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Thursday, 26 December 2019

कुसुम की कुण्डलियाँ


कुसुम की कुण्डलियाँ

१ वेणी
वेणी बांधे केश की , सिर पर चुनरी धार ,
गागर ले घर से चली , चपल चंचला नार ,
चपल चंचला नार , शीश पर गागर भारी ,
है हिरणी सी चाल , चाल है कितनी प्यारी ,
आंखों में है लाज, चली मंद गति वारुणी  ,
देखे दर्पण साफ , फूल से रचती वेणी ।।

२ कुमकुम
चंदन कुमकुम थाल में ,  गणपति पूजूं आज ,
मंगल कर विपदा हरे, पूर्ण सकल ही काज ,
पूर्ण सकल ही काज , कि शुभ्र भाव हो दाता ,
रखें शीश पर हस्त , साथ हो लक्ष्मी माता ,
कहे कुसुम कर जोड़ , सदा मैं करती वंदन 
तुझ को अर्पण नाथ  ,खीर शहद और चंदन।

३ काजल
नयना काजल रेख है ,और बिॅ॑दी है भाल ,
बनठन के गोरी चली ,ओढ़ चुनरिया लाल ,
ओढ़ चुनरिया लाल , नाक में नथनी डोली ,
छनकी पायल आज , हिया की खिड़की खोली ,
कैसी सुंदर नार , आंख लज्जा का गहना ,
तिरछी चितवन डाल , बाण कंटीले नयना ।।

४ गजरा
सजधज नखराली चली , आज पिया के द्वार,
बालों में गजरा सजे , नख शिख है शृंगार,
नख शिख है शृंगार , आंख में अंजन ड़ाला ,
कान में झुमर सजे  ,कंठ  शोभित है माला ,
पिया मिलन की आस, झुके झुके नैत्र सलज
सुंदर मुख चितचोर , मृगनयनी चली सजधज।।

                 कुसुम कोठारी।।

7 comments:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. बहुत सुन्दर !
    हम तो गिरधर कविराय, देव, पद्माकर और कविवर बिहारी के युग में विचरण करने लगे.

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  3. शानदार कुंडलियां
    बहुत सुंदर

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  4. प्रिय कुसुम बहन , गोपेश जी ने सच कहा | कुंडलियाँ से गिरधर की कुंडलियाँ अनायास याद आ जाती हैं | बहुत शानदार कोशिश की है आपने | श्रृंगार रस से परिपूर्ण सभी कुंडलियाँ बहत सराहनीय हैं |आजकल कुंडली विधा की बहार है | शब्दनगरी में मैंने महत्तम मिश्रा जी को पढ़ा था| वे बहुत ही सिद्धहस्त हैं कुंडलियाँ लिखने में | बहुत रोचक है ये विधा | जहाँ से शुरू वहीँ से ख़त्म | बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें आपको सीखने के इस जज्बे के लिए |

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  5. बेहद खूबसूरत कुण्डलियाँ सखी👌👌👌👌

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  6. बहुत ही सुंदर ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमन कुसुम जी

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  7. वाह ... आप इस विधा में मास्टरी कर चुकी हैं ...
    गज़ब की कुंडलियाँ ... एक से बढ़ कर एक ... लाजवाब ... गहरा बोध भाव लिए ...

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