Followers

Wednesday, 18 December 2019

सखी मन खनक-खनक जाए

सखी मन खनक-खनक जाए

सखी मन खनक-खनक जाए
दिशाएं भी  गुनगुनाए ।

मन की झांझर झनक रही है
रुनझुन-रुनझुन बोल रही है
छेडी सरगम मधुर रागिनी
हिय के भेद भी खोल रही है
अव्यक्त हवाओं के  सुर में
मन भी उड़ी-उड़ी जाए
सखी मन खनक खनक जाए।

प्रीत गगरिया छलक रही है
ज्यों  अमृत  उड़ेल रही  है
मन को घट  रीतो प्यासो है
बूंद - बूंद रस घोल  रही  है
ये कैसो है क्षीर सिन्धु सो
उलझ-उलझ मन जाए
सखी मन खनक-खनक जाए।

काली घटाएं घड़क रही है
चहुं दिशाएं बरस रही है,
वन कानन में द्रुम पत्रों पर
सुर ताल दे ठुमुक रही है
बासंती सी ऋतु मनभावन ,
मन  भी  देखो हर्षाए
सखी मन खनक खनक जाए

              कुसुम कोठारी।

7 comments:

  1. अति सुंदर और भावपूर्ण सृजन कुसुम जी ,आप तो पुराने गीतों की दुनिया में ले गई हमें ,सादर नमस्कार

    ReplyDelete
  2. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(20 -12 -2019) को "कैसे जान बचाऊँ मैं"(चर्चा अंक-3555)  पर भी होगी।

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है 

    ….
    अनीता लागुरी 'अनु '

    ReplyDelete
  3. बहुत खूब...,मनमोहक और अत्यंत सुन्दर सृजन जिसे गुनगुनाना
    सुखद अनुभव है ।

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर ... गेयता कमाल की और सुन्दर शब्द विन्यास ...
    प्राकृति का मनमोहक अवलोकन करते भाव ...

    ReplyDelete
  5. बहुत खूबसूरत रचना सखी 👌

    ReplyDelete
  6. प्रीत गगरिया छलक रही है
    ज्यों अमृत उड़ेल रही है
    मन को घट रीतो प्यासो है
    बूंद - बूंद रस घोल रही है
    ये कैसो है क्षीर सिन्धु सो
    उलझ-उलझ मन जाए
    सखी मन खनक-खनक जाए।
    बहुत ही प्यारी रचना प्रिय कुसुम बहन | लयबद्ध गीत के सभी भाव ओर बोल कमाल के हैं | किसी से इसे गाने का अनुरोध जरुर करें |मन अन्दर से खिला हो और प्रकृति भी अपने रंग में हो, तो गोरी के मन के भाव छिपाए नहीं छिपते |

    ReplyDelete