कुसुम की कुण्डलियाँ
१ वेणी
वेणी बांधे केश की , सिर पर चुनरी धार ,
गागर ले घर से चली , चपल चंचला नार ,
चपल चंचला नार , शीश पर गागर भारी ,
है हिरणी सी चाल , चाल है कितनी प्यारी ,
आंखों में है लाज, चली मंद गति वारुणी ,
देखे दर्पण साफ , फूल से रचती वेणी ।।
२ कुमकुम
चंदन कुमकुम थाल में , गणपति पूजूं आज ,
मंगल कर विपदा हरे, पूर्ण सकल ही काज ,
पूर्ण सकल ही काज , कि शुभ्र भाव हो दाता ,
रखें शीश पर हस्त , साथ हो लक्ष्मी माता ,
कहे कुसुम कर जोड़ , सदा मैं करती वंदन
तुझ को अर्पण नाथ ,खीर शहद और चंदन।
३ काजल
नयना काजल रेख है ,और बिॅ॑दी है भाल ,
बनठन के गोरी चली ,ओढ़ चुनरिया लाल ,
ओढ़ चुनरिया लाल , नाक में नथनी डोली ,
छनकी पायल आज , हिया की खिड़की खोली ,
कैसी सुंदर नार , आंख लज्जा का गहना ,
तिरछी चितवन डाल , बाण कंटीले नयना ।।
४ गजरा
सजधज नखराली चली , आज पिया के द्वार,
बालों में गजरा सजे , नख शिख है शृंगार,
नख शिख है शृंगार , आंख में अंजन ड़ाला ,
कान में झुमर सजे ,कंठ शोभित है माला ,
पिया मिलन की आस, झुके झुके नैत्र सलज
सुंदर मुख चितचोर , मृगनयनी चली सजधज।।
कुसुम कोठारी।।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार २७ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत सुन्दर !
ReplyDeleteहम तो गिरधर कविराय, देव, पद्माकर और कविवर बिहारी के युग में विचरण करने लगे.
शानदार कुंडलियां
ReplyDeleteबहुत सुंदर
प्रिय कुसुम बहन , गोपेश जी ने सच कहा | कुंडलियाँ से गिरधर की कुंडलियाँ अनायास याद आ जाती हैं | बहुत शानदार कोशिश की है आपने | श्रृंगार रस से परिपूर्ण सभी कुंडलियाँ बहत सराहनीय हैं |आजकल कुंडली विधा की बहार है | शब्दनगरी में मैंने महत्तम मिश्रा जी को पढ़ा था| वे बहुत ही सिद्धहस्त हैं कुंडलियाँ लिखने में | बहुत रोचक है ये विधा | जहाँ से शुरू वहीँ से ख़त्म | बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें आपको सीखने के इस जज्बे के लिए |
ReplyDeleteबेहद खूबसूरत कुण्डलियाँ सखी👌👌👌👌
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर ,लाज़बाब सृजन ,सादर नमन कुसुम जी
ReplyDeleteवाह ... आप इस विधा में मास्टरी कर चुकी हैं ...
ReplyDeleteगज़ब की कुंडलियाँ ... एक से बढ़ कर एक ... लाजवाब ... गहरा बोध भाव लिए ...