लें स्नेह  धूप  से ,
बांटे प्रेम भरी सौगातें , पीड़ा ले लें
कुछ फूल खिलादें, पेड़ लगादे ,
निर्बल  निर्धन  को सहारा दे दें ,
ऐसा मंजुल नव वर्ष  मनालें ।।

              कुसुम कोठारी।

Monday, 30 December 2019

कुसुम की कुण्डलियाँ -३

कुसुम की कुण्डलियाँ-३

9 आँचल
फहराता आँचल उड़े, मधु रस खेलो फाग
होली आई साजना,  आज सजाओ राग ,
आज सजाओ राग , कि नाचें सांझ सवेरा ,
बाजे चंग मृदंग ,खुशी मन झूमे मेरा ,
रास रचाए श्याम, गली घूमे लहराता
झुकी लाज सेआंख , पवन आँचल फहराता।।

10 कजरा
काला कजरा डाल के , बिंदी लगी ललाट
रक्तिम कुमकुम से सजे , बालों के दो पाट ,
बालों के दो पाट ,लगा होठों पर लाली
बेणी गजरे डाल ,चली नारी मतवाली ,
लाल लाल है गाल , नैन सुख देने वाला ,
अँजे सुबह औ शाम ,आंख में अंजन काला।

11 चूड़ी
चूड़ी पहनू कांच की , हरी लाल सतरंग ,
फागुन आया ओ सखी,ढ़ेर बजे है चंग,
ढ़ेर बजे है चंग , नशा सा देखो छाया,
फाल्गुन का ये मास ,नया पराग ले आया
साजन  आना आज ,  खिलाउं हलवा पूड़ी
छनकी पायल पैर , हाथ में छनके चूड़ी।।

12 झुमका
डाली पत्र विहीन है , पलास शोभा रुक्ष ,
लगे सुगढ़ स्वर्ण झुमका , विपिन सजे ये वृक्ष  ,
विपिन सजे ये वृक्ष , बिछे धरणी पर  ऐसे ,
गूँथें तारे चाँद , परी के आँचल जैसे ,
मोहक सुंदर रूप , सजी बगिया बिन माली,
बिछे धरा पर पूंज , सुनहरी चादर डाली।

कुसुम कोठारी

Sunday, 29 December 2019

नव वर्ष का नव विहान

नव वर्ष का नव विहान!

आओ सब मिल करें आचमन।

भोर की लाली लाई
आदित्य आगमन की बधाई ,
रवि लाया एक नई किरण
संजोये जो,सपने सब हो पूरण,
पा जायें सच में नवजीवन ,
उत्साह की सुनहरी धूप का उजास
भर दे सब के जीवन में उल्लास ।
आओ सब मिल करें आचमन।

साँझ ढले श्यामल चादर
जब लगे ओढ़ने विश्व!
नन्हें नन्हें दीप जला सब
प्रकाश बिखेरो चहुँ ओर ,
दे आलोक, हरें हर तिमिर,
त्याग अज्ञान मलीन आवरण
सब ओढ ज्ञान का परिधान पावन।
आओ सब मिल करें आचमन।

मानवता भाव रख अचल,
मन में रह सचेत प्रतिपल,
सह अस्तित्व ,समन्वय ,समता ,
क्षमा ,सजगता और परहितता
हो सब के रोम रोम में संचालन
सब प्राणी पाये सुख,आनंद
बोद्धित्व का हो घनानंद।
आओ सब मिल करें आचमन।

लोभ मोह जैसे अरि को हरा
दे ,जीवन को समतल धरा ,
बाह्य दीप मालाओं के संग
प्रदीप्त हो दीप मन अंतरंग
जीवन में जगमग ज्योत जले,
धर्म ध्वजा सुरभित अंतर मन
सब जीव दया का पहन के वसन ।
आओ सब मिल करें आचमन।।

          कुसुम कोठारी ।

Saturday, 28 December 2019

एक ओस बूंद का आत्म बोध


एक ओस बूंद का आत्म बोध

निलंबन हुवा निलाम्बर से ,
भान हुवा अच्युतता का, कुछ क्षण
गिरी वृक्ष चोटी ,इतराई ,
फूलों पत्तों दूब पर देख ,
अपनी शोभा मुस्काई ।
गर्व से अपना रूप मनोहर
आत्म प्रशंसा भर लाया ,
सूर्य की किरण पडी सुनहरी
अहा शोभा द्विगुणीत हुई !
भाव अभिमान के थे अब  उर्ध्वमुखी ।
भूल गई "मैं "अब निश्चय है अंत पास में ,
मैं तुषार बूंद नश्वर,भूली अपना रूप ,
कभी आलंबन अंबर का ,
कभी तृण सहारे सा अस्तित्व ,
पराश्रित ,नाशवान शरीर
या !"मैं "आत्मा अविनाशी 
भूल गई क्यों शुद्ध स्वरूप अपना।

              कुसुम कोठारी।

Friday, 27 December 2019

कुसुम की कुण्डलियाँ-२

५ पायल
पायल तो नीरव हुई , पाखी हुए उदास ,
कैसे में कविता लिखूं , शब्द नहीं है पास,
शब्द नही है पास ,हृदय कागज है कोरा ,
सूना अब आकाश , बुझा है मन का तारा ,
लेखन रस से हीन  ,करे है मन को घायल
मुक्ता चाहे हार , घुंघरू चाहे पायल ।।

६ कंगन
कंगन खनका जोर से , गोरी नाचे आज ,
पायल औ बिछिया बजे , घर में मंगल काज
घर में मंगल काज ,क्षउठा ली जिम्मेदारी 
चूनर सुंदर लाल  , हरा लँहगा अति भारी
गले नौलखा हार , उसी से सजता आगँन
सारे घर की आन , लिए है दो दो कंगन ।।

७  बिंदी
मेरे भारत देश का , हिन्दी है श्रृंगार ,
भाषा के सर की बिँदी , देवनागरी  सार ,
देवनागरी सार , बनी है मोहक भाषा ,
बढ़े सदा यश किर्ति , यही मन की अभिलाषा
अंलकार का वास, शब्द के अभिनव डेरे
गहना हिन्दी डाल, सजा तू भारत मेरे ।।

८ डोली
डोली चढ़ दुल्हन चली , आज छोड़ घर द्वार ,
धुनक रही है ढोलकें, साथ मंगलाचार ,
साथ मंगलाचार , सखी साथी सब छूटे ,
मुंह न निकले बोल  , दृगों से मोती टूटे ,
सबका आशीर्वाद , रचे है कुमकुम रोली ,
धीरे धीरे साथ ,चले पिया संग ड़ोली।।

कुसुम कोठारी।

Thursday, 26 December 2019

कुसुम की कुण्डलियाँ


कुसुम की कुण्डलियाँ

१ वेणी
वेणी बांधे केश की , सिर पर चुनरी धार ,
गागर ले घर से चली , चपल चंचला नार ,
चपल चंचला नार , शीश पर गागर भारी ,
है हिरणी सी चाल , चाल है कितनी प्यारी ,
आंखों में है लाज, चली मंद गति वारुणी  ,
देखे दर्पण साफ , फूल से रचती वेणी ।।

२ कुमकुम
चंदन कुमकुम थाल में ,  गणपति पूजूं आज ,
मंगल कर विपदा हरे, पूर्ण सकल ही काज ,
पूर्ण सकल ही काज , कि शुभ्र भाव हो दाता ,
रखें शीश पर हस्त , साथ हो लक्ष्मी माता ,
कहे कुसुम कर जोड़ , सदा मैं करती वंदन 
तुझ को अर्पण नाथ  ,खीर शहद और चंदन।

३ काजल
नयना काजल रेख है ,और बिॅ॑दी है भाल ,
बनठन के गोरी चली ,ओढ़ चुनरिया लाल ,
ओढ़ चुनरिया लाल , नाक में नथनी डोली ,
छनकी पायल आज , हिया की खिड़की खोली ,
कैसी सुंदर नार , आंख लज्जा का गहना ,
तिरछी चितवन डाल , बाण कंटीले नयना ।।

४ गजरा
सजधज नखराली चली , आज पिया के द्वार,
बालों में गजरा सजे , नख शिख है शृंगार,
नख शिख है शृंगार , आंख में अंजन ड़ाला ,
कान में झुमर सजे  ,कंठ  शोभित है माला ,
पिया मिलन की आस, झुके झुके नैत्र सलज
सुंदर मुख चितचोर , मृगनयनी चली सजधज।।

                 कुसुम कोठारी।।

Monday, 23 December 2019

निराशा से आशा की ओर

निराशा से आशा की ओर

टूटे पँखो को ले करके
कैसे जीवन जीना हो
भरा हुआ है विष का प्याला
कैसे उस को पीना हो।

उन्मुक्त गगन में उड़ते थे
आंखों में भी सपने थे
धूप छांव आती जाती
पर वो दिन भी अच्छे थे
बेमौसम की गिरी बिजुरिया
कैसे पंख बचाना हो

टूटे पंखों को लेकर के
कैसे जीवन जीना हो

तप्त धरा है राहें मुश्किल
और पांव में छाले हैं
ठोकर में पत्थर है भारी
छाये बादल काले हैं
कठिन परीक्षा की घड़ियां है
फिर भी जोर लगाना हो

टूटे पंखों को ले करके
कैसे जीवन जीना हो।

सब कुछ दाव लगा कर देखो
तरिणि सिंधु में डाली है
नजर नहीं आता प्रतीर भी
और रात भी काली है
स्वयं बाजुओं के दम पर ही
कुछ खोना कुछ पाना हो।

टूटे पंखों को लेकर के
कैसे जीवन जीना हो।

कुसुम कोठारी।

Friday, 20 December 2019

न्याय अन्याय

न्याय और अन्याय का कैसा लगा है युद्ध
एक जिसको न्याय कहे दूसरा उस से क्रुद्ध।
बिन सोचे समझे ,विवेक शून्य हो ड़ोले
आंखों पट्टी बांध कर हिंसा की चाबी खोले
पाने को ना जाने क्या है,सब कुछ ना खो जाए
हाथ मलता रह जाएगा जो चुग पंछी उड़ जाए
कोई लगा कर  आग दूर तमाशा देखे
अपना घर फूंक कर कौन रोटियां सेके
समय रहते संभल जाओ वर्ना होगा पछताना
स्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना।

                         कुसुम  कोठारी।

Wednesday, 18 December 2019

सखी मन खनक-खनक जाए

सखी मन खनक-खनक जाए

सखी मन खनक-खनक जाए
दिशाएं भी  गुनगुनाए ।

मन की झांझर झनक रही है
रुनझुन-रुनझुन बोल रही है
छेडी सरगम मधुर रागिनी
हिय के भेद भी खोल रही है
अव्यक्त हवाओं के  सुर में
मन भी उड़ी-उड़ी जाए
सखी मन खनक खनक जाए।

प्रीत गगरिया छलक रही है
ज्यों  अमृत  उड़ेल रही  है
मन को घट  रीतो प्यासो है
बूंद - बूंद रस घोल  रही  है
ये कैसो है क्षीर सिन्धु सो
उलझ-उलझ मन जाए
सखी मन खनक-खनक जाए।

काली घटाएं घड़क रही है
चहुं दिशाएं बरस रही है,
वन कानन में द्रुम पत्रों पर
सुर ताल दे ठुमुक रही है
बासंती सी ऋतु मनभावन ,
मन  भी  देखो हर्षाए
सखी मन खनक खनक जाए

              कुसुम कोठारी।

Tuesday, 17 December 2019

संवरी हूं मैं

संवरी हूं मैं

कतरा-कतरा पिघली हूं मैं
फिर सांचे-सांचे ढली हूं मैं,
हां जर्रा-जर्रा बिखरी हूं मैं
फिर बन तस्वीर संवरी हूं मैं , 
अपनो को देने खुशी
अपनो संग चली हूं मैं ,
अपना अस्तित्व भूल
सब का अस्तित्व बनी हूं मैं,
कुछ हाथ आंधी से बचा रहे थे
तभी रौशन हो शमा सी जली हूं मैंं,
छूने को  उंचाईयां
रुख संग हवाओं के बही हूं मैं।

           कुसुम कोठारी।

Thursday, 12 December 2019

बेबस

सर्द हवा की थाप
बंद होते दरवाजे खिडकियां,
नर्म गद्दों में  रजाई से लिपटा तन
और बार बार होठों से फिसलते शब्द
आज कितनी ठंड है!
कभी ख्याल आया उनका
जिन के पास रजाई तो दूर
 हड्डियों पर मांस भी नही ,
सर पर छत नही ,
औऱ आशा कितनी बड़ी
 कल धूप निकलेगी
ठंड कम हो जायेगी ,
अपनी भूख,बेबसी,
औऱ कल तक अस्तित्व
बचा लेने की लड़ाई ,
कुछ रद्दी चुन के अलाव बनायें
दो कार्य एक साथ ,
आज थोड़ा आटा हो तो
रोटी और ठंड दोनों सेक लें ।

          कुसुम कोठरी ।

अलाव

अलाव
अच्छा लगता है ना जाडे में अलाव सेकना,
खुले आसमान के नीचे बैठ सर्दियों से लडना,
हां कुछ देर गर्माहट का एहसास
तन मन को अच्छा ही लगता है,
पर उस अलाव का क्या
जो धधकता रहता हर मौसम ,
अंदर कहीं गहरे झुलसते रहते जज्बात,
बेबसी,बेकसी और भुखे पेट की भट्टी का अलाव ,
गर्मीयों में सूरज सा जलाता अलाव
धधक-धधक खदबदाता ,
बरसात में सिलन लिये धुंवा-धुंवा अलाव
बाहर बरसता सावन, अंदर सुलगता ,
पतझर में आशाओं के झरते पत्तों का अलाव
उडा ले जाता कहीं उजडती अमराइयों में ,
सर्दी में सुकून भरा गहरे तक छलता अलाव।

                 कुसुम कोठारी।

Wednesday, 11 December 2019

पथिक

पथिक

रे मन तू पथिक
किस गांव का ।
भटकत सुबह शाम
ना ठौर ना ठांव का,
किस सुधा को ढ़ूंढ़ता
जुग कितने बीते,
डोलत इस उस पथ
रहे तृष्णा घट रीते।

रे मन तू पथिक
किस गांव का।

इस पिंजरे को
समझ के अपना,
देख रहा तू
भ्रम का सपना ,
लम्बी सफर का
तार जब जुड़ जायेगा,
देखते -देखते
पाखी तो उड़ जायेगा।

रे मन तू पथिक
किस गांव का।

होश नहीं तुझको
तू कौन दिशा से आया,
शीतल छांव में भूला
समय गमन का आया,
बांध गठरिया चल तू
ये देश वीराना जान ले,
आसक्ति को छोड़ कर
निज स्वरूप पहचान ले ।

रे मन तू पथिक
किस गांव का।

कुसुम कोठारी।

Sunday, 8 December 2019

कुंडलियां छंद। नेता

कुंडलिया छंद

नेता।

नेता कुर्सी पूजते, जैसे चारों धाम
जनता ऐसे पिस रही,भली करें अब राम
भली करे अब राम,  कि कैसा कलयुग आया
नैतिकता मझधार ,  सभी को स्वार्थ सुहाया
न्योछावर कर प्राण , परमार्थ जीवन देता ।
दिखते नही अब तो  , कहीं भी ऐसे नेता।

कुसुम कोठारी।

Thursday, 5 December 2019

मेथी का विवाह

मेथी का विवाह।

एक निमंत्रण देख कर मन हुआ आवाक
करेले ने ब्याह रचाया कोमल मेथी के साथ ,
सजे-धजे बाराती लौकी ,भिंडी,आलू-प्याज,
बेंगन जी इठला रहे थे, हुआ टमाटर शर्म से लाल,
टेढ़ी-मेढ़ी अदरक ने पहना नया सूट
गाजर मूली ढूंढ़ रहे थे अपने अपने बूट,
नारियल ने जोटी से गूंथी चोटी
कद्दू कहे हाय छुपाऊं कैसे तोंद मोटी,
पालक की हरी अगंडाई, तुरई बोली पहनु साड़ी
टिंडा जी खड़े उदास पांव दर्द है मंगा लो गाड़ी,
खीरा ,ककड़ी, सीम,ग्वार खड़े थे समधी के द्वार
परवल बोली मुझे बुखार पहले देदो गोली चार,
गोभी,मटर धनिया,अलसाया पर ना चला कोई बहाना
लहसुन पुछे कहां जाना भूल गई मैं तो ठिकाना,

         मालिन बोली उठा कर डंडी           
           पहुंचों सब कोई "सब्जीमंडी "।

Monday, 2 December 2019

जीवन पल-पल एक परीक्षा

जीवन पल-पल एक परीक्षा
महाविलय की अग्रिम प्रतिक्षा।

अतृप्त सा मन कस्तुरी मृग सा,
भटकता खोजता अलब्ध सा,
तिमिराछन्न परिवेश में मूढ मना सा,
स्वर्णिम विहान की किरण ढूंढता,
छोड घटित अघटित अपेक्षा ।
जीवन पल-पल एक परीक्षा...

महासागर के महा द्वंद्व सा ,
जलता रहता बङवानल सा,
महत्वाकांक्षा की धुंध में घिरता
खुद से ही कभी न्याय न करता
सृजन में भी संहार आकांक्षा ।
जीवन पल-पल एक परीक्षा...

कभी होली भरोसे की जलाता
अगन अबूझ समझ नही पाता
अव्यक्त लौ सा जलता जाता
कभी मन प्रस्फुटित दिवाली मनाता,
खुश हो करता सत्य की उपेक्षा ।
जीवन पल-पल एक परीक्षा....

रातें गहरी, जितना भ्रमित मना
कमतर उजला दिन भी उतना ,
खण्डित आशा अश्रु बन बहती
मानवता विक्षत चित्कार करती,
अपूर्ण अविचल रहती,आकांक्षा
जीवन पल पल एक परीक्षा  ....

                     कुसुम कोठारी।