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Monday, 27 March 2023

प्रकृति और लेखनी


 प्रकृति और लेखनी


श्रृंग श्रेणी चढ़ दिवाकर

दृश्य कोरे है अछेरे

पाखियों की पाँत उड़ती

छोड़कर के नीड़ डेरे।।


कोकिला कूजित मधुर स्वर

मधुकरी मकरंद मोले 

प्रीत पुलकित है पपीहा

शंखपुष्पी शीश डोले

शीत के शीतल करों में

सूर्य के स्वर्णिम उजेरे।।


मोद मधुरिम हर दिशा में

भूषिता भू भगवती है

श्यामला शतरूप धरती

पद्म पर पद्मावती है

आज लिख दे लेखनी फिर

नव मुकुल से नव सवेरे।।


मन खुशी में झूम झूमें

और मसि से नेह झाँके

कागज़ों पर भाव पसरे

चारु चंचल चित्र चाँके

पंक्तियों से छंद झरते

मुस्कुराते गीत मेरे।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

5 comments:

  1. कोकिला कूजित मधुर स्वर

    मधुकरी मकरंद मोले

    प्रीत पुलकित है पपीहा

    शंखपुष्पी शीश डोले

    शीत के शीतल करों में

    सूर्य के स्वर्णिम उजेरे।।

    वाह!!!
    निःशब्द करती बहुत ही लाजवाब रचना
    अद्भुत एवं उत्कृष्ट👌👌👏👏🙏🙏

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  2. मन खुशी में झूम झूमें

    और मसि से नेह झाँके

    कागज़ों पर भाव पसरे

    चारु चंचल चित्र चाँके

    पंक्तियों से छंद झरते

    मुस्कुराते गीत मेरे।।
    प्रकृति की छवि का ये शब्द शिल्पी सौन्दर्य गीत को अनुपम बना गया। बधाई कुसुम जी💐💐

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    1. जी बहुत बहुत आभार आपका।

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  3. मुग्ध करती अनुपम कृति

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    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका।

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