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Friday, 27 December 2019

कुसुम की कुण्डलियाँ-२

५ पायल
पायल तो नीरव हुई , पाखी हुए उदास ,
कैसे में कविता लिखूं , शब्द नहीं है पास,
शब्द नही है पास ,हृदय कागज है कोरा ,
सूना अब आकाश , बुझा है मन का तारा ,
लेखन रस से हीन  ,करे है मन को घायल
मुक्ता चाहे हार , घुंघरू चाहे पायल ।।

६ कंगन
कंगन खनका जोर से , गोरी नाचे आज ,
पायल औ बिछिया बजे , घर में मंगल काज
घर में मंगल काज ,क्षउठा ली जिम्मेदारी 
चूनर सुंदर लाल  , हरा लँहगा अति भारी
गले नौलखा हार , उसी से सजता आगँन
सारे घर की आन , लिए है दो दो कंगन ।।

७  बिंदी
मेरे भारत देश का , हिन्दी है श्रृंगार ,
भाषा के सर की बिँदी , देवनागरी  सार ,
देवनागरी सार , बनी है मोहक भाषा ,
बढ़े सदा यश किर्ति , यही मन की अभिलाषा
अंलकार का वास, शब्द के अभिनव डेरे
गहना हिन्दी डाल, सजा तू भारत मेरे ।।

८ डोली
डोली चढ़ दुल्हन चली , आज छोड़ घर द्वार ,
धुनक रही है ढोलकें, साथ मंगलाचार ,
साथ मंगलाचार , सखी साथी सब छूटे ,
मुंह न निकले बोल  , दृगों से मोती टूटे ,
सबका आशीर्वाद , रचे है कुमकुम रोली ,
धीरे धीरे साथ ,चले पिया संग ड़ोली।।

कुसुम कोठारी।

5 comments:

  1. बेहतरीन ! अद्भुत ! अप्रतिम कुंडलियां👌👌👌👌

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  2. वाह बहुत ही बेहतरीन कुण्डलियाँ सखी 👌👌👌👌

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  3. बेहतरीन

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  4. वाह ... मन को छूती हुयी सभी कुण्डलियाँ ...
    और पायल का तो जवाब नहीं ... बेहतरीन ...

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  5. रोचक मन को छूती कुण्डलियाँ।

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