कहो समय तुम कितने अपने
छली बली निर्मोही हो
छुपा रखा है किसे पता क्या
मन के पक्के गोही हो।।
अहिल्या का श्राप हो तुम
दसरथ के अवसान
श्री राम का वनवास भी
माँ सीता की अग्नि परीक्षा
उर्मिला का वियोग
माण्ड़वी का वैराग्य
अरे कितने अमोही हो।।
कहो समय तुम कितने अपने
छली बली निर्मोही हो।
पितामह की निर्बलता तुम
धृतराष्ट्र का मोह
देवकी के प्रारब्ध
कर्ण के अज्ञातशत्रु
द्रौपदी का अपमान
द्वारिका की जल समाधि
मानवता के द्रोही हो।।
कहो समय तुम कितने अपने
छली बली निर्मोही हो।
संस्कारों का अंत हो तुम
लालच की पराकाष्ठा
अनैतिकता का बाना
भ्रष्टाचार के जनक
स्वार्थ के सहोदर
धर्म के धुंधले होते रंग
विषज्वर के आरोही हो।।
कहो समय तुम कितने अपने
छली बली निर्मोही हो।।
विषज्वर=भैंसा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 09 मार्च 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 09 मार्च 2023 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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जी हृदय से आभार आपका मैं ब्लाग पर उपस्थित रहूंगी।
Deleteसादर सस्नेह।
बहुत ही सुंदर
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका आदरणीय।
Deleteबेहतरीन प्रविष्टि
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteवाह ! समय के विविध रंग !
ReplyDeleteजी सस्नेह आभार आपका ब्लॉग पर सदा प्रतिक्षा रहेगी आपकी।
Deleteसस्नेह।
बहुत सुंदर
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteहमारे ग्रंथों में विभिन्न पत्रों को बलि-महाबली-अजेय दर्शाया गया है ! पर समय जैसा बलवान कोई नहीं है... कोई भी नहीं ! न कोई इस जैसा निरपेक्ष है, ना न्यायी, ना निष्पक्ष, नाहीं समदर्शी और पाबंद इतना कि खुद के लिए भी समय नहीं है
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteजी हृदय से आभार आपका मैं सहमत हूँ आपकी बात से पर कभी कभी मन विद्रोही होकर समय को ही शूली पर चढ़ा देता है ।
Deleteआपकी सकारात्मक विवेचना के लिए हृदय से साधुवाद आदरणीय।