प्रकृति और लेखनी
श्रृंग श्रेणी चढ़ दिवाकर
दृश्य कोरे है अछेरे
पाखियों की पाँत उड़ती
छोड़कर के नीड़ डेरे।।
कोकिला कूजित मधुर स्वर
मधुकरी मकरंद मोले
प्रीत पुलकित है पपीहा
शंखपुष्पी शीश डोले
शीत के शीतल करों में
सूर्य के स्वर्णिम उजेरे।।
मोद मधुरिम हर दिशा में
भूषिता भू भगवती है
श्यामला शतरूप धरती
पद्म पर पद्मावती है
आज लिख दे लेखनी फिर
नव मुकुल से नव सवेरे।।
मन खुशी में झूम झूमें
और मसि से नेह झाँके
कागज़ों पर भाव पसरे
चारु चंचल चित्र चाँके
पंक्तियों से छंद झरते
मुस्कुराते गीत मेरे।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'