प्रकृति और लेखनी
श्रृंग श्रेणी चढ़ दिवाकर
दृश्य कोरे है अछेरे
पाखियों की पाँत उड़ती
छोड़कर के नीड़ डेरे।।
कोकिला कूजित मधुर स्वर
मधुकरी मकरंद मोले
प्रीत पुलकित है पपीहा
शंखपुष्पी शीश डोले
शीत के शीतल करों में
सूर्य के स्वर्णिम उजेरे।।
मोद मधुरिम हर दिशा में
भूषिता भू भगवती है
श्यामला शतरूप धरती
पद्म पर पद्मावती है
आज लिख दे लेखनी फिर
नव मुकुल से नव सवेरे।।
मन खुशी में झूम झूमें
और मसि से नेह झाँके
कागज़ों पर भाव पसरे
चारु चंचल चित्र चाँके
पंक्तियों से छंद झरते
मुस्कुराते गीत मेरे।।
कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'
कोकिला कूजित मधुर स्वर
ReplyDeleteमधुकरी मकरंद मोले
प्रीत पुलकित है पपीहा
शंखपुष्पी शीश डोले
शीत के शीतल करों में
सूर्य के स्वर्णिम उजेरे।।
वाह!!!
निःशब्द करती बहुत ही लाजवाब रचना
अद्भुत एवं उत्कृष्ट👌👌👏👏🙏🙏
ReplyDeleteमन खुशी में झूम झूमें
और मसि से नेह झाँके
कागज़ों पर भाव पसरे
चारु चंचल चित्र चाँके
पंक्तियों से छंद झरते
मुस्कुराते गीत मेरे।।
प्रकृति की छवि का ये शब्द शिल्पी सौन्दर्य गीत को अनुपम बना गया। बधाई कुसुम जी💐💐
जी बहुत बहुत आभार आपका।
Deleteमुग्ध करती अनुपम कृति
ReplyDeleteजी हृदय से आभार आपका।
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