न्याय और अन्याय का कैसा लगा है युद्ध
एक जिसको न्याय कहे दूसरा उस से क्रुद्ध।
बिन सोचे समझे ,विवेक शून्य हो ड़ोले
आंखों पट्टी बांध कर हिंसा की चाबी खोले
पाने को ना जाने क्या है,सब कुछ ना खो जाए
हाथ मलता रह जाएगा जो चुग पंछी उड़ जाए
कोई लगा कर आग दूर तमाशा देखे
अपना घर फूंक कर कौन रोटियां सेके
समय रहते संभल जाओ वर्ना होगा पछताना
स्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना।
कुसुम कोठारी।
एक जिसको न्याय कहे दूसरा उस से क्रुद्ध।
बिन सोचे समझे ,विवेक शून्य हो ड़ोले
आंखों पट्टी बांध कर हिंसा की चाबी खोले
पाने को ना जाने क्या है,सब कुछ ना खो जाए
हाथ मलता रह जाएगा जो चुग पंछी उड़ जाए
कोई लगा कर आग दूर तमाशा देखे
अपना घर फूंक कर कौन रोटियां सेके
समय रहते संभल जाओ वर्ना होगा पछताना
स्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना।
कुसुम कोठारी।
सार्थक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteसस्नेह आभार सखी त्वरित प्रतिक्रिया से रचना को प्रवाह मिला।
Deleteबहुत सार्थक व सटीक रचना दी
ReplyDeleteबहुत सा स्नेहिल आभार बहना ।
Deleteप्रोत्साहन मिला।
राजनीति के कुशल खिलाड़ी कृष्णा भी जब कौरव और यादव कुल के महाविनाश को नहीं रोक सकें , जबकि दुर्योधन उनका समधी था और साम्ब पुत्र..।
ReplyDeleteअतः बस यही कहूँगा कि नियति के समक्ष सभी विवश हैं।
ऐसा ही कुचक्र है ये कुर्सी और सत्ता की लोलुपता जो सदियों से चली आ रही है, किरदार बदलते रहते हैं पर हालात बस उन्नीस इक्कीस।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका भाई सुंदर व्याख्यात्म टिप्पणी के लिए जो सहज एक दिशा बोध दे रही है।
"स्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना"
ReplyDeleteजी सादर आभार आपका।
Deleteमंच पर स्वागत है आपका।
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२२-१२ -२०१९ ) को "मेहमान कुछ दिन का ये साल है"(चर्चा अंक-३५५७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
जी सादर आभार आपका।
Deleteमैं जरूर प्रयासरत रहूंगी चर्चा मंच पर आना मेरा सौभाग्य है।
जी सादर आभार मैं चर्चा में जरुर उपस्थित रहूंगी।
ReplyDeleteसार्थक समयानुकूल रचना।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
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Deleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२३ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
देश-हित की कौन सोचता है? सबके लिए कुर्सी-हित और आत्म-हित सर्वोपरि है.
ReplyDeleteअमन-शांति की किसे कामना है? कहीं घृणा की तो कहीं द्वेष की भावना है !
सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति ,सादर नमन कुसुम जी
ReplyDeleteसमय रहते संभल जाओ वर्ना होगा पछताना
ReplyDeleteस्वार्थ से ऊपर उठ देश हित का पहनो बाना
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति।