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Friday, 14 April 2023

शरद गमन


 शरद गमन


भानु झाँके बादलों से

शीत क्यों अब भीत देती

वो चहकती सुबह जागी

नव प्रभा को प्रीत देती।।


लो कुहासा भग गया अब

धूप ने आसन बिछाया

ऐंद्रजालिक ओस ओझल

कौन रचता रम्य माया

पर्वतों ने गीत गाए

ये पवन संगीत देती।।


मोह निद्रा त्याग के तू

छोड़ दे आलस्य मानव

कर्म निष्ठा दत्तचित बन

श्रेष्ठ तू हैं विश्व आनव

उद्यमी अनुभूतियाँ ही

हार में भी जीत देती।।


बीज माटी में छिपे से

अंकुरण को हैं मचलते

नेह सिंचित इस धरा पर

मानवों के भाग्य पलते

और तम से जो डरा हो

सूर्य किरणें मीत देती।।


कुसुम कोठारी 'प्रज्ञा'

13 comments:

  1. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार 16 अप्रैल 2023 को 'बहुत कमज़ोर है यह रिश्तों की चादर' (चर्चा अंक 4656) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

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    Replies
    1. जी हृदय से आभार आपका चर्चा मंच पर रचना को रखने के लिए।

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  2. लाजवाब प्रस्तुति।

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    Replies
    1. जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।
      सादर।

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  3. बीज माटी में छिपे से

    अंकुरण को हैं मचलते

    नेह सिंचित इस धरा पर

    मानवों के भाग्य पलते

    और तम से जो डरा हो

    सूर्य किरणें मीत देती।।
    सकारात्मक भाव लिए सुंदर रचना।

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    1. सस्नेह आभार आपका जिज्ञासा जी।
      सृजन सार्थक हुआ।

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  4. Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

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  5. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 25 एप्रिल 2023 को साझा की गयी है
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. Replies
    1. हृदय से आभार आपका दी।
      सादर सस्नेह।

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  7. बीज माटी में छिपे से

    अंकुरण को हैं मचलते

    नेह सिंचित इस धरा पर

    मानवों के भाग्य पलते
    कर्म की प्रधानता एवं परिश्रम से अपना भाग्य निर्मित करना...इतना बड़ा संदेश उत्कृष्ट नवगीत में
    वाह!!!

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    1. जी हृदय से आभार आपका सखी।
      सस्नेह।

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