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Monday, 2 December 2019

जीवन पल-पल एक परीक्षा

जीवन पल-पल एक परीक्षा
महाविलय की अग्रिम प्रतिक्षा।

अतृप्त सा मन कस्तुरी मृग सा,
भटकता खोजता अलब्ध सा,
तिमिराछन्न परिवेश में मूढ मना सा,
स्वर्णिम विहान की किरण ढूंढता,
छोड घटित अघटित अपेक्षा ।
जीवन पल-पल एक परीक्षा...

महासागर के महा द्वंद्व सा ,
जलता रहता बङवानल सा,
महत्वाकांक्षा की धुंध में घिरता
खुद से ही कभी न्याय न करता
सृजन में भी संहार आकांक्षा ।
जीवन पल-पल एक परीक्षा...

कभी होली भरोसे की जलाता
अगन अबूझ समझ नही पाता
अव्यक्त लौ सा जलता जाता
कभी मन प्रस्फुटित दिवाली मनाता,
खुश हो करता सत्य की उपेक्षा ।
जीवन पल-पल एक परीक्षा....

रातें गहरी, जितना भ्रमित मना
कमतर उजला दिन भी उतना ,
खण्डित आशा अश्रु बन बहती
मानवता विक्षत चित्कार करती,
अपूर्ण अविचल रहती,आकांक्षा
जीवन पल पल एक परीक्षा  ....

                     कुसुम कोठारी।

10 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (03-12-2019) को "तार जिंदगी के" (चर्चा अंक-3538) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!

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  2. जीवन पल-पल एक परीक्षा है...

    कुसुम दी आपकी इस रचना में मानों गीता का सारा ज्ञान ही समाहित है । अतः उनकी लेखनी को नमन ।
    सचमुच जीवन एक यात्रा ही तो है। इसमें पथरीले स्थान भी है, तो मधुर उद्यान भी..जीवन बहुत सी भूलभुलैयों से होकर गुजरती है..कौन मार्ग किधर ले जाएगा निश्चित नहीं है.. हँसते- हँसते हर मोड़ पर घूम जाना ही जीवन है..जीवन तो वास्तव में एक उपवन है..जहाँ सुगंधित पुष्प एवं कांटे दोनों हैं..चुनाव हम पर निर्भर है कि झोली फूलों से भरना है या कांटों से..और यह भी याद रखना है कि पृथ्वी पर कुछ सत्य है तो यह जीवन ही है..यह जीवन स्वप्न नहीं है..।
    दो दिन के इस जीवन में मनुष्य यदि मनुष्य से स्नेह नहीं करता तो फिर किसलिए उत्पन्न हुये हैं हम .. ?

    # # सब ऐसे भाग्यशाली नहीं होते कि उन्हें कोई प्यार करे, पर यह तो हो सकता है कि वह स्वयं किसी को प्यार रे, किसी के दुखसुख को बांट कर अपना जीवन सार्थक कर ले..। ##

    एक प्यारा सा गीत याद हो आया है--
    जीना उसका जीना है, जो औरों को जीवन देता है ...

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  3. महासागर के महा द्वंद्व सा ,
    जलता रहता बङवानल सा,
    महत्वाकांक्षा की धुंध में घिरता
    खुद से ही कभी न्याय न करता
    सृजन में भी संहार आकांक्षा ।
    जीवन पल-पल एक परीक्षा... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी

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  4. महासागर के महा द्वंद्व सा ,
    जलता रहता बङवानल सा,
    महत्वाकांक्षा की धुंध में घिरता
    खुद से ही कभी न्याय न करता
    सृजन में भी संहार आकांक्षा ।
    जीवन पल-पल एक परीक्षा...... वाह !बेहतरीन दी जी
    आप का लेखन पढ़कर दिनकर जी की याद आ गयी
    सादर

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  5. जी दी आपकी यह कविता छठी बार पढ रहे है हम आकर।
    हर बार क्या लिखे यही यही सोचकर वापस लौट जा रहे हैं।
    ऐसा लग रहा जैसे आपने मेरे मन के चिंतन को शब्द दे दिये हों... रचना का मुख्य संदेश, भाव,शब्द-संयोजन सब कुछ बेहद प्रभावशाली है।
    बहुत ही अच्छी रचना दी। बधाई।

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२८ -१२-२०१९ ) को "परिवेश" (चर्चा अंक-३५६३) पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  7. बहुत ही शानदार कविता।

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  8. अव्यक्त लौ सा जलता जाता
    कभी मन प्रस्फुटित दिवाली मनाता,
    खुश हो करता सत्य की उपेक्षा ।
    जीवन पल-पल एक परीक्षा....

    जीवन का सार समेटती सुंदर अभिव्यक्ति ,सादर नमन आपको और आपकी लेखनी को कुसुम जी

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  9. बहुत सुंदर रचना सखी

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  10. वाह ,कुसुम जी ,क्या बात है । बहुत ही खूबसूरती से जीवध दर्शन समझा दिया अपने ।

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